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ऑपरेशन रांदोरी बेहाक - भारतीय सैनिकों की वीरता को नमन करने का दिन है।

आज रविवार है। भारतीय सैनिकों की वीरता को नमन करने का दिन है। आज एक रोमांचक घटना की शौर्यगाथा साझा कर रहा हूँ, जिसे कल पूरे पाँच वर्ष हो चुके हैं।

जब आतंकी हमारी पवित्र धरती पर नापाक कदम रखते हैं, तो उनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ विनाश करना होता है। वास्तव में, इसका उन्हें कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं होता। केवल उन्माद, कट्टरता और दूसरों की भड़काने पर, बिना सोचे-समझे वे यह पापपूर्ण कार्य करने का दुस्साहस करते हैं। और जो कार्य ही नापाक है, उसमें सफलता कैसे मिल सकती है?

ऐसी नापाक कोशिशों को रोकने के लिए, अपने देश और देशवासियों की रक्षा के लिए, रणचंडी को अपने रक्त का अर्पण देने को तत्पर हमारे बहादुर सैनिकों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है — यह अत्यंत दुःखद है। उस दिन उनके छह मारे गए और हमारे पाँच जवान शहीद हो गए। इसमें किसी का भी फायदा नहीं हुआ, नुकसान दोनों ओर का हुआ।

अगर वही आतंकी हमारे देश में, किसी गाँव में शांतिपूर्वक रहते, बच्चों की परवरिश करते, अपने परिवार की देखभाल करते, तो बेहतर होता। लेकिन नहीं — उनमें बचपन से ही समझ की कमी होती है। उनसे अच्छे व्यवहार की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। खैर, जितना लिखा जाए, कम ही है। समझदार को इशारा ही काफी है।

जय हिंद।

 ऑपरेशन रांदोरी बेहाक…

अर्थात – दुश्मन से सीधी भिड़ंत!

 

जैसे जापानी युद्ध-खेलों में विरोधी पूरी ताकत से एक-दूसरे पर टूट पड़ते हैं… घातक हमला करते हैं… अपनी जान की परवाह किए बिना… क्योंकि दुश्मन भी उतनी ही तीव्रता से हमला करता है — जैसे कोई पागल जंगली सुअर। शायद इस प्रकार के युद्ध को ही ‘रांदोरी’ कहा जाता है।

यह घटना अप्रैल 2020 की है। उस समय लोग अपने जीवन को लेकर इतने चिंतित थे कि उन्हें पता ही नहीं था कि देश के किसी कोने में क्या चल रहा है। जैसे दुनिया रुकी थी, वैसे ही हिंदुस्तान भी कोरोना के कारण थमा हुआ था। मौत के डर से सड़कें वीरान थीं, लेकिन सीमा पर गश्त जारी थी।

भारत-पाकिस्तान सीमा पर बर्फीली तूफान और भीषण ठंड का कहर था। कांटेदार बाड़ें बर्फ में दब चुकी थीं। चारों तरफ सिर्फ बर्फ ही बर्फ थी — लेकिन आधुनिक यंत्रों की नजरें देख रही थीं।

इसी का फायदा उठाकर पांच प्रशिक्षित पाकिस्तानी आतंकी भारतीय सीमा पार कर कश्मीर में दाखिल हो गए थे, खूनखराबा करने की नीयत से।

जगह थी – कुपवाड़ा सेक्टर का केरन क्षेत्र। भारत के ड्रोन (UAV) और आधुनिक उपकरणों ने उन आतंकियों के पदचिन्ह पहचान लिए और जानकारी नियंत्रण कक्ष तक पहुंचा दी।

तारीख – 1 अप्रैल, 2020


कमांडर्स ने योजना बनाई और आदेश दिया। हमारे जवान उस विकट मौसम में आतंकियों के पीछे निकल पड़े — बर्फ़ीली आँधियाँ, अंधेरा, लेकिन वे रुके नहीं।

1 अप्रैल को आतंकी हाथ नहीं लगे। 2 और 3 अप्रैल को तलाश जारी रही। इन दिनों में कई बार मुठभेड़ हुई, लेकिन आतंकी भाग निकले। जाते-जाते वे अपने भारी हथियार छोड़ गए।

5 अप्रैल – ऑपरेशन का पाँचवां दिन। आतंकियों को न तो लौटने देना था और न घुसने देना था — उन्हें वहीं समाप्त करना था।

वे सभी पाँच आतंकी एक नाले में छिपे थे। उनके पास आधुनिक संचार उपकरण, भोजन, शराब, दर्दनिवारक दवाएं और हथियार मौजूद थे।

अब समय था स्पेशल फोर्स – पेरा एस.एफ. को मैदान में उतारने का। दो-दो कमांडो की टीमें हेलिकॉप्टर से संभावित ठिकानों के पास उतारी गईं।

कमर से ऊपर बर्फ थी — जैसे किसी झील में उतर आए हों।
टीम का नेतृत्व कर रहे थे – सुभेदार संजीव कुमार।
साथ में थे — पैरा ट्रूपर बालकृष्णन, छत्रपाल सिंह, अमित कुमार, हवलदार दवेंद्र सिंह आदि।

रात बीत गई। पहाड़ों पर चढ़ाई, गले तक बर्फ, गहरी खाइयाँ… एक जगह बर्फ के नीचे खाई छुपी थी। वहीं आतंकी छिपे थे।

सुभेदार संजीव कुमार आगे बढ़ रहे थे, पीछे बालकृष्णन और छत्रपाल। बर्फ की परत उनका भार नहीं सह पाई और तीनों लगभग 150 फीट नीचे गिर पड़े।

गिरते ही उनके सामने पांचों आतंकी खड़े थे!
अचानक उनपर गोलियाँ चलनी लगीं। घायल होकर भी तीनों जवानों ने जवाबी हमला किया।

ऊपर से बाकी जवानों ने भी छलांग लगा दी — जिसमें पैरा ट्रूपर सोनम शेरिंग तमांग भी शामिल थे।

संजीव कुमार और अमित कुमार ने हाथों से लड़ाई शुरू की — उन्हें 15 से ज्यादा गोलियां लगीं। तमांग ने एक आतंकी को पास से मार गिराया, एक पर हैंड ग्रेनेड फेंका।

अमित कुमार वहीं शहीद हो गए। संजीव कुमार को भी तमांग ने खींचा, लेकिन देर हो चुकी थी।

इन पाँच वाघों (शेरों) ने अपनी शहादत से पाँचों आतंकियों को नरक भेज दिया।
एक आतंकी भागा, लेकिन फिर वह भी मारा गया।

सिर्फ तमांग ही जीवित बचे — ताकि वे अपने वीर साथियों की कहानी बता सकें।

देश ने पाँचों शहीदों को मरणोपरांत सम्मान दिया।
सोनम शेरिंग तमांग को राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद के हाथों शौर्य चक्र मिला — वे अपने साथियों की याद में भावुक हो उठे।

5 अप्रैल 2025 को इस बलिदान को 5 साल पूरे हुए।

भारत माता की हिमभूमि पर अपने लहू से शौर्य की गाथा लिखने वाले इन वीरों को सादर नमन। 🙏

 

(जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध खबरों, ट्वीट्स, वीडियो आदि पर आधारित। Heroes in Uniform, Honour Point जैसे फेसबुक पेजों का विशेष धन्यवाद। यदि विवरण में कोई त्रुटि हो तो क्षमा करें। इस असाधारण बलिदान को लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से यह लेख साझा किया गया है। प्रतिक्रिया देते समय इन शहीदों को याद कर और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करना भूलें।)

जय हिंद। जय हिंद की सेना।

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