दुर्गा की तो हर बात में दम था पद्मनाभ❗फिर शिव उन्हें ऐसी ऐसी सलाह क्यों दे रहे थे भगवन❓
क्योंकि वे भगवती की परीक्षा ले रहे थे।ज्यों ज्यों भवानी उनके उपायों को अपने तर्क से काटती जाती थी, त्यों त्यों भव अंदर से प्रसन्न हुए जाते थे।ये भव भवानी की जोड़ी बड़ी निष्ठावान व ज्ञानवान है।भव अपनी भवानी को देख देख गर्वित होते हैं क्योंकि सिक्का बहुत मजबूत है दुर्गा का।कभी कभी तो शिव भी थर्रा जाते हैं इनके आगे।
जय दुर्गा भवानी फिर क्या हुआ लोकेश❗आगे बताएं,मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है।
सुनो वीर अर्जुन।
जब निकुंबला ने कहा कि ओर कोई उपाय बताएं तो शिव ने कहा कि
तुम भक्त के लिये दरवाजे बंद नहीं कर सकती,ये अति उत्तम कथन है तुम्हारा।
पर अधर्मी को तो तोड़ना ही होगा।
तुम ऐसा करना भवानी कि आज रात को जब वह भोग लगाएगा अपने रक्त व मांस का तो उस भोग को स्वीकार न करना।ऐसा करने से उसकी पूजा अधूरी ही रहेगी और तुम रथ पर सवार होने से बच जाओगी।
नहीं महादेव❗भोग सामान्य पदार्थ नहीं रहता।वह रक्त मांस हड्डी राख फल फूल मूल मेवा मिष्ठान कुछ भी हो,वह केवल भक्त का भावमई पदार्थ होता है, उसमें भक्त की श्रद्धा का सार होता है, वह पदार्थ नहीं रहता,उसकी प्रार्थना की सुगंध होती है उसमें।भोग में मंत्रों की ज्योत समाई होती है, भक्त की भेंट की हुई सामग्री पर दृष्टि डालना देव व देवी धर्म है।पदार्थ भोग तभी कहलाता है, जब देव दृष्टि पड़े।जो भक्त अपने बदन का लहू मुझे अर्पित करेगा व मांस काट काटकर मुझे अर्पित करेगा,उसकी कितनी गहरी भावनाएं जुड़ी होंगी उस भेंट में।तन को काटकर चढ़ाना क्या आम बात है प्रभु❗फिर कैसे भोग रूपी विभूति को ग्रहण न करूं,ये उपाय तो मेरी आत्मा स्वीकर नहीं करेगी।कोई और उपाय बताओ।
तो जब वह पूजा करने बैठे,तब उससे प्रश्न करना कि वह गलत मार्ग पर है,एक तपस्वी वनवासी राजकुमार की पत्नी के लिये युद्ध कर रहा है और तुम सीता को लौटा दो,न पूजा की जरूरत न युद्ध की।इस तरह समझाओ उसे।
ये रावण के वश में है, वह न पिता की मानता न पुत्र की और न पत्नी की।मेघनाद पितृ भक्त है, वह पिता की मदद कर रहा है युद्ध में।इस समय युद्ध में जाना उसका पितृ धर्म है, बाप का नमक खाया है।वह इस बात पर सहमत नहीं होगा क्योंकि मैं मेघनाद को बहुत अच्छे से समझती हूं।
भगवती❗मैं इसलिये कह रहा हूँ कि तुम भक्त को बातों में उलझाए रखोगी तो काफी समय नष्ट हो जाएगा और वह सुबह तक तुम्हारी पूरी पूजा नहीं कर पायेगा।केवल इतना कर लो।
नहीं महादेव❗संसारी व्यक्ति ही उलझन में डालते हैं, विचलित करते हैं, समय नष्ट करते हैं।मैं भक्त के अधीन हूँ, धोखा नहीं दे सकती,चतुराई नहीं खेलूंगी।कोई और उपाय बताएं।
तो जब पूजा करने लगे,तब बता देना कि एक नारी को चुराकर लाने में रावण का पाप बढ़ गया और रावण का साथ देकर मेघनाद का भी पाप बढ़ गया,अतः मैं रथ पर नहीं चलूंगी।
देखो महादेव❗प्रतिज्ञा को ध्यान से सुनो,उसने वरदान लिया था कि जब जब आपका आवाहन करूँ,तब तब आपको मेरे रथ पर आरूढ़ होना होगा।तब मैंने शर्त लगाई थी कि रथ पर ले चलने से पूर्व मेरी पूजा करनी होगी,यदि पूजा अधूरी रही तो उस दिन रथ पर नहीं जाऊंगी।तो वह हर बार आवाहन करने आता है, तो भक्त की तरफ से तो कोई त्रुटि नहीं मिली पूजा में।फिर किस आधार पर कमजोर करूँ उसे।न्याय संगत बात करो महादेव।
आप तो उत्तम सलाह नहीं दे रहे।इससे अच्छा तो हनुमान जी के गुरु थे सूर्यदेव,उन्होंने कितना उत्तम तोड़ निकाला और चामुण्डा गौरी में समा गई,उनकी लंका से मुक्ति हो गयी,हनुमान को रास्ता मिल गया ।लेकिन मेरी मुक्ति का कोई ठोस उपाय नहीं,आप तो ठिठौली कर रहे हो।
तो फिर तुम भी अपने गुरु को याद करो,शायद कोई ठोस उपाय मिले और तुम लंका से मुक्ति पा जाओ।
गुरु❗मेरे तो पति भी आप और गुरु भी आप।
नारद ने तो कुमारी को मंत्र दिया था,सो आप पति मिले।लेकिन आपने तो मुझे दीक्षा दी ज्ञान ध्यान,तंत्र मंत्र और सभी शास्त्र पढ़ाये।मुझे गुरु दीक्षा दी,गुरु गीता भी पढ़ाई,मेरी तो सारी पढ़ाई आपने करवाई।मेरे गुरु तो आप हो तो हे प्राणनाथ।अब तक तो पति बनकर बात कर रहे थे,अब गुरु बनकर मेरी पीड़ा समझो और ठोस उपाय बताओ।
ठीक है निकुंभे❗अब तक तो मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि देखूँ, मेरी विभूति कहीं राक्षसों के बीच अपनी दिव्यता तो नहीं खो बैठी।लेकिन तुम पूर्णतया सफल निकली और मेरी सारी बात काट दी,तुममें निर्मलता,दिव्यता भव्यता व ऐश्वर्यता, धीरता, वीरता, सरसता,सरलता,सौम्यता, सामर्थ्यता आदि किसी भी गुण में कमी न आई।मुझे तुम पर गर्व है निकुंभे❗
अब मैं तुम्हारा गुरु बनकर तुम्हें एक मार्ग बताता हूँ,उसी मार्ग से तुम्हारा मार्ग प्रशस्त होगा।
कहिये गुरुदेव❗जो आज्ञा होगी,शिरोधार्य है।शीघ्र कहिये,मेघनाद पूजा करने आने वाला है।
सुनो मंगले निकुम्भले❗तुम महादेव की धर्मपत्नी हो,महादेव के इष्ट श्री हरि विष्णु हैं तो वामांगी होने के नाते तुम्हारे भी इष्ट श्री हरि हुए।वो ही श्री हरि श्री राम रूप में महि भार हरण व दुष्टों का दलन करने पृथ्वी पर अवतरित हुए।उन्हीं की वामांगी श्री जी लंका में बंदिनी हैं।सो श्री राम अपने व मेरे इष्ट को हृदय में धारण करके उनका ध्यान करो और स्तुति करते हुए उन्हें अपनी चिंता समर्पित कर दो।तुम आज मेरा चिंतन छोड़ दो ,श्री राम की मूर्ति हिय में धारण करो।बस फिर राम जी ही तुम्हारी मदद करेंगे।उनका चिंतन करते हुए मेघनाद की प्रार्थना,अर्चना भोग स्वीकार करो,बाकी जो सत्यता व अपनी कर्तव्यता पर अडिग रहते हैं, उनका मुक्ति न हो ये असम्भव है।
निकुम्भले❗तुमने राम लखन की जोड़ी पर दया दिखाई और कल उन्हें पराजित नहीं देखना चाहती तो ये तुम्हारी प्रखर उदारता है कि तुम सत्य का भी साथ देना चाहती हो और भक्त को भी निराश नहीं करना चाहती तो तुम्हारी धर्मपरायणता ही तुम्हें वचन मुक्त करके लंका से मुक्त करेगी,मेरा आशीर्वाद है तुम्हें।तुम्हारा गुरु बनकर मुझे गर्व है तुम्हारी निष्ठा पर।कल आप बंधन मुक्त होंगी अवश्य।तुम्हारी चिंता ही हरने आया था मैं।
हे मेरे गुरुदेव महादेव❗श्री राम कैसे करेंगे सब,वे तो नगरी में प्रवेश नहीं करते वनवास काल में।
हे प्रिये❗चिंता मत करो।तुम छल नहीं कर सकती,लेकिन श्री राम तुम्हारी मुक्ति के लिये ही छल करेंगे और उनका भक्त व भाई लखन व अन्य वीर सब छल करेंगे तुम्हारे भक्त से।बस इतना कहना मान लेना शुभ्रे❗जब राम जी तुम्हारे भक्त की तपस्या डिगाएँ, तुम बीच में मत कूदना क्योंकि तुम्हारी आड़ में पलते हुए अधर्म को मिटाना भी जरूरी है, तुम उसके रथ पर जाने को विवश हो,उसकी साधना का फल देने को विवश हो,लेकिन उसकी साधना में कोई और व्यवधान डाले, उसके लिये तुम वचन बध नहीं हो।बोलो कहना स्वीकार है मेरा।
जो आज्ञा मेरे गुरु❗निश्चिंत रहें,राम काज में बाधा नहीं बनूंगी,मैं सीता की मुक्ति पहले चाहती हूं,अपनी बाद में।प्रणाम महादेव
तुम्हारा शीघ्र कल्याण होगा प्रिये❗
अब भवानी अपने हृदय में श्री राम की छवि को धारण करके मन मगन हो गयी और इटनर में मेघनाद हवन रचाने आ गया गुफा में।पर उसे अहसास हुआ कि आज यहां कोई अवश्य आया है।अतः उसने गुफा के आसपास कड़ा पहरा लगवा दिया और आदेश दिया कि कितना भी जरूरी कार्य हो,मुझे कोई आवाज न दे।
क्रमशः●●●●●●●●●●●●●