आज ऑफिस से जल्दी निकल गया. घर पर भी कोई काम नहीं था तो उसने कहा कि आज शॉपिंग करने जाना है. ऑफिस के पास ही एक नया मॉल खुला था और मैंने सोचा कि मुझे वहां जाना चाहिए. मॉल मस्त था… लेकिन शॉपिंग करते वक्त अचानक मेरी नजर एक शख्स पर पड़ी। वह व्यक्ति कुछ जाना-पहचाना लग रहा था. थोड़ा याद करने की कोशिश की….और झटका लगा…ओह…हा…यह वही है…दर्पण देशपांडे…जिसे मैंने चार साल पहले ‘अस्वीकार’ कर दिया था। ….. देखने में तो अच्छा है… लेकिन रहन-सहन बहुत ख़राब है… न कपड़े अच्छे हैं… न दाढ़ी , न बाल अच्छे हैं… बात करने मे भी बहुत बुरा…… वो मेरे साथ होता था तब मुझे शर्म आ जाती थी…. अखिर मैने ही उसे बोल दिया था अपनी कुछ
लेकिन अब….कपड़े कसे हुए…दाढ़ी, बाल साफ-सुथरे… लाडकिया देखे तो घायल हो जाये…
मुझसे रहा नहीं गया और उसके पास गया…कहा, “क्षमा करें…।”
उसने मुड़कर देखा…. वो भी मुझे देख कर हैरान हो गया…. “अरे…. कैसी हो….? बहुत दिनों के बाद…?”
“हाँ… चार साल…”
“अरे वाह….! याद है…?”
“हाँ…”, उसने शरमाते हुए कहा।
फिर उसने विषय बदला, “क्या आप कॉफ़ी पियेंगे…?”
मॉल में CCD गया…कॉफी का ऑर्डर किया….उसने पूछा “और कुछ…?”
“नहीं…अभी नाश्ता करके ऑफिस से निकलीं हूँ…” उसने ऑर्डर दिया….फिर मज़ाकिया लहजे में कहा “क्या ऑफिस में कॉफ़ी नहीं मिलती..?”
“मिलती हैं… लेकिन वो भैया वाली कॉफ़ी… उसमें न रंग है, न गंध, न स्वाद…”
वह थोड़ा मुस्कुराया…. एक पल के लिए उसे देखती रही। यहां तक कि बालों से लेकर जूतों तक. उसने भी तब देखा उसासे नजर हटाई फिर भी उसने पुछाही, क्या देख रही हो…
“कुछ नहीं…।”i
तभी कॉफ़ी आ गई…. कॉफ़ी लेते हुए उसने पूछा… “तो.., तीर कहाँ लगा या नहीं…?”,
थोड़ा शरमाते हुए बोला “नहीं… अभी भी देख रही हूँ…”,
“और तुम्हारा…”,
उसने कहा, “हां… एक साल पहले…छह महीने हो गये बेड़ियों में जकड़ा हूं…”ने मुस्कुराते हुए कहा…,
“अरे वाह… बधाई हो…” सदमे से उबरते हुए बोला… “क्या कर रही है भाभी…?”
“अवंती…एक आर्किटेक्चरल डिज़ाइनर हैं…” उसने फोटो दिखाते हुए कहा।
फोटो देखकर मनमे कहा ‘ठीक है…’, लेकिन कहा “वाह…खूबसूरत…”।
थोड़ी देर बाद उसने कहां…”आप सोच रहे होंगे….? ये इतना कैसे बदल गया…?, इस लड़की ने इसे कैसे पसंद किया ..?”
मैंने कहा, “नहीं, नहीं, ऐसा कुछ नहीं है…, लेकिन मैं थोडी आश्चर्यचकित हो गयी…”।
उसने मुस्कुराते हुए कहा, “कभी-कभी मुझे भी आश्चर्य होता है. उसने मुझमें क्या देखा..?”
मैंने कहा, “बेशक…तुम्हें तुम्हारे लुक से घायल हो गयी होगी…”।
वह जोर-जोर से हंसने लगा… उसके आस-पास जोडीया भी देखने लगी… उसने कंट्रोल करते हुए कहा, “यह देखो…?…, यह उसने बनाया है…”
“क्या…?”
उसने मुझसे कहा… “बताता हूं…” कॉफी का एक घूंट लेते हुए उसने बोलना शुरू किया… “जब तुम्हारी तरफ से फैसला आया तो मुझे थोड़ा बुरा लगा… फिर दो-तीन और लड़कियाँ और देखीं। उन्होंने भी अस्वीकार कर दिया… फिर मैंने सोचा ‘मुझमे क्या कमी है…?’ सैलरी अच्छी है… देखने में अच्छा लगता हूं… लेकिन … सामने वाला कहता था… जुडना मुश्किल है
मैंने अपने परिवार से कहा.. कि अब बस.. लेकिन वे सुनने को तैयार नहीं थे।
बाद में परिवार ने एक बार अवंती की प्रोफाइल दिखाई. मैंने मन में कहा कि अब तो वो भी मना कर देगी.. लेकिन परिवार के लिए मैंने कहा ‘ठीक है’।
जब हमारा ‘ देखना दिखानेका ’ कार्यक्रम था… तो उसकी आँखों में मेरे लिए कुछ नहीं दिख रहा था। फिर भी मैंने परिवार के लिए ‘मुझे यह पसंद है’ कहा…
एक-दो दिन में उसका भी फोन आया… ‘वह लड़के से मिलना चाहती है…’ हमने फोन नंबर एक्सचेंज किए। एक दिन हम मिले भी.
उसने अपना बैकग्राउंड बताया…मुझसे पूछा…मैंने भी बताया.
अगले दिन उसका फ़ोन आया… ‘मुझे लड़का पसंद है’…
मैं तो बस बेहोश होने ही वाला था. मैंने तुरंत उसे फोन किया और पूछा ‘ मिलें?’ उसने कहा, ‘मैं अभी ऑफिस में हूं, ऑफिस के बाद मिलती हूं।’
मैं उसके ऑफिस के नीचे उसका इंतज़ार कर रहा था.. वो ऑफिस छोड़ कर आई.. हम एक होटल में गए। वो बोली,..’बोलो…’
मैंने साफ-साफ पूछ लिया, ‘आपका फैसला तो पक्का है न..’
उसने कहा ‘हां…क्यों?’
मैंने कहा…’तुम्हें मुझमें क्या दिखता है..? मैं थोड़ा अबोले हूं, मेरे साथ रहना बहुत मुश्किल है, मौजूदा लड़कियों के बीच लोकप्रिय भी नहीं हूं, आऊटडेटेड हूं। आपको कैसे अच्छा लगा…?’
वह मुस्कुराई और बोली, ‘मुझे आपकी ईमानदारी पसंद है, जब हम पहली बार मिले थे, तो आपने मुझे सब कुछ बताया था, अपनी ताकत, अपनी कमजोरियां, आप क्या बनना चाहते हैं, सब कुछ… कहा, वह आदमी जो हमें सब सच बताता है पहली मुलाकात में उसका दिल, वो इंसान जिंदगी में कभी धोखा नहीं दे सकता, और बेवकूफी, कल बदल भी सकती है। एक इंसान का बदलाव उसी इंसान पर निर्भर करता है। उसे कब बदलना है यह उस इन्सान पर निर्भर करता है। और तुम्हें देखकर मुझे लगा कि तुम इसे बदल दोगे।’
‘नमस्ते? ‘कहाँ खो गए?’ हँसते-हँसते उसने मुझे भी होश में ला दिया… मैंने तब कुछ नहीं कहा। लेकिन मैंने दिल से फैसला किया.. मैं उससेही शादी करूंगा।
फिर धीरे-धीरे मुलाकातें बढ़ती गईं और उसने मुझे कुछ शारीरिक और मानसिक बदलावों का सुझाव दिया। मैंने ऐसा किया और मुझे एहसास हुआ कि…. यही जीवन तो मैं जीना चाहता था….
हम कहते हैं कि ‘बंद घड़ी को कोई नहीं देखता… लेकिन अगर घड़ी में चाबी नहीं लगाई जाए और उसे सही समय पर न लाया जाए, तो घड़ी सही समय नहीं बताएगी और कोई भी उसे नहीं देखेगा।’
मेरे जीवन की बंद घड़ी की चाबी अवंती के पास थी….और अब तुम्हारे सामने जो बैठा है…उसकी ‘ संशोधक ’ भी वहीं है…”
“सर… बिल…” वेटर ने कहा तो दोनों को होश आया…. मैंने टाटा बाय बाय कहते समय उसने बिल चुकाया.. बोला, “इसे चुकाने के लिए मेरे घर पर आना होगा”….
मैंने कहा.., “ज़रूर..अवंती से मिलूंगी”।
हम निकले… मेरी शॉपिंग के बाद मैं ऑटो से घर के लिए चल पड़ी…
रिक्शे में बैठने के बाद मन में विचार चल रहे थे… ‘जिसे मैंने…. एक औरत…. ने साथी के तौर पर ठुकरा दिया.. उसी मर्द को एक औरतने इस तरह से बदल दिया … की हर कोई उसे चाहने लगे’। किसी व्यक्ति को उसकी नकारात्मकता के कारण अस्वीकार करना आसान है…, लेकिन उसकी नकारात्मकता को स्वीकार करना और उसमें कुछ सकारात्मक बदलाव करना बहुत कठिन है…’
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