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शिवचरित्रमाला (भाग – 6 ) "ताकत और रणनीति से गूंज उठा शाही तख्त!

शहाजी राजे को पकड़ लिया गया था। उनके हाथ-पैरों में बेड़ियाँ थीं। अफज़लखान उन्हें मदुरै से बीजापुर लाया और मकई दरवाजे से शहर में घुमाया। उन्हें हाथी पर बैठाकर पूरे रास्ते शर्मिंदा किया गया। इस अपमानजनक स्थिति में अफज़लखान उनका मजाक उड़ाता रहा और ज़ोर से चिल्लाकर कहता –
यह इज़्ज़तदार कैदी है!”

राजा यह अपमान सह नहीं पा रहे थे, पर बेबस थे। शिवाजी महाराज उस समय स्वराज्य स्थापित करने में लगे थे, इसलिए उनके पिता को शाही सत्ता ने “मान का कैदी” बताया और सख्त सजा की आशंका भी थी। उन्हें बीजापुर के “सत मंजिल” किले में कड़े बंदोबस्त में कैद किया गया।

उधर राजगढ़ पर मौजूद जिजाऊ साहेब को जैसे ही यह खबर मिली, उनका मन बेचैन हो गया। उन्हें पहले से पता था कि कैसे कई मराठाओं को बेगुनाह मार डाला गया था – उनके पिता और भाई तक मारे जा चुके थे। अब शहाजी राजे की जान बचाने का एक ही रास्ता था – आदिलशाह से प्रार्थना करना और स्वराज्य को उसके अधीन वापस सौंप देना। पर यह जिजाऊ को मंजूर नहीं था।

इसी समय शिवाजी महाराज ने फत्तेखान की विशाल सेना को हराया था – सुभानमंगल, पुरंदर, बेलसर और सासवड जैसे स्थानों पर। शिवाजी की गनिमी कावा (गुरिल्ला युद्धनीति) ने शाही फौजों को तहस-नहस कर दिया था।

लेकिन इससे शहाजी राजे का खतरा और बढ़ गया था। कभी भी उनके सिर काटने का आदेश दिया जा सकता था। शिवाजी ने दोहरी रणनीति अपनाई – एक ओर आदिलशाही सेना से युद्ध की तैयारी, दूसरी ओर चतुराई से दिल्ली के मुगलों को बीजापुर के खिलाफ भड़काना।

शिवाजी ने दिल्ली दरबार में अपना एक वकील भेजा, ताकि मुगल बादशाह शहाजहाँ आदिलशाह पर दबाव बनाए। योजना सफल हुई – शहाजहाँ ने चेतावनी दी: अगर शहाजी राजे को नहीं छोड़ा गया, तो मुग़ल सेना बीजापुर पर हमला करेगी।”

यह सुनकर आदिलशाह घबरा गया। शिवाजी की योजना सफल रही। अंततः 16 मई 1649 को शहाजी राजे को सम्मानपूर्वक रिहा कर दिया गया।

सत्रह-अठारह साल के शिवाजी की सैन्य प्रतिभा, दृढ़ संकल्प और रणनीति ने बीजापुर जैसे शाही राज्य को झुका दिया। उनके साहस और बुद्धिमत्ता ने इतिहास को भी चौंका दिया।

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