जब चामुंडा देवी को रावण ने भूखा प्यासा रहकर श्रुति व संगीत द्वारा प्रसन्न कर लिया तो भगवती चामुंडा उसके सामने प्रकट हुई और रावण से वर मांगने को कहा।
रावण बोला,हे चामुंडा माँ ! मैं शिव जी के बिना रह नहीं सकता और शिवजी कैलाश छोड़कर कहीं नहीं रहना पसंद करते।मैंने उनके कैलाश को इसलिये उखाड़ना चाहा था कि लंका में कैलाश मिलेगा तो उनका मन लगेगा।परन्तु वो आना ही नहीं चाहते इसलिये उन्होंने जो अपना आत्मलिंग दिया था,जो कि उन्हीं का स्वरूप है तो वो भी बीच मार्ग में जम गया और उठाने से हिला तक नहीं।मैं बड़ा उदास रहता हूँ उनके बिना।आप मेरी सहायता करिए इस विषय में।
माता चामुंडा रावण की बातों से भली मंत्रमुग्ध हुई और कहा कि जब शंकर जी का मन नहीं लगता खुले आकाश के बिना तो तुम नगरी में लाकर उनका मन क्यों परेशान करने की कोशिश करते हो भला⁉भक्त वो जो भगवान के लिये अपना आनन्द लुटा दे।
इसीलिये ही मैंने वह संकल्प त्याग दिया माँ।उन्हें जहाँ अच्छा लगे,वे वहीं मगन रहें,मैं भी इसी में मग्न रहूँगा।
परन्तु तुम मुझसे किस तरह की सहायता चाहते हो इस विषय में,ये तो बताओ।
रावण ने मीठी मीठी बातें आरम्भ की और कहा कि हे माता ! यदि पिता नहीं रह सकते तो माता तो मेरे साथ रह सकती है, बस यही मेरी मंशा है।
तुम कहना क्या चाहते हो भक्त,खुलकर कहो,मैं यथा सम्भव तुम्हें वर दूँगी।
रावण ने कहा कि हे माँ मैं। माता पार्वती को भी कष्ट नहीं देना चाहता क्योंकि वे महादेव के बिना लंका में प्रसन्न नहीं रहेंगी और उन्हें उदास देखकर मैं उदास रहूंगा।
लेकिन माता को अपने पास रखने का मेरा मन है।इसलिये मैंने सोचा कि आप तो पहाड़ों पर अकेली विचरण करती रहती हो तो क्यों न आपको ही लंका में सिंहासन पर विराजमान करूँ क्योंकि आप भी पार्वती का रूप हो,इससे मेरी इच्छा भी पूर्ण हो जाएगी और कैलाश पर महादेवी महादेव के साथ रहेंगी और उनका प्रतिरूप आप लंका में निवास करें।बस यही मेरी आरजू है माँ ! आप मुझे यही वर दें।
हे अर्जुन ! चामुंडा देवी रावण के हाव भाव ताड़ गयी कि कितनी चालाकी से यह महादेव को अपने अधीन करना चाहता है मुझे लंका में स्थायी निवास देकर।जहाँ जहाँ दुर्गा के कोई भी रूप हैं, वहाँ वहाँ महादेव की ऊर्जा व्याप्त रहने लगती है।इस प्रकार रावण शिव पार्वती दोनों को वश में करना चाहता है।इसलिये
अब चामुंडा ने कुछ विचार कर कहा
अच्छा भक्तराज रावण ! मुझे किस दायित्व के साथ लंका में निवास देना चाहते हो ?
रावण बोला,माँ भगवती ! आप लंका के भीतर किसी भी व्यक्ति को प्रवेश न करने देना।लंका के बाहर लंकिनी का पहरा है,जो ब्रह्मा जी ने मेरे लंका राज्य से पहले ही नियत की हुई है और पूरी लंका में अब आपका पहरा रहे।अतः आपके रहते मुझे कोई लेश मात्र भी चिंता न रहेगी।आप मेरी भीतरी लंका में किसी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश मत करने देना।अगर कोई आये तो आप उसका संहार करें।बाकी दोनों समय मैं आपकी वंदना करने आपके चरणों में उपस्तिथ हुआ करूंगा।आपकी सेवा में कोई कमी नहीं आने दूँगा माँ।बस आप मेरी लंका में निवास पाओ,यही वर दें।
चामुंडा रावण की सारी मंशा ताड़ गई।तब वर देने को वे उद्यत हुई।
चामुंडा देवी ने कहा,हे प्रिय भक्त रावण ! तुमने मेरी अकाट्य तपस्या की है, अतः वर के पूर्ण अधिकारी हो।आज से मैं तुम्हें वर देती हूँ कि मैं तुम्हारी लंका में अभी से निवास करूँगी और पूरी लंका के भीतर दिन रात मेरा पहरा
रहेगा।लेकिन मेरी एक शर्त होगी वो यह कि जिस दिन तुम्हारे पाप तुम्हारे किये गए पुण्यों से भारी हो जाएंगे तो मैं तुम्हारी लंका को छोड़ दूँगी क्योंकि तुमने मेरी कठिन तपस्या की है, अतः इस महापुण्य से तुम्हारे साथ चलने को विवश हूँ।लेकिन मेरी चेतावनी ध्यान रखना।
ठीक है माँ ! मैं धन्य हुआ और विश्वास दिलाता हूँ कि मैं पुण्यों की वृद्धि इतनी करता रहूँगा कि आप सदैव मेरे ही पास रहेंगी।मैं आपकी सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखूंगा।
ऐसा कहकर वह महामाया चामुंडा को अपने संग ले आया।और विशेष गुफा में उन्हें निवास दिया और पास ही एक गुफा में महादेव का शिवलिंग निर्मित करके उनकी भी नित्य उपासना करने लगा।
चामुंडा के निकट रहने के कारण उस शिवलिंग में महादेव की ऊर्जा आकर्षित होने लगी।
🪻लेकिन रावण इतने पर ही शांति नहीं पा सका।अब वह पार्वती के अन्य रूपों को वश में करने की कोशिश करने लगा।
ताकि पार्वती की पूरी ताकत वह लंका में ले आये और महादेव पूर्ण शक्ति से लंका में रहने पर विवश हो जाएं।
अब वह दस महाविद्या में सबसे प्रमुख तारा देवी की उपासना में लग गया।
क्रमशः●●●●●●●●