Sshree Astro Vastu

जगना है कैसे ?

घंटों खड़े रहने में कोई शर्म नहीं और अगर बैठने की सीट मिल भी गई, तो उसमें कोई घमंड नहीं…!
थैला पूरे पैसों से भरा होता है; पर उसमें से एक पैसा भी अपना नहीं होता… हमेशा यह याद रखना होता है कि हम बस थैले के रखवाले हैं…!
कभी-कभी छुट्टे पैसों के लिए किसी से बहस हो ही जाती है… लेकिन उसे भूलकर, मानो कुछ हुआ ही नहीं, अगले से सामान्य बातचीत करनी होती है…!

“आगे बढ़िए… थोड़ा अंदर चलिए…” – दिल से कहने वाला दुनिया में शायद एकमात्र इंसान…!
खचाखच भरी बस में हर यात्री से एक बार तो बात हो ही जाती है…
फिर भी न किसी पर विशेष स्नेह…, न किसी से नाराज़गी…, न कोई नफ़रत…, न तिरस्कार…!
हमारा रिश्ता बस टिकट भर का…!
कोई बीच रास्ते उतर जाए, तो कोई दुख नहीं…
कोई बीच में चढ़ जाए, तो कोई उत्साह नहीं…

दोनों के लिए दरवाज़ा खोलना है…, जो आए, आने दो…, जो जाए, जाने दो…!
मूल गंतव्य तक पहुंचने से पहले बस 10–12 स्टॉप पर रुकती है…, हर गांव में थोड़ी देर रुकना होता है…
थोड़ा सुस्ताना है, मानो अपना ही गांव हो… लेकिन उसमें फंसना नहीं है…!
हम यहां के नहीं हैं” – ये खुद को याद दिलाते हुए, फिर से डबल बेल देकर अगले स्टॉप की ओर बढ़ जाना है…!
सिंगल बेल” मतलब रुकना…, डबल बेल” मतलब चलना… बस, इतने सरल नियमों का पालन करना है…
जीवन को ज्यादा जटिल नहीं बनाना है…!
यह आखिरी स्टॉप है… सभी लोग उतर जाएं… – ऐसा सभी को कहकर अपनी गठरी उठानी है और सफर खत्म होते ही, अपने घर” लौट जाना है…!
कल कहां जाना है? कब जाना है? किस गाड़ी से जाना है? ड्राइवर कौन होगा? – यह कोई और तय करता है…!
कल कौन सी गाड़ी होगी, इसकी गारंटी नहीं… ड्राइवर कौन होगा, इसका भरोसा नहीं… साथ में कौन यात्री होंगे, यह भी निश्चित नहीं…!
निश्चित बस एक ही है – और वह है “यात्रा”..!
हम होंगे या नहीं होंगे, यात्रा किसी न किसी की चलती रहेगी… अनवरत और निरंतर…!
हमारे होने या न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा… यात्रा तो चलती ही रहेगी… निरंतर और निरंतर…!

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