यह सिक्का गौतमीपुत्र शातकर्णि द्वारा जारी किया गया है। महत्वपूर्ण यह नही कि लगभग 100 ईस्वी में ये सिक्के धातु विज्ञान के अद्भुत नमूने थे बल्कि महत्वपूर्ण इस सिक्के पर शातकर्णि से पहले लिखा गया नाम गौतमी है।
आज से दो हजार साल पहले एक चक्रवर्ती राजा अपने नाम के आगे अपनी पहचान के तौर पर अपनी मां का नाम लगाता है। गौतमी बलश्री सातवाहन नरेश शातकर्णि की मां थी, शातकर्णि ने उसी परंपरा को पुष्ट किया जिस परंपरा में कौशल्या नंदन राम, गौरी सुत गणेश, देवकीनंदन कृष्ण लिखा जाता था।
सातवाहन शायद दुनिया में ऐसी डायनेस्टी होगी जो माता के नाम से जानी जाती है। गौतमी, वाशिष्ठि, यज्ञश्री जैसी माओं के नाम से शासन करने वाले राजा निश्चित रूप से प्रजा वत्सल रहे होंगे।
इतिहास का अध्ययन करने से तमाम मिथ्या प्रलाप अपने आप शमित हो जाते हैं। नासिक प्रशस्ति में यह भी विवरण मिलता है कि। प्रशस्ति में यह भी विवरण मिलता है कि शातकर्णि के वाहनों (अश्वों) ने तीनों समुद्रों का जल पिया था अभिलेख तिसमुद-तोय-पीतवाहन का उल्लेख करता है। जो लोग समुद्र का पानी स्पर्श करने से अछूत टाइप की बातें करते हैं उन्हे जानना चाहिए कि सातवाहन ब्राह्मण थे, उन्होंने समुद्र पार करने के लिए बंदरगाह बनवाए, विदेशों से व्यापार किया। चित्र में दिए गए सिक्के पर छपे महाराज शातकर्णि की शिखा देखिए और समझिए कि पराक्रम के प्रस्तुतिकरण में मिथ्या की मिलावट कैसे हुई होगी।
सातवाहनों के आराध्य भगवान परशुराम थे। परशुराम अपनी माता के अनन्य भक्त थे, इसी से प्रभावित होकर सातवाहनों ने माता को प्रथम पूज्य माना।
आज जब हम आयातित मातृ दिवस की बात करते हैं तो हमें दो हजार साल पहले का भारत देखना चाहिए, सातवाहनो को देखना चाहिए, माता के गौरव का अर्थ ही भारत होना है।