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भारतीय प्राचीन तर्कसंगत परंपरा पीढ़ी-गुणसूत्र और संबंध

  1. पति-पत्नी — पहली पीढ़ी
  2. बच्चे (सगे भाई-बहन) — दूसरी पीढ़ी — माता-पिता से 50%-50% गुणसूत्र प्राप्त करते हैं। भाई-बहन 50% गुणसूत्र साझा करते हैं।
  3. तीसरी पीढ़ी — पोते-पोतियां — पहली पीढ़ी यानी दादा-दादी के 25% गुणसूत्र साझा करते हैं।
  4. चौथी पीढ़ी — पहली पीढ़ी के 12.5% गुणसूत्र साझा करते हैं।
  5. पांचवीं पीढ़ी — पहली पीढ़ी के 6.25% गुणसूत्र साझा करते हैं।
  6. छठी पीढ़ी — पहली पीढ़ी के 3.12% गुणसूत्र साझा करते हैं।
  7. सातवीं पीढ़ी — पहली पीढ़ी के 1.56% गुणसूत्र साझा करते हैं।
  8. आठवीं पीढ़ी — पहली पीढ़ी के 1% से भी कम गुणसूत्र साझा करते हैं।

संबंधों का महत्व

  • मूल पुरुष (पूर्वज) या जोड़े से सातवीं पीढ़ी तक संबंध और भाईचारे को मान्यता दी जाती है।
  • सातवीं पीढ़ी तक विवाह को निषिद्ध माना जाता है, क्योंकि इससे जन्मजात गुणसूत्रीय रोग होने की संभावना रहती है।
  • आठवीं पीढ़ी से संबंध या भाईचारे को नहीं माना जाता, इसलिए पति-पत्नी के संबंध को “सात जन्मों का” कहा गया है। सात जन्मों तक यह संबंध टिकता है।

सपिंड और गोत्र

  • तीन पीढ़ियों तक सपिंड माना जाता है।
  • तीन से सात पीढ़ियों तक सपिंड नहीं, लेकिन भाईचारे को मान्यता दी जाती है।
  • सात पीढ़ियों के बाद संबंध समाप्त हो जाता है, लेकिन गोत्र एक ही रहता है।

पूर्वजों की ज्ञानपूर्ण परंपरा

हमारे पूर्वजों का यह ज्ञान और वैज्ञानिक सोच हमें गौरवान्वित करता है।
सात पीढ़ियों का उल्लेख अक्सर किया जाता है, लेकिन इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण अब समझ में आया।

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