परिचय
भारत विविध भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। यहां हर भाषा की अपनी अलग विशेषता और पहचान है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण भाषा है मराठी, जो महाराष्ट्र राज्य की आधिकारिक भाषा है। मराठी भाषा दिवस (Marathi Bhasha Din) हर साल 27 फरवरी को मनाया जाता है। यह दिन प्रसिद्ध मराठी कवि और लेखक वी. वी. शिरवाडकर (कुसुमाग्रज) की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य मराठी भाषा के संरक्षण, प्रचार और विकास को बढ़ावा देना है।
मराठी भाषा का इतिहास और महत्व
मराठी भाषा इंडो-आर्यन भाषा परिवार से संबंधित है और इसकी उत्पत्ति प्राकृत भाषा से मानी जाती है। यह भारत की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है और इसका उल्लेख 11वीं शताब्दी के अभिलेखों में मिलता है। समय के साथ मराठी भाषा ने कई बदलाव देखे और यह आज एक समृद्ध और व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा बन गई है।
महाराष्ट्र की साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर को संभालने में मराठी भाषा का अहम योगदान रहा है। यह न केवल एक संचार का माध्यम है बल्कि महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है। मराठी में संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव, बालगंगाधर तिलक, लोकमान्य तिलक और वीर सावरकर जैसे महान विभूतियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं।
मराठी भाषा दिवस का महत्व
मराठी भाषा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य इस भाषा के प्रति सम्मान व्यक्त करना और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना है। यह दिन उन लोगों को भी याद करने का अवसर प्रदान करता है जिन्होंने मराठी भाषा और साहित्य के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
मराठी भाषा दिवस के अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, भाषण प्रतियोगिताएं, साहित्यिक चर्चाएं, कविता पाठ, निबंध लेखन और नाटक मंचन आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों के माध्यम से मराठी भाषा की समृद्धि और इसके साहित्यिक खजाने को उजागर किया जाता है।
वी. वी. शिरवाडकर (कुसुमाग्रज) का योगदान
मराठी भाषा दिवस कुसुमाग्रज की जयंती पर मनाया जाता है, जिनका असली नाम विश्वनाथ विनायक शिरवाडकर था। वे मराठी साहित्य के एक महान लेखक, कवि और नाटककार थे। उनका जन्म 27 फरवरी 1912 को हुआ था और उन्होंने मराठी साहित्य को कई उत्कृष्ट कृतियां दीं।
कुसुमाग्रज ने मराठी साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और अपनी लेखनी के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को उजागर किया। उनकी प्रमुख रचनाएं ‘विशाखा’, ‘नटसम्राट’, ‘हिमालयाची सावली’ आदि हैं। उन्हें उनकी अद्वितीय साहित्यिक सेवाओं के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मराठी भाषा की समृद्ध साहित्यिक विरासत
मराठी भाषा का साहित्यिक इतिहास अत्यंत समृद्ध है। संत साहित्य, भक्ति आंदोलन, और समकालीन मराठी साहित्य ने इस भाषा को और भी समृद्ध बनाया है। संत ज्ञानेश्वर ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘ज्ञानेश्वरी’ के माध्यम से मराठी भाषा को एक नई पहचान दी। संत तुकाराम की ‘अभंग रचनाएं’ मराठी भक्ति साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
आधुनिक युग में भी मराठी साहित्य ने कई उत्कृष्ट कवियों, उपन्यासकारों और नाटककारों को जन्म दिया है। पु. ल. देशपांडे, व. पु. काळे, शिवाजी सावंत, रणजीत देसाई, और बाबासाहेब पुरंदरे जैसे लेखकों ने मराठी भाषा को समृद्ध किया है।
मराठी भाषा को बढ़ावा देने की पहल
मराठी भाषा को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए महाराष्ट्र सरकार और विभिन्न साहित्यिक संगठनों द्वारा कई कदम उठाए गए हैं। स्कूलों और कॉलेजों में मराठी भाषा को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया गया है।
सरकार ने मराठी साहित्य को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराने और इसे विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए विभिन्न प्रयास किए हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में मराठी भाषा को अनिवार्य रूप से उपयोग करने का प्रस्ताव भी पारित किया गया है।
मराठी भाषा की चुनौतियाँ और समाधान
आज के वैश्वीकरण के युग में मराठी भाषा कई चुनौतियों का सामना कर रही है। अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के बढ़ते प्रभाव के कारण युवाओं में मराठी भाषा के प्रति रुचि कम होती जा रही है। इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में लोग हिंदी और अंग्रेजी को प्राथमिकता देने लगे हैं।
मराठी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
मराठी भाषा दिवस सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक संकल्प है कि हम अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित और समृद्ध करेंगे। मराठी भाषा ने इतिहास में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं और आगे भी यह साहित्य, कला और संचार के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाए रखेगी।
मराठी भाषा दिवस हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व करना चाहिए और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। मराठी सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की आत्मा है। इस दिवस को मनाकर हम मराठी भाषा की विरासत को और मजबूत बना सकते हैं।
“जय महाराष्ट्र! जय मराठी!”