कालाधीनं जगत्सर्वम् अर्थात् यह समस्त संसार काल के ही अधीन है। संसार में कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं है, जो काल से प्रभावित न होता हो। प्रत्येक पदार्थ काल से प्रभावित होकर पुरातन होता है और अन्त में उसका नाश हो जाता है। अतः काल की महिमा अनिर्वचनीय है। कोई भी काल शुभ या अशुभ नहीं होता अपितु हमें जीवन में जिन कार्यों का सम्पादन करना है, वे कार्य शुभ अथवा अशुभ हो सकते हैं। अतः कार्य की प्रकृति को जानकर उस कार्य विशेष के सम्पादन हेतु सर्वश्रेष्ठ काल कौन सा है? इसके ज्ञान हेतु हमारे ऋषियों ने जिस शास्त्र का निर्माण किया, उस शास्त्र को मुहूर्त शास्त्र कहते है।
🧭 मुहूर्त एक समय मापन इकाई है। जैसे 60 मिनट को घंटा, सात दिन को सप्ताह कहा जाता है, 30 दिन को मास कहते हैं उसी प्रकार मुहूर्त भी काल-मापन की एक व्यावहारिक इकाई है। परन्तु वर्तमान में किसी कार्य को आरम्भ करने की “शुभ घड़ी” को मुहूर्त कहने लगे हैं।
मुहूर्त के विषय में ज्योतिषशास्त्र में बहुत ही गम्भीरता से चिन्तन किया गया है। वस्तुतः किसी भी शुभ कार्य के सम्पादन हेतु योग्य काल को ही मुहूर्त कहते है। तद्यथा कालः शुभक्रियायोग्यो मुहूर्त इत्यभिधीयते ।
शतपथ ब्राह्मण में मुहूर्त काल के खण्ड मात्र के रूप में त्रिंशदिष्टकैरात्मभिर्न व्यभवत्स पञ्चदशाहो रूपाण्यपश्यदात्मनस्तन्वो मुहूतल्लोकम्पृणा पञ्चदशैव रात्रेः॥
(शतपथ ब्रा. १०/४/२/१८)
अब यहां अगर आप गौर से देखें तो पाएंगे कि दिन और रात्रि के 15-15 मुहूर्त की बात की जा रही है। जिसके अनुसार दिन अथवा रात्रि के 15 वें भाग को ‘मुहूर्त’ कहते हैं।
मुहूर्त-गणना का सामान्य प्रकार ‘अथर्वज्योतिष’ में मुहूर्त का सूत्र दिया है कि “नाडिके द्वे मुहूर्त्तस्तु …। (अथर्वज्योतिष ७/१२) अर्थात् दो नाडी को एक मुहूर्त कहते हैं। मुहूर्त की यही परिभाषा नारदसंहिता में भी दी गई है –
अह्नः पञ्चदशो भागस्तथा रात्रिप्रमाणतः ।
मुहूर्तमानं द्वे नाड्यौ कथिते गणकोत्तमैः” इति ।। (नारदसंहिता ९/५)
अर्थात् अह्नः = दिन के, पञ्चदश भागः पन्द्रहवें भाग को, रात्रिप्रमाणतः तथा = रात्रि के मान के उसी प्रकार (पन्द्रहवें) भाग को, गणकोत्तमैः उत्तम गणकों के द्वारा, मुहूर्तमानं ‘मुहूर्त’ कहा गया है, जो कि द्वे नाड्यौ कथिते 2 घटी के बराबर कहा गया है। इसको हम निम्न प्रकार से समझेंगे-
एक अहोरात्र (दिन + रात) = 60 घटी (या नाडी)
अतः दिन (या रात) = 30 घटी (या नाडी)
= 60 घटी (या नाडी)
घटी (या नाडी)
दिन 30 घटी (नाडी) = 2 घटी (नाडी) = 1 मुहूर्त 15 15
25
अतः दिन के 15 वें भाग अर्थात् 2 घटी काल-खंड को मुहूर्त कहते हैं। जैसे रामदैवज्ञ ने मुहूर्तचिन्तामणि में लिखा है-
गिरीशभुजगामित्राः पिन्यवस्वम्बुविश्वेभिजिदर्थ
च विधातापीन्द्र इन्द्रानली च ।
निऋतिरुदकनाथोप्यर्यमाथो भगः स्युः क्रमश
इह मुहूर्ता वासरे बाणचन्द्रा ।।
इस श्लोक में लिखे दिन व रात्रि के मुहूर्त व उनके स्वामी को पोस्ट के साथ संलग्न चार्ट के द्वारा सरलता से समझ सकते हैं।
दिन और रात का 15 वां भाग मुहूर्त कहलाता है अतः दिन-रात के बड़े छोटे होने से दिनमान और रात्रिमान में परिवर्तन आता है। कभी (उत्तरायण में) छह मुहूर्त दिन को प्राप्त होते हैं और कभी (दक्षिणायन में) वे रात को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार उत्तरायण में दिन का प्रमाण अठारह मुहूर्त और रात का प्रमाण बारह मुहूर्त होता है। इसके विपरीत दक्षिणायन में रात का प्रमाण अठारह मुहूर्त और दिन का प्रमाण बारह मुहूर्त हो जाता। इस प्रकार दिन के तीन मुहूर्त यदि कभी रात्रि में सम्मिलित हो जाते हैं तो कभी रात्रि के तीन मुहूर्त दिन में सम्मिलित हो जाते हैं।