Autism एक डेवलपमेंटल डिसएबिलिटी है जो बच्चों के दिमाग में बदलाव की वजह से होता है. इस समस्या का मेडिकल नाम ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder- ASD) है. आमतौर पर ASD के लक्षण बच्चों में दो-तीन साल की उम्र में नजर आने लगते हैं. Centers for Disease Control and Prevention के अनुसार ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों का व्यवहार, कम्यूनीकेशन, इंटरेक्शन और सीखने की क्षमता ज्यादातर दूसरे लोगों से अलग होती है.
ये हैं ऑटिज्म के लक्षण
*आंखें न मिलाना या आंखें चुराना
*अपना नाम पुकारने पर भी प्रतिक्रिया न देना
*किसी से बात न करना या उनकी बात पर प्रतिक्रिया न देना
*कुछ बच्चों में लक्षण देर से दिखते हैं, वह अचानक
*बहुत गुस्सैल दिखने लगते हैं
ऑटिज्म के कारण
ऑटिज्म के कई कारण है. कई बार ये जेनेटिक भी होता है.
जेनेटिक कारण –
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के लिए कई अलग-अलग जीन जिम्मेदार हो सकते हैं. कुछ बच्चों को जेनेटिक डिसऑर्डर की वजह से ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर हो सकता है. जैसे – रेट्ट सिंड्रोम (Rett Syndrome) या फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम (Fragile X Syndrome).
पर्यावरणीय कारण (Environmental factors) –
रिसर्चर वायरल इंफेक्शन, मेडिसिन और गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं पर रिसर्च कर रहे हैं, कि यह किस हद तक ऑटिज्म का कारण बन सकते हैं।
इन तरीकों से होता है इलाज…
बिहेवियरल एंड कम्युनिकेशन थेरेपी
एजुकेशन थेरेपी
फैमिली थेरेपी
स्पीच थेरेपी
ऑक्यूपेशनल थेरेपी
डेली लिविंग थेरेपी
फिजिकल थेरेपी
लक्षणों पर कंट्रोल पाने के लिए दवाएं
ऑटिज्म से बचाव संभव है?
ऑटिज्म से बचाव संभव नहीं है. लेकिन इलाज के जरिए इसे कुछ हद तक कंट्रोल किया जा सकता है. जितनी जल्दी ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का पता चले और उसका इलाज कराया जाए, उतना ही व्यक्ति के व्यवहार, स्किल व लैंग्वेज डेवलपमेंट को सुधारने में मदद मिल सकती है.
इनकी लर्निंग कैपेसिटी सामन्य बच्चों जैसे ही होती हैँ आवश्यकता हैँ उन्हें समय देकर सिखाने की, योग के प्रभाव से उनके इलाज का प्रभाव जल्दी दिखता हैँ, विशेषकर प्राणायाम! कई रिसर्च में यह दावा किया गया है कि आयुर्वेद से ऑटिज्म को खत्म किया जा सकता है। इससे जूझने वाले बच्चों को योग और ध्यान कराया जाए तो उनके शारीरिक और मानसिक विकास में सुधार दिखने लगता है।