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कर्म की भिन्नता से परिणाम में बदलाव

जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले… तो काल आया ! और जैसे ही काल आया तो गिद्धराज जटायु ने मौत को ललकार कहा “खबरदार ! ऐ मृत्यु ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना…मैं मृत्यु को स्वीकार तो करूँगा… लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकती…जब तक मैं सीता जी की सुधि प्रभु “श्रीराम” को नहीं सुना देता…! मौत उन्हें छू नहीं पा रही है…काँप रही है खड़ी हो कर…मौत तब तक खड़ी रही, काँपती रही…  जब तक जटायु  ने प्रभु श्रीराम को सच्चाई से अवगत कराया तब तक काल प्राण लेने का  साहस नहीं कर पाया    और यही इच्छा मृत्यु का वरदान जटायु को मिला।

 

           किन्तु महाभारत के भीष्म पितामह छह महीने तक बाणों की शय्या पर लेट करके मौत का इंतजार करते रहे…आँखों में आँसू हैं…रो रहे हैं…भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं…!

कितना अलौकिक है यह दृश्य…रामायण मे जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं…! प्रभु “श्रीराम” रो रहे हैं और जटायु हँस रहे हैं…!! वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं और भगवान “श्रीकृष्ण” हँस रहे हैं…भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं…?

 

अंत समय में जटायु को प्रभु “श्रीराम” की गोद की शय्या मिली…!

 

लेकिन भीष्म पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली….!

 

जटायु अपने * नेक कर्म के बल * पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहे है….प्रभु “श्रीराम” की शरण में….और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं…. !

 

ऐसा अंतर क्यों…?

 

ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था…विरोध नहीं कर पाये थे…!

 

दुःशासन को ललकार देते…दुर्योधन को ललकार देते…लेकिन द्रौपदी रोती रही…बिलखती रही…चीखती रही…चिल्लाती रही… लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे…नारी की रक्षा नहीं कर पाये…!

 

उसका परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली !!

और….जटायु ने नारी का सम्मान किया…अपने प्राणों की आहुति दे दी…तो मरते समय भगवान “श्रीराम” की गोद की शय्या मिली…!

 

विशेष::    जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं उनकी गति भीष्म जैसी होती है…और जो अपना परिणाम जानते हुए भी   सत्य और न्याय का पक्ष लेते हैं और.    .. दुसरों   के लिए संघर्ष करते है, उस का माहात्म्य जटायु जैसा कीर्तिवान होता है…!!

 

शिक्षा:: सत्य और न्याय का पक्ष लेना चाहिए और अन्याय का विरोध करना चाहिए l

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