[ नोट – यह युग 18000 ईसा पूर्व तक और भी पीछे जा सकता है, लेकिन इस पर बाद में और चर्चा करेंगे, जब पाठक प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान की सुंदरता को पूरी तरह समझ लेंगे।]
ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण में एक गूढ़ अर्थ वाला श्लोक मिलता है। उसमें कहा गया है कि यज्ञ देवताओं से दूर चला गया और देवताओं को यह समझ में नहीं आ रहा था कि यज्ञ कहाँ गया। इसलिए वे अपनी माता अदिति के पास गए और उससे सहायता की याचना की। अदिति ने उत्तर दिया कि “मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करूंगी, लेकिन इसके बदले मुझे एक वर चाहिए।” देवताओं ने कहा, “ठीक है, वरदान मांगो।” तब अदिति ने कहा कि “यज्ञ की सभी आहुति मुझसे प्रारंभ होकर मुझ पर ही समाप्त होंगी।”
अब इसका क्या अर्थ है?
यज्ञ दूर चला गया, देवता यज्ञ नहीं कर सकते, और अदिति कहती हैं कि “सभी आहुतियाँ मुझसे शुरू होकर मुझ पर ही समाप्त होंगी”—इसका क्या तात्पर्य है? क्या इसमें कोई गहरा अर्थ छिपा हुआ है?
लोकमान्य तिलक ने इस रहस्य को सही तरीके से समझा। उन्होंने कहा कि इसका संबंध खगोलीय घटनाओं से है। हमारे पूर्वज अपनी सभी धार्मिक क्रियाएँ, जैसे त्योहार, अनुष्ठान, यज्ञ और याग, ग्रह-नक्षत्रों की चाल के आधार पर तय करते थे। यदि खगोलीय घड़ी अपनी सामान्य गति से न चले और उसका संतुलन बिगड़ जाए, तो शुभ मुहूर्त निकालना असंभव हो जाएगा, और इससे यज्ञ-याग जैसे अनुष्ठान बाधित होंगे।
खगोलीय घड़ी क्यों बिगड़ती है?
यह पृथ्वी की अक्षीय प्रेसेशन (Precession) गति के कारण होता है। पृथ्वी का अक्ष जिस बिंदु की ओर इंगित करता है, वह एक वृत्ताकार पथ पर घूमता रहता है। इस एक चक्र को पूरा करने में 26,000 वर्ष लगते हैं। वर्तमान में, पृथ्वी का अक्ष Polaris (ध्रुव तारा) की ओर इंगित कर रहा है, इसलिए हम उसे ध्रुव तारा कहते हैं। लेकिन यह स्थिति स्थायी नहीं है, यह पृथ्वी के डगमगाने (Wobble) की वजह से बदलती रहती है। यह डगमगाने की क्रिया सूर्य, चंद्रमा और सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण होती है।
हम साइडरियल (Sidereal) पद्धति से ग्रह-नक्षत्रों की गति को मापते हैं। इसमें किसी ग्रह के पीछे कौन-सा नक्षत्र पड़ता है, यह देखा जाता है। इसके अलावा, हमारे सभी खगोलीय निरीक्षण उत्तरायण, दक्षिणायन, शरद संपात (Autumnal Equinox) और वसंत संपात (Vernal Equinox) की स्थिति पर आधारित होते हैं।
एक समय था जब कृत्तिका नक्षत्र (Pleiades Cluster) 2400 ईसा पूर्व में वसंत संपात बिंदु (Vernal Equinox) पर था। लेकिन अब यह स्थिति बदल गई है। पृथ्वी की अक्षीय प्रेसेशन के कारण वसंत संपात बिंदु पीछे सरकता रहता है और नए नक्षत्रों में प्रवेश करता है, जिससे कैलेंडर में बदलाव आ जाता है। यही कारण था कि देवता अदिति के पास सहायता के लिए गए।
अदिति कौन हैं?
अदिति का संबंध पुनर्वसु नक्षत्र से है, जिसमें दो मुख्य तारे होते हैं—
ग्रीक पौराणिक कथाओं में इन्हें Castor और Pollux कहा जाता है, और यह मिथुन राशि के जुड़वाँ तारे हैं। जब वसंत संपात बिंदु अदिति के नक्षत्र में था, तो खगोलीय घड़ी संतुलित थी।
यदि प्लेनेटेरियम सॉफ़्टवेयर से गणना करें कि वसंत संपात बिंदु अदिति के नक्षत्र में कब था, तो यह 6000 ईसा पूर्व का समय निकलकर आता है।
निष्कर्ष
इसका अर्थ यह है कि आज से 8000 वर्ष पहले हमारे पूर्वजों को नक्षत्रों, ग्रहों और तारों की विस्तृत जानकारी थी। इतना ही नहीं, वे यह भी जानते थे कि इनमें बदलाव आ रहा है और इस बदलाव का कारण क्या है।
इसके अलावा, वे जानते थे कि कैसे इस खगोलीय बदलाव को ठीक किया जाए। उनकी खगोल विज्ञान की समझ इतनी उन्नत थी कि वे पृथ्वी की प्रेसेशन गति और उसकी गणना कर सकते थे।
और आश्चर्य की बात यह है कि जब हमारे पूर्वजों को यह सारी जानकारी पहले से थी, तब पाश्चात्य वैज्ञानिकों को यह समझने में सदियों लग गए कि—
ध्यान दें:
8000 वर्ष पहले हमारे पूर्वजों को यह सब ज्ञात था, और इससे 1000 वर्ष पूर्व उन्हें यह कैलेंडर भी पता था। क्योंकि कैलेंडर में परिवर्तन होने में कम से कम 1000 वर्ष लगते हैं।
क्या यह चमत्कारी नहीं है?
— लीना दामले (खगोलिना)