ऋग्वेद में गोतम ऋषि का उल्लेख बहुत सम्मान के साथ कई जगह हुआ है, विशेष तौर पर प्रथम मंडल में। वामदेव भी उनका नाम बार-बार लेते हैं। कहा जाता है कि गोतम ऋषि आङ्गिरसों से सम्बद्ध थे। यह निर्विवाद है कि गोतम रहूगण के पुत्र थे। रहूगण के सूक्त ऋग्वेद के नवम मंडल में मिलते हैं। हमारे लिये सबसे बड़ी सूचना यह है कि गोतम को प्राचीनतम तीन ऋषियों में से एक वामदेव का पिता होने का गौरव प्राप्त है। इस दृष्टि से विचार करें, तो गोतम ऋग्वेद की संस्थापक परम्परा में आते हैं। वे ऋग्वेद के शीर्षस्थ ऋषियों से भी पहले हैं, इसीलिये उनके नाम का उल्लेख भी कई ऋषि करते हैं। आश्चर्य नहीं कि गोतम वसिष्ठ और विश्वामित्र के पूर्ववर्ती हैं, और गोतम-परम्परा तब से ही चली आ रही है। वामदेव और उनके बाद की वंशावली गोतम नाम से ही प्रसिद्ध हुई। गोतम ऋषि का चलाया गोत्र सबसे प्राचीन है। यह भी कहा जाता है कि गोत्र-विचार गोतम ऋषि की ही देन है। इतना तय है, कि गोतम वंश स्वयं गोतम ऋषि, रहूगण ऋषि और वामदेव ऋषि के कारण पवित्र है।
यह तो मान लिया गया है कि गोतम महान् ऋषि हैं, उनके प्रति दूसरे ऋषियों में पूजाभाव भी है, लेकिन यह भी माना जाता है कि स्वयं गोतम का रचा हुआ कोई सूक्त ऋग्वेद में नहीं है। यह दूसरी बात मान लेना ठीक नहीं है। इतने बड़े और अत्यंत पुरातन ऋषि को वेदों के संकलनकर्ता अनदेखा कर ही नहीं सकते थे। ऋग्वेद के नवम मंडल में गोतम ऋषि का एक स्वतंत्र सूक्त (ऋग्वेद:९:३१) उपलब्ध है। यह सूक्त एक सुन्दर प्रार्थना के रूप में हमारा ध्यान आकर्षित करता है। इस सूक्त की पहली ऋचा है-‘प्र सोमास स्वाध्य पवमानासो अक्रमुः। रयिं कृण्वन्ति चेतनम्।।’ ऋषि गोतम कह रहे हैं- ‘हे आनंदमय! तुम हममें प्रवाहमान हो। हमारे ध्यान को पवित्र करो। हमारे चेतन-मन को जाग्रत करो।’ ध्यान को पवित्र करने और चेतन-मन को जाग्रत करने का यह वैदिक मनोविज्ञान गोतम ऋषि की देन है।
गोतम ऋषि का यह एक ही सूक्त है, इसमें भी केवल छः ऋचाएँ। इन छहों ऋचाओं में गोतम ऋषि की प्रार्थना का स्वर सरल, सहज होकर भी गूढ़ है। गोतम ऋषि स्पष्ट करते हैं कि वायु में सोम ही प्रवाहित है, सिन्धुओं में सोम ही प्रवाहित है, और हम सब प्राणियों में भी सोम का ही तेज समाया हुआ है। वह आनंदब्रह्म है, जो हमारे सब ओर व्याप्त है। द्युलोक से लेकर पृथ्वी के अंतिम छोर तक उसीके सूत्र फैले हुए हैं। ऋषि गोतम कहते हैं कि धेनुओं में जो अमृततुल्य पय है, जो रस की धारा है, वह आनंद ही है।
गोतम ऋषि की महत्ता इस बात से भी प्रमाणित होती है कि कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज के साथ गोतम भी सप्तर्षियों में सम्मिलित हैं। इससे बड़ी बात यह कि सप्तर्षियों का पूरा एक सूक्त (ऋग्वेद ९:१०७) मिलता है, जो सातों ऋषियों ने मिलकर रचा। यह पता लगाना कठिन है कि इस सूक्त की कुल २६ ऋचाओं में से कौन सी किसकी है। सभी ऋचाएँ सप्तर्षि की मानी जाती है। सप्तर्षियों का यह सबसे पुराना और प्रामाणिक दस्तावेज है हमारे पास। यह सप्तर्षि-मंडल वेदों का प्रहरी माना गया है, सनातन की रक्षा करने वाला भी यही है, और वैदिक तत्व-दर्शन की व्याख्या करने वाला भी यही है। इसीलिये ऋषि-पूजन में इन्हीं सात ऋषियों की पूजा का विधान है।
यह ध्यान रहे कि इन सात ऋषियों में सबसे वरिष्ठ गोतम हैं। गोतम ऋषि उस ऋषि परम्परा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने ऋग्वेद का उदयकाल देखा। मैं ऐसा मान कर चलता हूँ कि गोतम ऋषि उस युग में हुए, जब वेदों का भाषाशास्त्र, छंदशास्त्र, स्वरशास्त्र तप कर तैयार हो चुका था, और सप्तसिन्धु के तट की उपत्यकाओं में ऋषियों के आश्रम बन रहे थे, साथ ही पारिवारिक व कौटुम्बिक शाखाओं में ऋचाओं का सस्वर गान होने लगा था। इस तरह गोतम ऋषि हमारी वेद-परम्परा के जनक हैं। उनका पवित्र स्मरण हमारे पूर्वजों की आधार-भूमि का स्मरण करने के समतुल्य है। वेदों से लेकर पुराणों तक, और उसके बाद के भी ऋषिकुल गोतम ऋषि के आगे शीश झुकाते हैं।