क्या हमारा समाज अगली सदी तक रहेगा ही नहीं?
– एक गहन आत्ममंथन, हिन्दू समाज की आंखें खोलने वाला लेख –
समाज के चारों ओर अंधकार ही अंधकार
क्या हम इसे “शिक्षित समाज” कहें? या आत्मघाती समाज?
⚠ जनसंख्या घटने की चुपचाप चलती साजिश
एक उदाहरण से समझिए:
तो अगली पीढ़ी में अधिकतम 45-46 संतानें (कुछ निःसंतान जोड़े मान लें)।
👉 यह कोई अनुमान नहीं — यह गणित है, और यह हो चुका है!
आज समाज के गांव उजड़ चुके हैं।
शहरों में बड़ी इमारतें हैं, पर उनमें कोई संयुक्त हिन्दू परिवार नहीं बचा।
क्यों नई बहुएँ एक ही संतान चाहती हैं?
👉 क्या यही धर्म है?
👉 क्या यही समाज का भविष्य है?
सच यह है कि संतान अब ‘सोशल प्रूफ’ बन चुकी है — स्नेह नहीं।
समाज को दिखाने की वस्तु बन चुके हैं।
यह सोच मूल्यहीन है, धर्महीन है, और भविष्यविहीन है।
सबसे बड़ा दोष लड़की के पिता का है!
कभी करियर के नाम पर,
कभी “बढ़िया लड़का नहीं मिल रहा” कहकर,
तो कभी दहेज व प्रतिष्ठा का हवाला देकर।
👉 बेटी को सिर पर बैठाकर, आपने उसे रिश्तों से दूर कर दिया।
👉 अब वही बेटी अवसाद में, IVF में, या तलाक़ में जा रही है।
आज हिन्दू समाज में क्या चल रहा है?
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🧘♂ और समाज के अध्यक्ष क्या कर रहे हैं?
👉 विवाह भी एक धार्मिक कर्तव्य है — यह कोई सांसारिक बंधन नहीं,
बल्कि वंश और धर्म की निरंतरता का माध्यम है।
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💥 हमने क्या किया? — एक आत्म-स्वीकृति
और जब किया तो देरी से — शरीर साथ नहीं देता।
तो बेटी अकेली, बेटा टूट गया, और घर बिखर गया।
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👨👩👧👦 अब क्या करना होगा?
🔷 समय पर विवाह को अनिवार्य बनाएँ।
22 के बाद पुत्र, 20 के बाद पुत्री — विवाह हो जाना चाहिए।
🔷 एक नहीं, कम से कम तीन संतानें — यह आवश्यक है।
“बस एक बच्चा” — यह मानसिकता समाज को शून्य पर ला रही है।
🔷 अध्यक्षों और प्रबुद्धजन को सामाजिक विषयों पर बोलना ही होगा।
समाज का विनाश धर्म से भी बड़ा प्रश्न है।
🔷 लड़की के पिता को अब सजग होना होगा।
अपेक्षाएँ नहीं, समझदारी लानी होगी।
बेटी की ज़िंदगी बचानी है तो समय पर विवाह कराओ।
अंतिम चेतावनी — अब नहीं चेते तो इतिहास में रह जाएगा ‘हिन्दू समाज’