दुर्गा माता मौन रही।उधर दूसरे परिसर से अहिरावण के जोर जोर से हवन करने की ध्वनि सुनाई दे रही थी।हनुमान बार बार दुर्गा से प्रार्थना करते जा रहे थे कि माँ राक्षसों से संसार का उद्धार नहीं।वे तो मनुष्यों को,ऋषियों को,देवताओं को दुख ही देते हैं फिर क्यों आप इनकी रक्षा में निश्छल भाव से यहाँ आरूढ़ हैं माँ।मेरे प्रभु श्री राम ने कसम खाई है कि वे निशिचर विहीन धरती कर देंगे परन्तु आप भवानी कैसे इनका साथ दे सकती हैं।बोलो माँ, वो दुष्ट आकर मेरे प्रभु श्री राम लखन की भेंट चढ़ाएगा आपको।क्या आप ऐसा अनर्थ होने देंगी।मेरे प्रभु को जगाइए,उस अहिरावण के यहाँ पधारने से पूर्व ही, मैं इन्हें ले जाऊंगा।ये अचेत हैं माँ और तंत्र विद्या से इन्हें यहां स्थिर लिटाया गया है।मेरी सहायता करो महामाया।
हनुमान जी ने माता भगवती के एकाग्र मन से श्लोक पढ़े,स्तोत्र पढ़े,मंत्र में तल्लीन हो पुनः पुनः प्रार्थना की।तब भगवती मूर्ति से प्रकट हुई और बोली।
वत्स हनुमान❗मैं तुम्हारी मदद अवश्य करूँगी क्योंकि मेरे मुक्त होने का समय अब आ गया।
मैंने तपस्वरूप अहिरावण के पाताल लोक आने का वचन दिया था लेकिन शर्त लगाई थी कि जिस दिन तू निष्पाप व्यक्ति की मुझे भेंट अर्पित करेगा,उसी दिन मैं लुप्त हो जाऊंगी।
अतः हनुमान राम लक्ष्मण नितांत निष्पाप है और तुम भी निष्पाप हो,ऐसे में मैं इनकी भेंट नहीं लूंगी और यहाँ से चली जाऊंगी।लेकिन अभी तो इन्हें मेरे सम्मुख लिटाया गया है और मैं इन नारायण अवतार का मुख कमल देख देखकर धन्य हो रही हूँ।
ठीक है माँ❗आप मुक्त होकर जाएं और इन्हें जगाएं।आप कैलाश गमन करें और मैं भी इन्हें युद्ध शिविर में ले जाता हूँ।अहिरावण को पता भी न चलेगा।शीघ्र कीजिये माँ, वो हवन पूरा करे,इससे पहले मुक्त करो इनके बंधन व स्वयं भी मुक्त होईये माँ।
नहीं हनुमान❗जब तक वह इनकी भेंट मुझे देने को अपने हाथ में तलवार नहीं ले लेता ,तब तक मैं मुक्त नहीं हनुमान❗
अपना मन्तव्य स्पष्ट करें माँ❗आप कह रही हैं कि आपके मुक्त होने का समय आ गया है तो मुक्त होइए माता और आप इन्हें क्यों नहीं जगा सकती❓
प्रिय हनुमान❗इन्हें मेरे ही तंत्र द्वारा रचे मंत्रों से अचेत किया गया है।अतः अहिरावण का यह तंत्र कवच मैं कैसे काट दूँ।इस तंत्र को प्रयोग करने वाला ही काट सकता है।मैं अपने मंत्र को नहीं काट सकती।
दूसरी बात अभी इनकी बलि नहीं दी गयी जो मैं मुक्त हो जाऊं।
जैसे ही वह तलवार से इनके शीश जुदा करने को उद्यत होगा,तभी मैं शर्त अनुसार मुक्त हो पाऊंगी।अभी तो वह हवन पूर्ण करेगा,फिर रुद्राभिषेक करेगा,फिर मेरी पूजा करेगा,फिर इन दोनों को सचेत करेगा, फिर इन्हें आहार देगा,फिर अपने हाथ में तलवार लेगा और प्रहार करेगा,तब मैं मुक्त हो सकूंगी।
बिना भेंट के उद्यम बिना तो मैं वचन बध हूँ ही।
तो क्या आप ये सब देखती रहेंगी माता❗आप इतनी विवश क्यों हैं माते❓
यही तो विडंबना है हनूमान❗हम वर भी देते हैं और भक्त के आगे मजबूर भी हम ही होते हैं।लेकिन यदि हम तप का फल न दें तो कोई भी हमारी आराधना न करें।
लेकिन क्या आप तलवार से प्रहार करते हुए अहिरावण के हाथ से वार होने देंगी अपने मुक्त होने के लिये।अगर ऐसा हुआ तो वह तो तलवार रोकेगा नहीं।
नहीं हनुमान❗मैं वचन बध न होती तो बिल्कुल हाथ तोड़ देती उस महानीच का।
फिर मेरे प्रभु की रक्षा कैसे होगी माँ❓मेरी मदद करें,आप मेरी बलि ले लें माँ, मेरे प्रभु की बलि न लें।
तुम्हारे प्रभु मेरे पति के आराध्य हैं हनुमान❗फिर मैं इनकी व तुम्हारी बलि तो ले ही नहीं सकती।
लेकिन मैं तो कुछ नहीं कर सकती।
आप बलि भी नहीं लेंगी प्रभु की और जगा भी नहीं सकती इन्हें और मुक्त भी नहीं हो सकती पाताल लोक से।ये सब मेरी समझ नहीं आया माँ।आपकी वचन मुक्ति कैसे सम्भव होगी माँ❓क्या मैं आपकी कुछ सेवा कर सकता हूं माँ❓आपने ये क्यों कहा कि मेरे मुक्त होने का समय आ गया।जरा सपष्ट करें माँ❓
देखो भक्त हनुमान❗वचन देते समय मेरी शर्त थी कि जिस दिन निष्पाप प्राणी की बलि दोगे तो मैं पाताल त्याग कैलाश चली आऊंगी।पर अभी उसने बलि दी कहाँ❓इन निष्पाप राम लखन की बलि देगा,तभी तो मुक्त होऊंगी,उससे पहले नहीं।
हनुमान जी कांप उठे।ये क्या कह रही हो जगतमाता।आप बलि लेंगी,तब मुक्त हो जाओगी तो आप अपनी मुक्ति को सचमुच बलि ले लेगी इनकी❓माँ मैं यदि निष्पाप हूँ तो आप मेरी बलि लेकर मुक्त हो जाइए अहिरावण को दिए वचन से,परन्तु मेरे प्रभु व लक्ष्मण भैया की बलि न लें मेरी माता।
भक्त हनुमान❗तुम तीनों ही निष्पाप हो।लेकिन बलि अभी दी नहीं तो मैं मुक्त नहीं।जरूरी नहीं कि वह इनका शीश काटे,मैं तभी मुक्त हूंगी।लेकिन वह इन्हें मारने के लिये तलवार हाथ में लेकर चलाने को उद्यत होगा,तब मैं वचन से मुक्त होऊंगी।अतः उसका यहाँ आना जरूरी है, इन्हें सचेत करना भी जरूरी है, इन्हें आहार देना भी जरूरी है, तब तलवार लेना भी जरूरी है और तलवार से प्रहार करना भी जरूरी है, तब शर्तानुसार मैं मुक्त हूंगी वचन से।
इसका मतलब मैं मूक दर्शक बन सब अप्रिय घटना को देखता रहूँ माँ❓जब वो तलवार से मारेगा, तब आप उसकी तलवार को रोकोगी न माँ, मेरी चिंता हल करो माँ।
नहीं भक्त हनुमान❗मैंने आज तक किसी भी बलि के लिए तलवार नहीं रोकी,जो आज रोकूँ।
आप भले ही पापियों की बलि लें,लेकिन क्यों लेती हैं उनकी भी बलि❓
आप बलि लेती हैं और उसका बल बढ़ता है।ये क्यों करती हो माँ, मुझे तनिक समझाओ क्योंकि आपकी ये लीला मैं नहीं समझ पाया जगदम्बे।कृपा करें महेश्वरी,मुझे इस विषय में ज्ञान दें।
प्रिय वत्स हनुमान❗युद्ध में पापियों का,दानवों का भक्षण करती हूं,उनकी हड्डियों के गहने बनाकर अपना श्रंगार करती हूं,उनका गर्म गर्म लहू पीती हूँ, उनका चर्म चबाकर अपना पेट भरती हूँ।यहाँ मुझे भवन में ही यह पापी नित्य भेंट लाता है, कभी दस,कभी सौ,कभी एक,कभी दो तो मैं इतना बढ़िया अवसर क्यों खोऊँ कि मुझे युद्ध भी नहीं करना पड़ रहा व पापी हजम भी कर रही हूं,यह अन्य असुरों को अपने अधीन करके पाताललोक का साम्राज्य बढ़ाना चाहता है, बहुत से असुर यहीं बसाना चाहता है।अतैव, जो इसके विरुद्ध होते हैं, उनकी बलि मुझे यहाँ देता है।इस प्रकार मुझे शस्त्र की जरूरत नहीं,खुद अभिमान में पगला गया है।अब रावण ने इसे अपना मोहरा बनाया है तो ये मर्यादा पुरुषोत्तम को अपहृत करके अपने ही चंगुल में फंस गया।
फिर अब क्या होगा,अम्बिके❓उसकी तलवार आप नहीं रोकेंगी तो कौन रोकेगा मातेश्वरी❓
तुम रोकोगे हनुमान❗मेरी इस लीला में तुम मेरे सहायक सिद्ध होंगे रामभक्त हनुमान।
मैं सर्वेश्वरी मैं❗मेरे धन्य भाग मां विश्वेश्वरी,आप जो भी कहेंगी,मैं करूंगा माता❗
बोलो जगजननी❗शीघ्रता कीजिये।मैं करूंगा,जो आप कहेंगी माँ।
सुनो हनुमान।उसके आने से पहले तुम यहाँ स्थापित शिवलिंग का पूजन करो,फिर रुद्राभिषेक करो और फिर मेरा पूजन करो।तब मैं तुम्हें अपना सुर दूँगी क्योंकि मेरी मान्यता से पहले यहाँ मेरे महादेव की मान्यता जरूरी है।
मेरा सुर ग्रहण करके तुम मेरी प्रतिमा के पीछे लघु रूप बनाकर छिप जाओ।
क्रमशः●●●●●●●●●●●●