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तुझे किस किसने नहीं ध्याया मेरी माँ,भाग-9

प्रिय अर्जुन कैलाश पर्वत पर माता पार्वती ने महादेव से पूछा कि आपने हनुमान की सहायता क्यों नहीं की।आप चामुण्डा को समझाने का प्रयास तो कर सकते थे।हनुमान का मन भी रह जाता कि भोलेनाथ ने मेरा साथ देने का प्रयास किया।आज हनुमान कितना असहाय महसूस कर रहा है।

महादेव ने कहा,महादेवी❗ यदि मैं हनुमान की सहायता करता तो क्या चामुण्डा मुझसे रूष्ट नहीं होती और बात तो सारी चामुण्डा के प्रण की है, जो वे वचन भंग नहीं कर सकती।गाड़ी तो यहीं अटकी हुई सारी।आज मुझे खेद है कि मैं श्री राम काज में सहायक न हुआ।लेकिन मैं बाध्य नहीं बना,इसलिये सन्तोष है मुझे,चुपचाप लौट आना ही बेहतर था मेरा पार्वती।

लेकिन एक बात पूछूँ पार्वती❗तुम क्यों नहीं चली जाती हनुमान की सहायता को और चामुण्डा को समझाने।स्त्री स्त्री की भाषा समझती है।हो सकता है कि तुम्हारे जाने से बात बन जाये।

महादेवी ने कहा कि लंका की ओर तो मैं रुख भी न करूं।तप कर करके मेरी विभूतियां अपने गढ़ में ले गया और मेरे प्रतिरूपों से सेवा ले रहा है, उस पापी अभिमानी ने इस तरह की चतुराई खेली कि मेरी ज्योतियाँ अधर्म के किले में निवास को मजबूर हैं।इसलिये मैं तो लंका की तरह मुख भी न करूं।अब जो होना हो सो हो।

तुम्हारी पीड़ा को समझता हूँ मैं महादेवी❗इसीलिये वापस लौट आया।

फिर क्या हुआ गिरिधारी❓क्या हनुमान के गुरु ने रास्ता बताया❓

हाँ प्रिय अर्जुन❗हनुमान ने अपने गुरु सूर्यदेव महाराज को याद किया और सूर्यदेव हनुमान के समक्ष प्रकट हुए और बोले,बोलो शिष्य कपीश❗किसलिए स्मरण किया।

हे गुरु भगवान सूर्यदेव❗मेरी मदद कीजिये आज।मुझे कोई मार्ग नहीं मिल रहा लंका में जाने को।दसों दिशाओं के मार्ग चामुण्डा देवी ने कील दिए।मुझे राम जी का संदेश माता सीता को देना है।न चामुण्डा मदद करती बिना युद्ध के।युद्ध मैं माता से लड़ूं तो भी इनकी शक्ति अभेद है।फिर क्या करूँ गुरुदेव❓भोलेनाथ भी बिना समाधान किये चले गए।मेरी नैया बीच भंवर में फंस कर रह गयी गुरुदेव❗चामुण्डा माँ की हजारों विनती कर ली परन्तु वे अपने प्रण की पक्की हैं।बिना युद्ध के मार्ग नहीं देंगी।युद्ध में विजय भी इनकी।समय भी खर्च और माता से युद्ध का कलंक भी और हार भी,राम काज भी अधूरा।कृपा करो गुरुदेव,कोई तो राह दिखाओ।

समस्या तो बड़ी गम्भीर है प्रिय वत्स।

परन्तु तुमने अब तक दुर्गा के वीभत्स रूप से ही प्रार्थना की।

शास्त्रों में शांत रूप की स्तुति की सलाह दी गयी।

देखो हनुमान,नरसिंह जी का उग्र रूप कोई शांत नहीं कर पाया।इसलिये शिव जी ने शरभ रूप लेकर उस रूप का संहार किया।

भद्रकाली का उग्र रूप कोई शांत नहीं कर पाया।शिव भी नहीं तो शिव जी शांत होकर उनके मार्ग में लेट गए।तब वे शांत हुई।

देवी चामुण्डा अति कुपित हैं।वे रावण को तो कुछ कह नहीं सकती क्योंकि वचन से बंधी हैं, पर उन्हें अधर्मी का साथ देने में मानसिक पीड़ा हैं।इसलिये वे उग्र व  चिड़चिड़ी हो गयी हैं।अतः इस रूप की वंदना न करके तुम इनके शांत रूप की वंदना करो तो ये तुम्हारे लिये मार्ग खोल देंगी।

लेकिन गुरुदेव❗इनका शांत रूप कौन सा है, मुझे पता नहीं।कृपया ये भी मार्गदर्शन करें।

वत्स हनुमान❗इनका शांत रूप माँ गौरी हैं, जो गणेश और कार्तिक की माता हैं,जो नन्दी आदि गणों की पालनहार हैं, जो अन्नपूर्णा बन सबका उदर भरती हैं, जो शिव को संतुष्ट करती हैं, वे कैलाशी की अर्धांगी प्रिया मंगला गौरी जी जगत का मंगल करती हैं, तुम उन्हीं गिरिजा के ब्रह्मचर्य रूप ब्रह्मचारिणी देवी की स्तुति करो।जैसे जैसे तुम गौरी के तपस्वी रूप की वंदना करते जाओगे तो चामुण्डा का उग्र रूप उनमें समाहित होता जाएगा और ये शांत हो जाएंगी।

अतः इनसे ही आशीर्वाद लेकर वंदना करो और इन्हें यहीं विराजने की प्रार्थना करो।तुम्हारा निश्चित्त कल्याण होगा वत्स

हनुमान जी ने सूर्यदेव के चरणों में प्रणाम करके आशीर्वाद लिया और अब माँ चामुण्डा से बोले।हे महामाया योगिनी चामुण्डा माँ❗मेरी एक विनती मानिए कि मैं बस एक अन्य आवाहन ओर कर लूं,फिर मैं चुपचाप आपको लंका में प्रविष्ट होने को कह दूँगा और फिर वापस चला जाऊँगा।कृपया मेरी पूजा तक आप कहीं चली मत जाना।युद्ध का नियम है कि कोई भी योद्धा हो,वह अपने हिमायतों का आवाहन कर सकता है।अतः अभी युद्ध टला नहीं माँ।आप मैदान में डटी रहना।

ठीक है हनुमान,बुला लो अपने हिमायतों को,जिन जिन पर तुम्हें गर्व है, आज मैं भी डटी हूँ मैदान में,करो आवाहन।

अब तो हनुमान जी ने बीच मैदान में बैठकर गदा एक तरफ रखकर आँखें बन्द करके गौरी मंगला पार्वती के ब्रह्मचारिणी रूप का अपने हृदय में आवाहन किया और स्तुति आरम्भ की।

 जैसे जैसे स्तुति आगे बढ़ती गयी,माता चामुण्डा का कोप शांत होता गया और आगे स्तुति बढ़ती गयी तो उनका वर्ण श्याम से गौर होता गया।फिर स्तुति आगे बढ़ी तो उनके कृष्णवर्ण वस्त्र गुलाबी परिधान में परिणित हो गए।फिर स्तुति आगे बढ़ती गई और चामुण्डा के हाथों में फरसा कमल दल में बदल गया,उनके मुंडों की माला,गुलाब व गुड़हल में बदल गयी,उनके होठों का कोप मुस्कान में बदल गया और अब पूरी चामुण्डा देवी माता पार्वती के अति सौम्य रूप में परिणित हो गयी और वे बड़े कारुणिक स्वर में बोली वत्स हनुमान❗नयन खोलो और मन की बात कहो।

हनुमान ने आंखें खोली तो बड़ी सौम्य देवी पार्वती माता उनके समक्ष खड़ी थी।हनुमान ने उनके चरणकमलों की अभ्यर्थना की।माते❗आपकी सदा ही जय हो।माँ चामुण्डा कहाँ हैं❓उनसे मार्ग मांगना है लंका में जाने के लिये।

चामुण्डा देवी मेरे अंदर समाहित हो चुकी वत्स।अब मुझसे ही करो मन की बात।

हनुमान जी ने कहा,माँ❗मुझे लंका में प्रवेश करने दें।

नहीं हनुमान❗भले ही चामुण्डा मुझमें विलीन हो गयी,लेकिन उनका पण मेरे भीतर है।मेरे होते हुए तो तुम लंका में प्रविष्ट नहीं हो सकते।

क्यों माँ❓क्या धर्म अधर्म में आप फर्क नहीं मानती❓क्या रावण की मदद और मुझसे विरोध❓ये कहाँ का न्याय है माँ❓मुझे इस विवाद से मुक्ति कब मिलेगी माँ❓

न्याय तो तुमने किया मेरे साथ हनुमान❗मुक्ति तो तुमने मेरी करा दी हनुमान।

जिस दिन रावण सीता को अपहृत करके लंका में लाया था,उसी दिन उसके पाप किये गए पुण्यों से भारी हो गए थे।मैं वचन बध्य थी परन्तु सात महीनों से सीता जी की रक्षा के लिये लंका में चुपचाप बैठी थी।चारों प्रहर में मैं गोपनीय रूप से सीता के दर्शन करके आती हूँ और राक्षसियों से उनकी रक्षा करती रहती हूँ।कई बार राक्षसियाँ उन्हें डराती हैं तो मैं उनके हथियार ही तोड़ देती हूँ और उन्हें स्वप्न में भयभीत कर देती हूँ।अब तक सीता जी के लिये रुकी रही।अब तुम आ गए तो मुझे इत्मीनान हो गया कि तुम अवश्य ही सीता को बेफिक्र करोगे।

बिल्कुल माँ, मैं माता सीता को राम जी का संदेश देकर पूरी ढांढस दूँगा।कृपया मुझे अंदर जाने की आज्ञा दें।

मेरे रहते तो तुम अंदर जा ही नहीं सकते हनुमान❗

फिर मैं कैसे लंका में प्रवेश करूँ माँ❗

एक ही उपाय है हनुमान,मैं ही लंका के बाहर भीतर सब जगह से आज चली जाती हूँ।

तुम्हारे पुण्य रावण के पुण्यों से आज मेरी वंदना करके भारी हो गए।अतः अब तुम्हारा पलड़ा भारी हो गया और मुझे शर्त अनुसार रावण के वचन से मुक्ति मिल गयी।मैं कैलाश की ओर प्रस्थान करती हूं हनुमान क्योंकि मेरे रहते तुम नहीं जा सकते,मैं ही चली जाती हूँ।तुम्हारा कल्याण हो वत्स,तुम्हारी विजय पक्की है।जाओ वत्स,रामकाज सफल हो।रावण को पहली बार में ही दिन में तारे दिखा देना हनुमान,तभी सीता को भरोसा होगा उनकी मुक्ति का,केवल संदेश से बात न बनेगी हनुमान।मेरे आगे तो तुम्हारा जौहर न चला,लेकिन रावण को अपना तेज अवश्य दिखाना वत्स।उसकी प्रजा तक को भयभीत कर देना वत्स।तुम्हें बारम्बार आशीष

जय हो माता पार्वती माँ मंगला गौरी।ऐसा ही होगा।हनुमान ने लंका में प्रवेश व दुर्गा ने कैलाश पर प्रवेश किया।

क्रमशः●●●●●●●●●●●●●

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