1- अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में छठे स्थान और आठवें स्थान का स्वामी किसी अशुभ ग्रह के साथ स्थित हो तो दुर्घटना होने की संभावना बनती है। वहीं अगर यहां मंगल या शनि ग्रह स्थिति है तो व्यक्ति को रक्त या हड्डी से संबंधित परेशानी हो सकती है।
2-यदि जन्मकुंडली में लग्न या लग्नेश पर कोई मारक या अशुभ ग्रह गोचर करता है तो उस व्यक्ति के साथ दुर्घटना हो सकती है
3-व्यक्ति को जन्मकुंडली में मारक ग्रह की अंतरदशा के दौरान भी दुर्घटना की वजह से कष्ट झेलना पड़ता है। साथ ही दवाइयों में बहुत रुपये खर्च होते हैं।
4- कुंडली में मंगल ग्रह और शनि के एक ही स्थान में होने से दुर्घटना योग का निर्माण होता है। वहीं अगर इन ग्रहों का संबंध अगर लग्न या धन भाव से बन रहा हो तो भी दुर्घटना होने के चांस रहते हैं।
5- यदि किसी व्यक्ति के लग्न भाव या कुंडली के दूसरे भाव में राहु और मंगल बैठे हों तो भी दुर्घटना योग बनता है। वहीं अगर यह ग्रह नीच या अशुभ स्थिति में विराजमान हैं, तो व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट भी हो सकता है।
अगर शनि और मंगल ग्रह के कारण योग बन रहा हो तो शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाएं। साथ ही व्यक्ति को हनुमान जी की उपासना करनी चाहिए। हनुमान मंदिर में रोज चमेली के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
पक्षियों को अनाज के दाने डालने चाहिए। वहीं अगर मंगल ग्रह के कारण योग बन रहा हो तो लाल मसूर डालनी चाहिए।
दुर्घटना से बचाव का मंत्र है-
यावत कर्म समाप्तिः स्यात् तावत् त्वं स्थिरोभव।।
इस मंत्र का जाप करना बेहद आसान है। इस मंत्र को स्थिर मंत्र के नाम से जाना जाता है। बुधवार के दिन इस मंत्र का जाप करना बेहद शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि अगर शाम के समय उत्तर की ओर मुख करके 3 बार इसका उच्चारण किया जाए तो काफी शुभ जाता है।