
राजयोग जीवन में सफलता और भौतिक रूप से अच्छा जीवन देने वाला होता है।जिसका मतलब है राजाओ की तरह ऐशो-आराम और सुख-सुविधाओ से पूर्ण जीवन जीना।राजयोग मिलने से पहले राजयोग का कुंडली में होना जरूरी है।केन्द्रेश और त्रिकोणेश के बीच बनने वाले युति दृष्टि या स्थान परिवर्तन के आपसी सम्बन्ध से बनने वाले योग को राजयोग कहते है।।
जो भी केन्द्रेश और त्रिकोणेश आपस में सम्बन्ध बनाकर राजयोग बना रहे होते है उन्ही ग्रहो की दशा अन्तर्दशा में राजयोग सुख मिलता है।जो जीवन में सुख-सफलता, ख़ुशी, धन, ऐश्वर्य, कार्य छेत्र में अच्छी सफलता जैसे शुभ फल मिलते है।जितने ज्यादा से ज्यादा केंद्र और त्रिकोण के स्वामी आपस में सम्बन्ध बनाकर बैठते है राजयोग उतना ही शक्तिशाली बन जाता है।
राजयोग के परिणामो में यह बात महत्वपूर्ण होती है कि केन्द्रेश और त्रिकोणेश केंद्र में बेठे है या त्रिकोण में बेठे या किस भाव में है? केंद्र त्रिकोण भाव, दूसरे ग्यारहवे भाव में बैठने पर ज्यादा शुभ परिणाम देते है इसके आलावा 3, 6, 8,12भाव में सामान्य शुभ परिणाम देते है।। केन्द्रेश त्रिकोणेश का वर्गोत्तम होना(नवमांश और लग्न कुंडली में एक ही राशि में होना) इसके साथ ही या अन्य वर्ग कुंडलियो में अपनी उच्च राशि या स्वराशि में होना बेहद शुभ परिणाम राजयोग भोगने में मिलते है।राजयोग कुंडली में होने से सफलता, उन्नति, धन, सुख-सुबिधाओं के साधन और समृद्धशाली जीवन जीने को मिलता है।राजयोग बनाने में नवमेश(त्रिकोणेश) और
दशमेश(केन्द्रेश)का बहुत महत्व होता है।इन दोनों भावपतियो में से कोई एक भी राजयोग में अपनी भूमिका न निभाए तब राजयोग वास्तव में राजयोग नही होता।इस कारण नवमेश दशमेश या दोनों में से किसी एक का सम्बन्ध अन्य केन्द्रेश या त्रिकोणेश से होना राजयोग के उत्तम फलो के लिए आवश्यक है।जो ग्रह आपस में राजयोग बना रहे है उन ग्रहो की दशा में राजयोग मिलता है, केन्द्रेश त्रिकोणेश जिस ग्रह की राशि या नक्षत्र में है यदि वह राशि स्वामी या नक्षत्र स्वामी बली है तब उस राशि स्वामी या नक्षत्र स्वामी की दशा में राजयोग का विशेष शुभ फल मिलता है।