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मेष संक्रांति: एक पौराणिक, खगोलीय और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशेष पर्व

भारत त्योहारों का देश है, जहाँ हर मौसम और हर खगोलीय परिवर्तन को आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से मनाया जाता है। ऐसे ही पर्वों में से एक है मेष संक्रांति, जिसे कई राज्यों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। यह पर्व न केवल खगोलीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत मूल्यवान है।

 

मेष संक्रांति क्या है?

 

मेष संक्रांति वह तिथि होती है जब सूर्य अपनी चाल में परिवर्तन करते हुए मीन राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करता है। यह भारतीय पंचांग के अनुसार एक महत्वपूर्ण संक्रांति मानी जाती है और इसी दिन सौर नववर्ष की शुरुआत भी होती है। यह आमतौर पर 14 या 15 अप्रैल को पड़ती है, जबकि अन्य संक्रांतियाँ महीने की शुरुआत में आती हैं।

खगोलीय महत्व

 

सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो उस घटना को ‘संक्रांति’ कहा जाता है। वर्ष में कुल 12 संक्रांतियाँ होती हैं, परंतु मेष संक्रांति विशेष मानी जाती है क्योंकि यह सौर वर्ष की शुरुआत का संकेत देती है। खगोलीय रूप से यह वह समय होता है जब सूर्य विषुवत रेखा (Equator) को पार कर उत्तरी गोलार्द्ध की ओर अग्रसर होता है। इस कारण से दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं, और गर्मियों की शुरुआत होती है।

 

धार्मिक महत्व

 

हिंदू धर्म में सूर्य को देवता माना गया है और उनके संक्रांति प्रवेश के समय को शुभ अवसर के रूप में देखा जाता है। यह समय दान, स्नान, तप, जप और पूजा-पाठ के लिए अति उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए पुण्यकर्म सामान्य दिनों की तुलना में कई गुना अधिक फल देते हैं।

कुछ धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि गंगा स्नान, विशेष रूप से हरिद्वार, प्रयागराज या काशी जैसे तीर्थों पर किया गया स्नान इस दिन अत्यंत पुण्यदायक होता है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और सूर्य नारायण को अर्घ्य अर्पित करते हैं।

सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराएँ

मेष संक्रांति भारत के विभिन्न हिस्सों में विविध नामों और विभिन्न परंपराओं के साथ मनाई जाती है। जैसे:

  • पंजाब में बैसाखी: यह कृषकों का सबसे बड़ा पर्व है, जो फसल की कटाई के समय आता है। लोग ढोल-नगाड़ों के साथ नृत्य करते हैं और गुरुद्वारों में सेवा करते हैं।
  • बंगाल में पोइला बोइशाख: यह बंगाली नववर्ष का दिन होता है, जिसमें लोग नए कपड़े पहनते हैं, घर की सफाई करते हैं और व्यापारिक बही-खाते की पूजा करते हैं।
  • असम में बोहाग बिहू: यह असम का नववर्ष होता है, जिसमें लोक नृत्य, संगीत और पारंपरिक व्यंजन खास महत्व रखते हैं।
  • केरल में विशु: इस दिन लोग ‘विशुक्कन्नी’ सजाते हैं, जिसमें फल, अनाज, सोना और अन्य शुभ वस्तुएँ शामिल होती हैं।
  • तमिलनाडु में पुत्तांडु: यह तमिल नववर्ष होता है, जिसमें विशेष पूजा की जाती है और परिवार के साथ मिलकर पारंपरिक भोजन किया जाता है।
  • ओडिशा में महा विशुभ संक्रांति: इस दिन विशेष तौर पर भगवान हनुमान की पूजा की जाती है और बेल पत्र का दान शुभ माना जाता है।

उत्तर भारत में लोग इस दिन तिल, गुड़, चने, आम का अचार, और खिचड़ी जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं और गरीबों को अन्न, वस्त्र और जलदान देते हैं।

दान और पुण्य की परंपरा

मेष संक्रांति को दान-पुण्य का पर्व भी कहा जाता है। खासकर ताम्रपात्र में जल, तिल, वस्त्र, घी, गुड़, फल, अनाज, और सोने या चांदी का दान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। कई स्थानों पर लोग नदियों में स्नान कर के यह संकल्प लेते हैं कि वे बुराइयों से दूर रहेंगे और जीवन को धर्ममय बनाएँगे।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण

मेष संक्रांति अध्यात्मिक साधकों के लिए भी एक शुभ समय है। इस दिन ध्यान, योग, मंत्र जप, और आत्ममंथन की विशेष महत्ता मानी जाती है। ऋषियों और मुनियों ने इसे ऊर्जा का नया चक्र माना है, जिसमें आत्मा को नयी दिशा दी जा सकती है। सूर्य की मेष राशि में उपस्थिति को आत्मिक जागरण का काल कहा गया है।

कृषि से जुड़ा पर्व

मेष संक्रांति का समय रबी फसलों की कटाई का होता है। किसान पूरे वर्ष की मेहनत के फल को देख पाते हैं और ईश्वर का धन्यवाद करते हैं। यह समय खेतों में उत्सव और उल्लास का होता है, जहाँ अन्नदाता अपनी मेहनत को सफल होता देखता है। यही कारण है कि कई राज्यों में यह त्योहार कृषि पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

मेष संक्रांति और आयुर्वेद

गर्मी की शुरुआत के साथ शरीर में कई प्रकार के बदलाव होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह त्रिदोषों (वात, पित्त, कफ) के संतुलन का समय होता है। इस समय शरीर को हल्का और शुद्ध रखने की आवश्यकता होती है। इसलिए इस दिन से फलाहार, बेल का शरबत, सत्तू, आम पन्ना, नींबू पानी और जल युक्त आहार का सेवन शुरू करने की सलाह दी जाती है।

नवीन शुरुआत का संकेत

मेष संक्रांति केवल खगोलीय परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह जीवन में नयी शुरुआत का प्रतीक भी है। जैसे सूर्य एक नयी राशि में प्रवेश करता है, वैसे ही यह पर्व हमें अपने जीवन में नवीनता लाने की प्रेरणा देता है। यह समय है नव संकल्प, आत्मनिरीक्षण और उन्नति का।

निष्कर्ष

मेष संक्रांति न केवल एक खगोलीय घटना है, बल्कि यह भारतवर्ष की सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व हमें प्रकृति के चक्रों के साथ तालमेल बिठाने की प्रेरणा देता है और हमें अपने जीवन को नयी ऊर्जा, आशा और सकारात्मकता के साथ आरंभ करने का अवसर प्रदान करता है।

इस पर्व पर हम सबको मिलकर अपने अंदर के सूर्य को जगाना चाहिए — ज्ञान, प्रेम, परोपकार और सद्भावना के रूप में। यही इस संक्रांति की सबसे बड़ी सार्थकता है।

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