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नारी सम्मान और सशक्तिकरण: संस्कृति और वास्तविकता

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः

 

प्रथम वंदनीय, संस्कृति रक्षक मातृशक्ति को नमन! 🙏

आज सोशल मीडिया से लेकर समाचार पत्रों तक, हर ओर महिला दिवस की धूम मची हुई है। महिलाओं के सम्मान और सशक्तिकरण की बात की जा रही है, लेकिन क्या सच में हमारा समाज नारी शक्ति को उसके वास्तविक गौरव के साथ स्मरण कर रहा है? क्या हम उन वीरांगनाओं को याद कर रहे हैं जिन्होंने इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णिम अक्षरों में अपनी अमिट छाप छोड़ी?

आज के समय में जब महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही हैं, तब हमें यह विचार करने की आवश्यकता है कि क्या हम वास्तव में उन नारियों को उचित स्थान दे रहे हैं जो हमारी संस्कृति और सभ्यता की आधारशिला रही हैं? छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे महापुरुषों को गढ़ने वाली माता जीजाबाई का जिक्र कहीं नहीं होता। जिनकी शिक्षा और संस्कारों ने शिवाजी को एक कुशल प्रशासक और राष्ट्रनायक बनाया। इसी तरह, पन्ना धाय जैसी वीर माताओं को भी भुला दिया गया, जिन्होंने मातृत्व के रिश्ते से ऊपर उठकर मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को सर्वोच्च स्थान दिया। उन्होंने अपने पुत्र का बलिदान देकर देश के भविष्य की रक्षा की, लेकिन दुर्भाग्यवश, आज उनकी गाथाएं कहीं खो गई हैं।

इसके विपरीत, लाखों लोगों के धर्मांतरण के लिए ज़िम्मेदार मदर टेरेसा को आदर्श नारी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उनके कार्यों को समाज में महिमामंडित किया गया, जबकि उनकी गतिविधियों को लेकर कई विवाद भी खड़े हुए। आज हमारी युवा पीढ़ी को पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित फिल्मी अभिनेत्रियों को ही नारी शक्ति का प्रतीक मानने के लिए प्रेरित किया जाता है। वे अभिनेत्रियां जो कृत्रिम चमक-दमक और व्यावसायिक लाभ के लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार रहती हैं, वे आदर्श बन रही हैं। क्या यह उचित है?

आज का भारत कहां जा रहा है? क्या हम अपने वास्तविक नायकों को भूलते जा रहे हैं? क्या हमें उन महान महिलाओं को नहीं अपनाना चाहिए, जिन्होंने समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए अपने निजी सुखों का त्याग किया? क्यों हमारे स्कूलों की किताबों में केवल कुछ ही नाम गिनाए जाते हैं, जबकि हमारे इतिहास में अनेकों वीरांगनाओं ने अपने योगदान दिए हैं?

रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई होल्कर, दुर्गावती, सावित्रीबाई फुले, महादेवी वर्मा जैसी असंख्य नारियां हमारे समाज की प्रेरणास्त्रोत हैं। इन महिलाओं ने अपनी असाधारण प्रतिभा, साहस और बलिदान से समाज को दिशा दी। लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इनकी गाथाओं को जानबूझकर हाशिये पर डाल दिया गया है। हमें इन विभूतियों के योगदान को पुनः जागृत करना होगा और अगली पीढ़ी को इनके संघर्ष और बलिदान से अवगत कराना होगा।

आज जब महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है, तब हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सशक्तिकरण केवल दिखावे तक सीमित न रहे। नारी सशक्तिकरण का अर्थ केवल कुछ महिलाओं को उच्च पदों तक पहुँचाना नहीं है, बल्कि समस्त समाज को यह सिखाना है कि नारी को सम्मान देना हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। केवल 8 मार्च को महिला दिवस मनाने से महिलाओं की वास्तविक स्थिति नहीं बदलेगी, बल्कि हमें अपने आचरण और सोच में बदलाव लाना होगा।

हमें यह समझना होगा कि सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं को उनकी वास्तविक शक्ति और गौरव का बोध कराना है। जब तक हम अपनी जड़ों से जुड़े नहीं रहेंगे, तब तक हम सशक्त समाज का निर्माण नहीं कर सकते। हमें महिलाओं के वास्तविक योगदान को पहचानना होगा और समाज में उन्हें उचित स्थान देना होगा।

यह विचारणीय है कि हम जिन महिलाओं को सम्मान देने का दावा कर रहे हैं, क्या वास्तव में उन्हें वह सम्मान प्राप्त हो रहा है? समाज में महिलाओं पर अत्याचार, दहेज प्रथा, बाल विवाह, असमानता, शोषण जैसी समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं। जब तक हम मानसिकता में बदलाव नहीं लाएंगे, तब तक वास्तविक सशक्तिकरण संभव नहीं होगा।

आज आवश्यकता है कि हम अपने गौरवशाली अतीत को याद करें, उन महान नारियों के योगदान को स्मरण करें और समाज में सच्चे नारी सशक्तिकरण की अलख जगाएं। मातृशक्ति को केवल पूजा के योग्य मानना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके संघर्षों को पहचानकर उनके अधिकारों और गरिमा को बनाए रखना भी हमारा दायित्व है। हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम भारतीय संस्कृति की उन महान महिलाओं को उचित सम्मान देंगे, जिन्होंने अपने त्याग और बलिदान से राष्ट्र को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।

जहाँ नारी का सम्मान होगा, वहीं सच्चे अर्थों में देवता वास करेंगे और समाज समृद्ध होगा। आइए, अपनी सोच को सकारात्मक दिशा में मोड़ें और सशक्त भारत के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएं। जय हिंद!

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