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किस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे का कैसा भविष्य रहेगा साथ ही कौन से हैं मूल नक्षत्र या गण्डमूल नक्षत्र क्या है उनके प्रभाव और उपाय

जानिये उन लक्षणों को जिनसे किसी नक्षत्र विशेष  में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव ज्ञात होता है।

  

अब से लगभग दो अरब वर्ष पूर्व वर्तमान सृष्टि का उदय हुआ.ब्रह्माण्ड में असंख्य तारे व नक्षत्र हैं.तारों के समूह को कुल सत्ताईस नक्षत्रों में विभक्त कर दिया गया है और इन नक्षत्रों को बारह राशियों में बांटा गया है.प्रत्येक में चार चरण होते हैं.सूर्य (जो कि एक तारा है),चन्द्र (जो सूर्य से प्रकाशित और खुद छाया ग्रह है),मंगल,बुध,ब्रहस्पति,शुक्र और शनि -ये सात ग्रह माने जाते हैं.हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर थोड़ी सी (२३.५ डिग्री)झुकी हुयी है .इस प्रकार इसके उत्तरी व दक्षिणी दोनों ध्रुवों का भी इसके निवासियों पर प्रभाव पड़ता है.साथ ही प्रत्येक ग्रह व नक्षत्र से आने वाली रश्मियों  को भी ये ध्रुव परावर्तित करते हैं.ज्योतिष में पृथ्वी  के इन छोरों की गणना छाया ग्रह के रूप में क्रमशः राहू व केतु नामों से की गयी है.(तथा कथित धार्मिकों-पौराणिकों के अमृत-कलश और  सर-धड वाली झूठी कहानी के बहकावे में न आयें) इसी लिए राहू व केतु कभी भी साथ-साथ एक ही राशि में नहीं पड़ते बल्कि इनकी राशियों में पूर्ण १८० डिग्री का अंतर रहता है.भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा को मन का प्रतीक  माना गया है और यह तीव्रगामी ग्रह है।

किसी बच्चे के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र व राशि में भ्रमण कर रहा है उस बच्चे का जन्म का वही नक्षत्र व राशि निर्धारित होती है।आजीवन इस नक्षत्र का प्रभाव उस बच्चे पर पड़ता है।ऐसा उसके पूर्व जन्मों के संस्कारों पर निर्भर होता है।किस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे का कैसा भविष्य रहेगा,ऐसा हमारे ऋषियों ने (जो महान वैज्ञानिक भी थे) अपने अनुभव के आधार पर निर्धारित किया है जो इस प्रकार है-

 

अश्वनी नक्षत्र  –में उत्त्पन्न मनुष्य सुन्दर रूपवाला ,सुभग(भाग्यवान),हर एक कामों में चतुर,मोटी देह वाला,बड़ा धनवान और लोगों का प्रिय होता है।

 

भरणी नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य निरोग,सत्य-वक्ता,सुन्दर जीवन,दृढ  नियम वाला,खूब सुखी और धनवान होता है।

 

कृतिका नक्षत्र -में जन्म लेने वाला मनुष्य कंजूस,पाप-कर्म करने वाला,हर समय भूखा,नित्य पीड़ित रहने वाला और सदा नीच कर्म करने वाला होता है।

 

रोहिणी नक्षत्र-में जन्म लेने वाला बुद्धिमान,राजा से मान्य,प्रिय बोलने वाला,सत्य -वक्ता,और सुन्दर रूप वाला होता है।

 

मृगशिरा नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य देह आकृति से ठीक ,मानसिक रूप से असंतुष्ट,समाज प्रिय ,अपने कार्य में दक्ष,चपल-चंचल,संगीत-प्रेमी,सफल व्यवसायी,अन्वेषक,अल्प-व्यवहारी,परोपकारी,नेत्रित्व क्षमताशील होता है।

 

आर्द्रा  नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य कृतघ्न -किये हुए उपकार को न मानने वाला -क्रोधी,पाप में रत रहने वाला ,शठ और धन-धान्य से रहित होता है।

 

पुनर्वसु नक्षत्र -में जन्म लेने वाला मनुष्य शान्त स्वभाव वाला,सुखी,अत्यंत भोगी,सुभग,सभी जनों का प्रेमी

और पुत्र,मित्र आदि से युक्त होता है।

 

पुष्य नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य देव,धर्म,धन आदि सबों से युक्त,पुत्र से युत,पंडित(ज्ञानी),शान्त स्वभाव ,सुभग और सुखी होता है।

 

आश्लेषा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य सब पदार्थों को खाने वाला अर्थात मांसाहारी ,दुष्ट आचरण वाला,कृतघ्न,ठग और दुर्जन तथा स्वार्थपरक कामों को करने वाला होता है।

 

मघा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य धनी,भोगी,नौकरी से संपन्न,पितृ-भक्त,बड़ा उद्योगी,सेनापति या राजसेवा करने वाला होता है।

 

पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र-में जन्म लेने वाला मनुष्य विद्या ,गौ,धन आदि से युक्त,गम्भीर,स्त्री-प्रिय,सुखी और विद्वान से आदर पाने वाला होता है।

 

उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य सहनशील,वीर,कोमल वचन बोलने वाला,शस्त्र विद्या में प्रवीण ,महान योद्धा और लोकप्रिय होता है।

 

हस्त नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य मिथ्या बोलने वाला,ढीठ ,शराबी,चोर,बंधुहीन और पर स्त्रीगामी होता है।

 

चित्रा नक्षत्र-में जन्म लेने वाला मनुष्य पुत्र और स्त्री से युक्त,सदा संतुष्ट,धन-धान्य से युक्त देवता और ब्राह्मणों का भक्त होता है।

 

स्वाती नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य चतुर ,धर्मात्मा,कंजूस,स्त्रियों का प्रेमी,सुशील और देश भक्त होता है।

 

विशाखा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य अधिक लोभी ,अधिक घमंडी,कठोर,कलहप्रिय और वेश्यागामी होता है।

 

अनुराधा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य अपने पुरुषार्थ से विदेश में रहने वाला ,अपने भाई -बंधुओं की सेवा करने वाला परन्तु ढीठ होता है।

 

ज्येष्ठा नक्षत्र -में उत्पन्न मनुष्य मित्रोंसे संपन्न,श्रेष्ठ,कवि,सहशील,विद्वान,धर्म में तत्पर और शूद्रों द्वारा पूजा जाता है।

 

मूल नक्षत्र -में जन्म लेने वाला मनुष्य सुख-संपन्न,धन,वाहन से युक्त,हिंसक,बलवान,विचारवान,शत्रुहंता,विद्वान और पवित्र होता है।

 

पूर्वाषाढ़ नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य देखने मात्र से ही परोपकारी ,भाग्यवान,लोकप्रिय और सम्पूर्ण विद्वान होता है।

 

उत्तराषाढ़ नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य बहू-मित्र संपन्न,हृष्ट-पुष्ट,वीर,विजयी,सुखी और विनीत स्वभाव का होता है।

 

श्रवण नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य किये हुए उपकार को मानने वाला,सुन्दर,दानी,सर्वगुण-संपन्न,धनवान और अधिक संतान्युक्त होता है।

 

धनिष्ठा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य गाने का शौक़ीन ,भाइयों से आदर प्राप्त करने वाला,स्वर्ण-रत्न आदि से भूषित तथा सैंकड़ों मनुष्यों का मालिक बन कर रहता है।

 

शतभिषा नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य कंजूस,धनवान,पर-स्त्री का सेवक तथा विदेशी महिला से काम करने वाला होता है।

 

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य सभा-वक्ता,सुखी,संतान-युक्त,अधिक सोने वाला और अकर्मण्य होता है।

 

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य गौर-वर्ण,सत्व-गुण युक्त ,धर्मग्य,साहसी,शत्रु हन्ता और देव-तुली होता है।

 

रेवती नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य

के सर्वांग पूर्ण पुष्ट,पवित्र,चतुर,सज्जन,

वीर,विद्वान और भौतिक सुखों से संपन्न होता है।

 

इन सत्ताईस नक्षत्रों के एक २८ वां नक्षत्र भी होता है जो उत्तराषाढ़ नक्षत्र की अंतिम १५ घटी तथा श्रवण नक्षत्र की प्रारम्भिक ०४ घटी अर्थात कुल १९ घटी का बनता है .इसे ‘अभिजित नक्षत्र ‘कहते हैं।

 

अभिजित नक्षत्र-में जन्मा मनुष्य उत्तम भाग्य शाली होता है.वह अत्यंत सुन्दर,कान्तियुक्त,स्वजनों का प्रिय,कुलीन,यश्भागी,ब्राह्मण एवं देवता का भक्त,स्पष्ट-वक्ता और अपने खानदान में नृप तुल्य होता है।

 

अपने-अपने पूर्वजन्मों के संचित संस्कारों के आधार पर मनुष्य विभिन्न नक्षत्रों में जन्म लेकर तदनुरूप चरित्र तथा आचरण वाला बन जाता है.यदि आप अपने कर्म को परिष्कृत करके आचरण करें तो आगामी जन्म अपने अनुकूल नक्षत्र में भी प्राप्त कर सकते हैं.तो चुनिए अपने आगामी जन्म का नक्षत्र और अभी से सदाचरण में लग जाइए और अपने भाग्य के विधाता स्वंय बन जाइए।

 

जो यह कहना चाहें कि,पूर्व जन्म और पुनर्जन्म होता ही नहीं है ,वे इस आलेख को सहजता से नजर-अंदाज कर सकते हैं।

 

*मूल नक्षत्र | गण्डमूल नक्षत्र प्रभाव और उपाय

 

 ज्योतिष में नक्षत्र सताईस होते है उनमे से यह छह ज्येष्ठा, आश्लेषा, रेवती,मूल, मघा और अश्विनी नक्षत्र की गणना मूल नक्षत्र में की जाती है। राशि और नक्षत्र की समाप्ति जब एक ही स्थान पर होती हैं तब यह स्थिति गण्ड या मूल नक्षत्र कहलाती है। राशि और नक्षत्र की समाप्ति से ही नए राशि और नक्षत्र के प्रारम्भ होने के कारण ही यह नक्षत्र मूल संज्ञक नक्षत्र कहे जाते हैं।

 

 

गण्डमूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक स्वयं तथा अपने माता,पिता मामा आदि के लिए कष्ट प्रदान करने वाला होता है। यही कारण है कि परिवार के लोगो को जैसे ही यह पता चलता है मेरा बच्चा मूल में पैदा हुआ है वैसे ही घबड़ा जाते है और नकारात्मक विचारों से ग्रसित हो जाते है और इसका प्रभाव सीधे बच्चा के ऊपर पड़ना शुरू हो जाता है चुकि बच्चा अपने जन्म के बारह सालो तक अपने माता-पिता के कर्मो से प्रभावित होता है तो ऐसी स्थिति में बच्चा माता-पिता के नकारात्मक विचारों को अपने माता-पिता के ऊपर ही प्रत्यारोपित कर देता है परिणामस्वरूप परिवार कष्टमय जीवन व्यतीत करने लगता है इसलिए यदि आपका बच्चा मूल में जन्म लिया है तो घबराए नहीं नकारात्मक विचार नहीं लाये शास्त्र में निर्धारित उपाय कराये आपके लिए और आपके बच्चे के लिए शुभ ही शुभ होगा।

 

गण्डमूल नक्षत्र जन्म लेने वाला बालक शुभ प्रभाव में है तो वह सामान्य बालक से कुछ अलग विचारों वाला होता है  यदि उसे सामाजिक तथा पारिवारिक बंधन से मुक्त कर दिया जाए तो ऐसा बालक जिस भी क्षेत्र में जाएगा एक अलग मुकाम हासिल करेगा। ऐसे बालक तेजस्वी, यशस्वी, नित्य नव चेतन कला अन्वेषी होते है। यह इसके अच्छे प्रभाव हैं। अगर वह अशुभ प्रभाव में है तो इसी नक्षत्रों में जन्मा बालक क्रोधी, रोगी, र्इष्यावान, लम्पट होगा इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।  इस अशुभता की शुभता के लिए गण्डमूल दोष की विधिवत शांति करा लेना चाहिए।

       मूल नक्षत्र

 

कैसे बनता है मूल नक्षत्र-गण्डमूल नक्षत्र

 

राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर उदय और मिलन के आधार पर गण्डमूल नक्षत्रों का निर्माण होता है। इसके निर्माण में कुल छह 6 स्थितियां बनती हैं। इसमें से तीन नक्षत्र गण्ड के होते हैं और तीन मूल नक्षत्र के होते है।

 

कर्क राशि तथा आश्लेषा नक्षत्र  की समाप्ति साथ-साथ होती है वही सिंह राशि का समापन और मघा राशि का उदय एक साथ होता है। इसी कारण इसे अश्लेषा गण्ड संज्ञक और मघा मूल संज्ञक नक्षत्र कहा जाता हैं।

 

वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र की समाप्ति एक साथ होती हैं तथा धनु राशि और मूल नक्षत्र  का आरम्भ यही से होता है। इसलिए इस स्थिति को ज्येष्ठा गण्ड और ‘मूल’ मूल नक्षत्र कहा जाता हैं।

 

मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं तथा मेष राशि व अश्विनि नक्षत्र की शुरुआत  एक साथ होती है। इसलिए इस स्थिति को रेवती गण्ड और अश्विनि मूल नक्षत्र कहा जाता हैं।

 

ऊपर कहे गए तीन गण्ड नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती का स्वामी ग्रह बुध और तीन नक्षत्र  मघा, मूल तथा अश्विनि का स्वामी केतु ग्रह है। जन्म  दिन से सत्ताइसवें दिन जन्म नक्षत्र  की पुनः आवृति होती है तब मूल और गण्ड नक्षत्रों के शुभ फल की प्राप्ति के लिए गण्ड-मूल उपाय कराया जाता है।

 

*मूल नक्षत्र और गण्डवास का महत्त्व

 

सर्वप्रथम गण्डवास देखना चाहिए कि गण्ड का वास जन्म काल में कहाँ है। मुहूर्तचिंतामणि के अनुसार —

 

*स्वर्गेशुचि प्रौष्ठपदेशमाघे भूमौ नभः कार्तिकचैत्रपौषे।

*मूलं हि अधस्तास्तु तपस्यमार्गवैशाख शुक्रेष्वशुभं च तत्र।।

 

अर्थात =आषाढ़, भाद्रपद आश्विन व माघ में गण्ड  का वास स्वर्ग में श्रवण कार्तिक चैत्र व पौष मास में गण्डवास मृत्युलोक अथवा पृथ्वी पर तथा ज्येष्ठ वैशाख मार्गशीर्ष व फाल्गुन  मास में पाताल अर्थात नरक में गण्ड का वास होता है।  जन्म काल में  मूल का जिस लोक में वास होता है उसी लोक का अनिष्ट करता है अतः मृत्यलोक अर्थात धरातल पर  वास होने की स्थिति में ही अनिष्ट है।

 

*मूल नक्षत्र | गण्डमूल नक्षत्र का चरणवार प्रभाव

 

*मुलामघाश्विचरणे प्रथमे पितुश्च पौष्णेन्द्रयोश्च फणिनस्तु चतुर्थपादे।

 

*मातुः पितुः सववपुषो स्ववपुष: अपि करोति नाशं जातो यथा निशि दिनेप्यथ सन्धयोश्च।।

 

अर्थात =मुला मघा और अश्विनी के प्रथम चरण का जातक पिता के लिए, रेवती के चौथे चरण और रात्रि का जातक माता के लिए, ज्येष्ठ के चतुर्थ चरण और दिन का जातक पिता तथा आश्लेषा के चौथे चरण संधिकाल ( दिन से रात,व रात से दिन की संधि) में जन्म हो तो स्वयं के लिए जातक अरिष्ट कारक होता है।

 

*गण्डमूल अश्विनी नक्षत्र का प्रभाव

 

मेष राशि में अश्विनी नक्षत्र शून्य अंश से प्रारम्भ होकर 13:20 अंश  तक तक रहता है जन्म के समय यदि चंद्रमा 2 : 30 अंशों के मध्य अर्थात प्रथम चरण में स्थित हो तो गण्डमूल नक्षत्र में जन्म माना जाता है। अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक को अपने जीवन काल में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने पर बच्चा पिता के लिए कष्टकारी होता है परन्तु हमेशा नहीं।

 

प्रथम चरण – पिता को शारीरिक कष्ट एवं  हानि।

 

दूसरे चरण —परिवार में सुख शांति ।

 

तीसरे चरण — सरकार से लाभ  तथा मंत्री पद का लाभ ।

 

चतुर्थ चरण —परिवार एवं जातक को राज सम्मान तथा ख्याति ।

 

*गण्डमूल मघा नक्षत्र का प्रभाव

 

सिंह राशि के आरम्भ के साथ ही मघा नक्षत्र शुरु होता है। परन्तु सिंह राशि में जब चंद्रमा शून्य से लेकर दो अंश और बीस मिनट अर्थात प्रथम चरण में रहता है तब ही गंडमूल नक्षत्र माना गया है।

 

प्रथम चरण  — माता को कष्ट होता है।

 

दूसरे चरण –    पिता को कोई कष्ट या हानि  होता है।

 

तीसरे चरण –  जातक सुखी जीवन व्यतीत करता है।

 

चौथे चरण –    जातक को धन विद्या का लाभ, कार्य क्षेत्र में स्थायित्व प्राप्त होता है।

 

*गण्डमूल मूल नक्षत्र का प्रभाव

 

जब चंद्रमा धनु राशि में शून्य से तेरह अंश और बीस मिनट के मध्य स्थित होता है तब यह मूल नक्षत्र में आता है परन्तु जव चन्द्रमा शून्य अंश से तीस मिनट अर्थात प्रथम चरण में हो तो गण्ड मूल में उत्पन्न जातक कहलाता है।

 

प्रथम चरण –  पिता के जीवन के लिए घातक।

 

दूसरे चरण – माता के लिए अशुभ, को कष्ट।

 

तीसरे चरण – -धन नाश।

 

चतुर्थ चरण – जातक सुखी तथा समृद्ध जीवन व्यतीत करता है।

 

*गण्डमूल आश्लेषा नक्षत्र का प्रभाव

 

जब चंद्रमा जन्म के समय कर्क राशि में 16 अंश और 40 मिनट से 30 अंश के मध्य स्थित होता है तब आश्लेषा नक्षत्र कहलाता है। परन्तु जव चन्द्रमा  छब्बीस अंश से चालीस मिनट अर्थात चतुर्थ चरण में हो तो गण्डमूल में उत्पन्न जातक कहलाता है।

 

प्रथम चरण —शांति और सुख मिलेगा।

 

दूसरे चरण –  धन नाश,बहन-भाईयों को कष्ट।

 

तृतीय  चरण — माता को कष्ट।

 

चतुर्थ चरण —  पिता को कष्ट, आर्थिक हानि।

 

*गण्डमूल ज्येष्ठ नक्षत्र का प्रभाव

 

जब चंद्रमा जन्म के समय  वृश्चिक राशि में 16 अंश और 40 मिनट से 30 अंश के मध्य स्थित होता है तब ज्येष्ठ नक्षत्र कहलाता है। परन्तु जव चन्द्रमा  छब्बीस अंश और चालीस मिनट अर्थात चतुर्थ चरण में हो तो गण्डमूल में उत्पन्न जातक कहलाता है।

 

प्रथम चरण – बड़े भाई-बहनों को कष्ट।

 

दूसरे चरण –  छोटे भाई – बहनों के लिए अशुभ।

 

तीसरे चरण –  माता को कष्ट।

 

चतुर्थ चरण – स्वयं का नाश।

 

गण्डमूल रेवती नक्षत्र का प्रभाव

 

मीन राशि में 16 अंश 40 मिनट से 30 अंश तक रेवती नक्षत्र होता है। जिस समय चंद्रमा मीन राशि में 26 अंश और 30  मिनट के मध्य रहता है तो गंडमूल नक्षत्र वाला जातक कहलाता है।

 

प्रथम चरण  – जीवन सुख और आराम में व्यतीत होगा।

 

दूसरे चरण – मेहनत एवं  बुद्धि से नौकरी में उच्च पद  प्राप्त।

 

तीसरे चरण –  धन-संपत्ति का सुख के साथ धन हानि  भी।

 

चतुर्थ चरण -स्वयं के लिए कष्टकारी  होता है।

 

मूल नक्षत्र | गण्डमूल नक्षत्र शान्ति के उपाय

 

यदि बच्चा का जन्म गंडमूल नक्षत्र में हुआ है तो उसके पिता को चाहिए कि अपने बच्चे का चेहरा

न देखे और तुरंत पिता कि जेब में फिटकड़ी का टुकड़ा रखवा देना चाहिए ततपश्चात २७ दिन तक प्रतिदिन २७ मूली पत्तो वाली बच्चे के सिर कि तरफ रख देना चाहिए और पुनः उसे दुसरे दिन चलते पानी में बहा देना चाहिए।  यह क्रिया २७ दिनों तक नियमित करना चाहिए। इसके बाद २७ वे दिन विधिवत पूजा करके बच्चे को देखना चाहिए।

जिस जन्म नक्षत्र में जन्म हुआ है उससे सम्बन्धित देवता तथा ग्रह की पूजा करनी चाहिए। इससे नक्षत्रों के नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है।

अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेशजी की पूजा अर्चना करने से लाभ मिलता है।

आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की अराधना करना चाहिए तथा  बुधवार के दिन हरी वस्तुओं जैसे  हरा धनिया, हरी सब्जी, हरा घास इत्यादि का दान करना चाहिए।

गंडमूल में जन्में बच्चे के जन्म के ठीक 27वें दिन गंड मूल शांति पूजा करवाई जानी चाहिए, इसके अलावा ब्राह्मणों को दान, दक्षिणा देने और उन्हें भोजन करवाना चाहिए। इसके लिए नक्षत्र का मन्त्र जाप

27 कुओं का जल,

27 तीर्थ स्थलों के कंकण,

समुद्र का फेन,

27 छिद्र का घड़ा,

27 पेड़ के पत्ते,

07 निर्धारित अनाज

07 खेडो की मृतिका

आदि दिव्य जड़ी-बूटी औषधियों के द्वारा शांति प्रक्रिया सम्पन्न कराना चाहिए।यह क्रिया 27 दिन तक जबतक वह नक्षत्र हो 27 माला का जप, हवन तर्पण मार्जन कर 27 लोगो को भोजन कराना चाहिए पुनः दक्षिणा देकर अपने बालक का चेहरा देखना चाहिए।

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