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हम में से बडी कौन है ?

चार बुढिया थीं।

उनमें विवाद का विषय था

कि हम में से बडी कौन है?

 

जब वे बहस करते-करते थक गयीं तो उन्होंने तय किया कि पडौस में जो नयी बहू आयी है,

उसके पास चल कर फैसला करवायें।

 

वह चारों बहू के पास गयीं। बहु- बहु हमारा फैसला कर दो कि हम में से कौन बडी है?

बहू ने कहा कि आप

अपना-अपना परिचय दो!

 

पहली बुढिया ने कहा :

 

मैं भूख हूं।मैं बडी हूं न?

 

बहू ने कहा कि : भूख में विकल्प है ,

56 प्रकार के भोज व्यंजन से भी भूख मिट सकती है और बासी रोटी से भी !

 

दूसरी बुढिया ने कहा :

 

   मैं प्यास हूं,  मैं बडी हूं न ?

 

बहू ने कहा कि :

प्यास में भी विकल्प है, प्यास गंगाजल और मधुर- रस  से भी शान्त हो जाती है और वक्त पर तालाब का गन्दा पानी पीने से भी प्यास बुझ जाती है।

तीसरी बुढिया ने कहा: मैं नींद हूं, मैं बडी हूं न ?

 

बहू ने कहा कि : नींद में भी विकल्प है। नींद सुकोमल-सेज पर आती है किन्तु वक्त पर लोग कंकड-पत्थर पर भी सो जाते हैं।

 

अन्त में चौथी बुढिया ने कहा : मैं आस (आशा) हूं, मैं बडी हूं न ?

 

बहू ने उसके पैर छूकर कहा कि : आशा का कोई विकल्प नहीं है।

 

आशा से मनुष्य सौ बरस भी जीवित रह सकता है, किन्तु यदि आशा टूट जाये तो वह जीवित नहीं रह सकता, भले ही उसके घर में करोडों की धन दौलत भरी हो।

 

यह आशा और विश्वास जीवन की शक्तियां हैं |

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