वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक प्रबल राजयोग है जो व्यक्ति को सक्षम और समर्थ बनाता है तथा अपने कर्मों के द्वारा व्यक्ति जीवन में सभी प्रकार की चुनौतियों को पीछे छोड़कर जीवन में सफलता के मार्ग पर अग्रसर होता है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि नीच भंग राजयोग के लिए कुंडली में किसी ग्रह का नीच होना पहली अनिवार्य शर्त है।
नीचस्थितो जन्मनि यो ग्रहः स्यात्तद्राशिनाथोऽपि तदुच्चनाथः।
स चन्द्रलग्नाद्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद्धार्मिकचकर्वर्ती ।।२६।।
नीच भंग राजयोग तब बनता ,है जब कुंडली में कोई नीच ग्रह इस प्रकार विराजमान हो कि उसकी नीच अवस्था समाप्त अर्थात् भंग हो जाए और वह प्रबल रूप से राजयोग कारक ग्रह बन जाए तो वह नीच भंग राजयोग कहलाने लगता है।
प्रत्येक ग्रह की कुछ अवस्थाएं होती हैं, इसलिए नीच भंग राज योग को समझने से पूर्व हमें समझ लेना आवश्यक होता है कि कोई ग्रह नीच अवस्था का कब होता है। ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक ग्रह की अवस्थाएं होती हैं जिनमें वह उच्च राशि में, मूल त्रिकोण राशि में, स्वराशि में, मित्र राशि में, सम राशि में, शत्रु राशि में और नीच राशि में स्थित होता है। प्रत्येक ग्रह के लिए यह राशियां अलग-अलग होती हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कोई भी ग्रह उच्च राशि में स्थित होने पर बहुत शक्तिशाली होता है, मूल त्रिकोण राशि में उसके उससे थोड़ा कम शक्तिशाली होता है, अपनी राशि में उससे कम शक्तिशाली होता है और इस प्रकार इसी क्रम में नीच राशि में आकर वह कमजोर हो जाता है और उसके सुफल की जगह कुफल प्रदान करने की संभावना बढ़ जाती है।
उच्च राशि का तात्पर्य यह होता है कि वह ग्रह उच्च बिंदु पर स्थित है जहां से उसका प्रभाव मानव जीवन पर सर्वाधिक रूप से पड़ता है और नीच राशि का तात्पर्य यह है कि वह बिंदु जहां से उस ग्रह का मानव जीवन पर सबसे कम प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार एक ग्रह एक राशि में जितने भोगांश पर परम उच्च अवस्था में होता है, उससे ठीक सप्तम भाव की राशि में उतने ही भोगांश पर स्थित होने पर वह अपनी परम नीच अवस्था में माना जाता है।
उदाहरण के लिए यदि सूर्य मेष राशि में उच्च अवस्था में माना जाता है तो उससे ठीक सप्तम राशि अर्थात् तुला राशि में वह नीच अवस्था में माना जाता है। इसी प्रकार अन्य ग्रह भी एक विशेष राशि में उच्च अवस्था में और एक अन्य विशेष राशि में नीच अवस्था में होते हैं। नीच भंग राजयोग के लिए किसी ग्रह का नीच राशि में स्थित होना परम आवश्यक होता है क्योंकि कोई ग्रह जब नीच अवस्था में होगा तभी उसका भंग होना संभव हो सकता है।
कैसे बनता है नीच भंग राजयोग
प्रत्येक राज योग के निर्मित होने की कुछ विशेष शर्तें होती हैं जैसा कि ऊपर बताया गया है कि नीच भंग राजयोग की पहली शर्त यह होती है कि कोई ग्रह नीच राशि में स्थित होना चाहिए अर्थात् ग्रह जब नीच राशि में होगा, तभी हम इस राज योग के बारे में विचार कर सकते हैं। लेकिन किसी ग्रह का नीच राशि में होना सदैव भंग नहीं हो सकता, इसलिए नीच भंग होने के लिए कुछ आवश्यक शर्तों का होना भी जरूरी है, जिनकी उपस्थिति किसी भी ग्रह की नीच अवस्था को समाप्त या निष्फल कर देती है और वह ग्रह नीच स्थिति से बाहर निकलकर नीच भंग राजयोग के परिणाम देने लगता है। ये विशेष नियम जिनमें नीच भंग राजयोग का निर्माण होता है, आप निम्नलिखित विवरण के आधार पर आसानी से समझ सकते हैं:
नीच भंग राजयोग के लिए एक नियम यह है कि यदि किसी जन्म कुंडली में कोई ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित है और उस राशि का स्वामी यदि चंद्रमा द्वारा अधिष्ठित राशि से केंद्र भाव में स्थित हो तो नीच भंग राजयोग का निर्माण होता है। अर्थात् वह ग्रह नीच अवस्था से बाहर निकल जाता है और अच्छे परिणाम देने लग जाता है।
एक अन्य नियम के अनुसार जब कोई ग्रह कुंडली में नीच राशि में स्थित हो तो उस नीच राशि का उच्च नाथ (जो ग्रह उच्च राशि में उच्च स्थिति में माना जाता हो) चंद्रमा से केंद्र भाव की राशि में स्थित हो तो नीच भंग राजयोग का निर्माण होता है।
एक अन्य नियम के अनुसार यदि कोई ग्रह नीच राशि में स्थित है लेकिन उस राशि का स्वामी ग्रह, जिसमें वह ग्रह नीच अवस्था में है, कुंडली के लग्न से केंद्र भाव में अर्थात् प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में विराजमान हो तो नीच भंग राजयोग बन जाता है।
एक नियम यह भी कहता है कि ग्रह जिस राशि में नीच अवस्था में है, उस नीच राशि का उच्च नाथ कुंडली के लग्न से केंद्र भाव में स्थित हो तो भी नीच भंग राज योग निर्मित होता है।
एक ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित है और उस नीच राशि का स्वामी ग्रह अपनी उच्च राशि को देख रहा हो अर्थात् दृष्टि दे रहा हो तो नीच भंग राज योग निर्मित होता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जिस राशि में नीच अवस्था में कोई ग्रह बैठा हो, उस राशि में उच्च अवस्था में माने जाने वाला ग्रह चंद्रमा द्वारा अधिष्ठित राशि से केंद्र भाव में हो तो नीच भंग राज योग निर्मित होता है।
नीच भंग राजयोग के निर्माण की एक स्थिति यह भी है कि जिस राशि में नीच अवस्था में कोई ग्रह बैठा है, उस राशि में उच्च स्थिति वाला ग्रह कुंडली में लग्न से केंद्र भावों में स्थित हो तो ऐसी स्थिति में नीच भंग राजयोग बन जाता है और उस ग्रह का नीचत्त्व समाप्त हो जाता है।
नीच भंग राजयोग के निर्माण की एक स्थिति यह भी है कि जिस राशि में कोई ग्रह नीच अवस्था में स्थित है, उसी राशि में कोई ग्रह अपनी उच्च अवस्था में स्थित हो तो स्वतः ही नीच भंग राजयोग निर्मित हो जाता है।
वैदिक ज्योतिष में जन्म कुंडली के साथ-साथ नवमांश कुंडली उनको भी अत्यंत महत्व दिया गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए एक अन्य नियम यह भी है कि यदि कोई ग्रह जन्म कुंडली में अपनी नीच राशि में स्थित है लेकिन नवमांश कुंडली में यदि वही ग्रह अपनी उच्च राशि में स्थित होता है तो नीच भंग राजयोग बन जाता है और उस ग्रह के नीच स्थिति के फलों की स्थिति में परिवर्तन आ जाता है और वह अच्छे परिणाम देने लगता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त एक अन्य नियम यह भी है कि यदि कोई ग्रह नीच राशि में स्थित है और उस नीच राशि में जो ग्रह उच्च अवस्था में माना जाता हो, वे दोनों ग्रह एक दूसरे से केंद्र में हों तो नीच भंग राज योग निर्मित होता है।
कुंडली में कोई ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित हो तो वह अशुभ परिणाम देने वाला माना जाता है लेकिन यदि उस ग्रह का नीचत्व समाप्त अथवा भंग हो जाए अर्थात् नीच भंग राजयोग का निर्माण हो जाए तो वह ग्रह अपनी नीच अवस्था के फल ना देकर शुभ फल देने में सक्षम हो जाता है। यही इस नीच भंग राजयोग की प्रमुख विशेषता है। ऐसा किन परिस्थितियों में हो सकता है, वह हम ऊपर दी गई जानकारी और नियमों के आधार पर पता लगा सकते हैं.