नवरात्र
अष्टादशभुजा पूज्या सा सहस्रभुजा सती।
आयुधान्यत्र वक्ष्यन्ते दक्षिणाधःकरक्रमात् ॥
यद्यपि उनकी हजारों भुजाएँ हैं तथापि उन्हें अठारह भुजाओं से युक्त मानकर उनकी पूजा करनी चाहिये । अब उनके दाहिनी ओर के निचले हाथों से लेकर बायीं ओर के निचले हाथों तक में क्रमशः जो अस्त्र हैं, उनका वर्णन किया जाता है।
अक्षमाला च कमलं बाणोऽसिः कुलिशं गदा।
चक्रं त्रिशूलं परशुः शङ्खो घण्टा च पाशकः ॥
शक्तिर्दण्डश्चर्म चापं पानपात्रं कमण्डलुः । अलङ्कृतभुजामेभिरायुधैः कमलासनाम् ।।
सर्वदेवमयीमीशां महालक्ष्मीमिमां नृप।
पूजयेत्सर्वलोकानां स देवानां प्रभुर्भवेत् ॥
अक्षमाला, कमल, बाण, खड्ग, वज्र, गदा चक्र, त्रिशूल, परशु, शंख, घण्टा, पाश, शक्ति, दण्ड, चर्म (ढ़ाल), धनुष, पानपात्र और कमण्डलु – इन आयुधों से उनकी भुजाएँ विभूषित हैं। वे कमल के आसन पर विराजमान हैं, सर्वदेवमयी हैं तथा सबकी ईश्वरी हैं । राजन् ! जो इन महालक्ष्मी देवी का पूजन करता है, वह सब लोकों तथा देवताओं का भी स्वामी होता है।