SSAV द्वारा सभी ज्योतिषियों के लिए अद्भुतजानकारी।
ज्योतिष की दृष्टि “गोचर” की सीधा संबंध सभी नौ ग्रहों और बारह राशियों से होता है। “गोचर” का अर्थ होता है गमन यानी चलना I ‘गो’ अर्थात तारा जिसे आप नक्षत्र या ग्रह के रूप में समझ सकते हैं और ‘चर’ का मतलब होता है चलना I इस तरह गोचर का सम्पूर्ण अर्थ निकलता है “ग्रहों का चलना” I जब कोई ग्रह किसी एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो इस प्रकिया को गोचर कहा जाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में ग्रहों के गोचर का बहुत प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार सभी ग्रह एक निश्चित अवधि में अपनी राशि बदलते हैं। सूर्य से लेकर केतु तक सभी ग्रहों के राशि परिवर्तन का अवधि अलग-अलग होती है।
( गोचर ग्रहों का अध्ययन जातक की चन्द्र राशि से किया जाता है I)
नौ ग्रहों के गोचर की अवधि :-
सूर्य- एक महीने के अंतराल में अपनी राशि बदलता है।
चंद्रमा- को एक राशि से दूसरी राशि में जाने के लिए लगभग सवा दिन का समय लगता है।
मंगल- करीब 57 दिन की अवधि में अपनी राशि बदलता है।
बुध- लगभग एक महीने अंतराल में राशि बदलता है।
वृहस्पति – एक साल में अपनी राशि को बदलता है।
शुक्र – लगभग एक महीने में गोचर होता है।
शनि – ढ़ाई साल में एक राशि से दूसरी राशि में जाता है।
राहु और केतु – डेढ़ वर्ष में गोचर होता है।
[1] सूर्य का गोचर : एक महीना
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राशि स्वामी- सिंह राशि
कारक- आत्मा का कारक
गोचर का शुभ फल- लग्न राशि से तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल
गोचर का अशुभ फल- बाकी बचे भावों में अशुभ फल
(i) सूर्य की गोचर भाव के फल जनम राशी से इ प्रथम भाव में – इस भाव में होने पर रक्त में कमी की सम्भावना होती है . इसके अलावा गुस्सा आता है पेट में रोग और कब्ज़ की परेशानी आने लगती है . नेत्र रोग , हृदय रोग ,मानसिक अशांति ,थकान और सर्दी गर्मी से पित का प्रकोप होने लगता है .इसके आलवा फालतू का घूमना , बेकार का परिश्रम , कार्य में बाधा ,विलम्ब ,भोजन का समय में न मिलना , धन की हानि , सम्मान में कमी होने लगती है परिवार से दूरियां बनने लगती है .
(ii) द्वितीय भाव में – इस भाव में सूर्य के आने से धन की हानि ,उदासी ,सुख में कमी , असफ़लत अ, धोका .नेत्र विकार , मित्रो से विरोध , सिरदर्द , व्यापार में नुकसान होने लगता है .
(iii) तृतीय भाव में – इस भाव में सूर्य के फल अच्छे होते है .यहाँ जब सूर्य होता है तो सभी प्रकार के लाभ मिलते है . धन , पुत्र ,दोस्त और उच्चाधिकारियों से अधिक लाभ मिलता है . जमीन का भी फायदा होता है . आरोग्य और प्रसस्नता मिलती है . शत्रु हारते हैं . समाज में सम्मान प्राप्त होता है .
(iv) चतुर्थ भाव – इस भाव में सूर्य के होने से ज़मीन सम्बन्धी , माता से , यात्रा से और पत्नी से समस्या आती है . रोग , मानसिक अशांति और मानहानि के कष्ट आने लगते हैं .
(vi) पंचम भाव – इस भाव में भी सूर्य परेशान करता है .पुत्र को परेशानी , उच्चाधिकारियों से हानि और रोग व् शत्रु उभरने लगते है .
(vi) छठा भाव – इस भाव में सूर्य शुभ होता है . इस भाव में सूर्य के आने पर रोग ,शत्रु ,परेशानियां शोक आदि दूर भाग जाते हैं .
(vii) सप्तम भाव में – इस भाव में सूर्य यात्रा ,पेट रोग , दीनता , वैवाहिक जीवन के कष्ट देता है स्त्री – पुत्र बीमारी से परेशान हो जाते हैं .पेट व् सिरदर्द की समस्या आ जाती है . धन व् मान में कमी आ जाती है .
(viii) अष्टम भाव में – इस में सूर्य बवासीर , पत्नी से परेशानी , रोग भय , ज्वर , राज भय , अपच की समस्या पैदा करता है .
(ix) नवम भाव में – इसमें दीनता ,रोग ,धन हानि , आपति , बाधा , झूंठा आरोप , मित्रो व् बन्धुओं से विरोध का सामना करन पड़ता है .
(x) दशम भाव में – इस भाव में सफलता , विजय , सिद्धि , पदोन्नति , मान , गौरव , धन , आरोग्य , अच्छे मित्र की प्राप्ति होती है .
(xi) एकादश भाव में – इस भाव में विजय , स्थान लाभ , सत्कार , पूजा , वैभव ,रोगनाश ,पदोन्नति , वैभव पितृ लाभ . घर में मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं .
(xii) द्वादश भाव में – इस भाव में सूर्य शुभ होता है .सदाचारी बनता है , सफलता दिलाता है अच्छे कार्यो के लिए , लेकिन पेट , नेत्र रोग , और मित्र भी शत्रु बन जाते हैं .
[2] चंद्रमा का गोचर :- सवा दो दिन
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राशि स्वामी- कर्क राशि
कारक- मन का कारक
गोचर का शुभ फल- कुंडली में लग्न राशि से पहले, तीसरे, सातवें, दसवें, और ग्यारहवें भाव में शुभ फल
गोचर का अशुभ फल- चौथे, आठवें और बारहवें भाव में अशुभ परिणाम प्राप्त होता है।
(i) चन्द्र की गोचर प्रथम भाव में – जब चन्द्र प्रथम भाव में होता है तो जातक को सुख , समागम , आनंद व् निरोगता का लाभ होता है . उत्तम भोजन ,शयन सुख , शुभ वस्त्र की प्राप्ति होती है .
(ii) द्वितीय भाव – इस भाव में जातक के सम्मान और धन में बाधा आती है .मानसिक तनाव ,परिवार से अनबन , नेत्र विकार , भोजन में गड़बड़ी हो जाती है . विद्या की हानि , पाप कर्मी और हर काम में असफलता मिलने लगती है .
(iii) तृतीय भाव में – इस भाव में चन्द्र शुभ होता है .धन , परिवार ,वस्त्र , निरोग , विजय की प्राप्ति शत्रुजीत मन खुश रहता है , बंधु लाभ , भाग्य वृद्धि ,और हर तरह की सफलता मिलती है .
(iv) चतुर्थ भाव में – इस भाव में शंका , अविश्वास , चंचल मन , भोजन और नींद में बाधा आती है .स्त्री सुख में कमी , जनता से अपयश मिलता है , छाती में विकार , जल से भय होता है .
(v) पंचम भाव में – इस भाव में दीनता , रोग ,यात्रा में हानि , अशांत , जलोदर , कामुकता की अधिकता और मंत्रणा शक्ति में न्यूनता आ जाती है .
(vi) छठा भाव – इस भाव में धन व् सुख लाभ मिलता है . शत्रु पर जीत मिलती है .निरोय्गता ,यश आनंद , महिला से लाभ मिलता है .
(vii) सप्तम भाव में – इस भाव में वाहन की प्राप्ति होती है. सम्मान , सत्कार ,धन , अच्छा भोजन , आराम काम सुख , छोटी लाभ प्रद यात्रायें , व्यापर में लाभ और यश मिलता है .
(viii) अष्टम भाव में – इस भाव में जातक को भय , खांसी , अपच . छाती में रोग , स्वांस रोग , विवाद ,मानसिक कलह , धन नाश और आकस्मिक परेशानी आती है.
(ix) नवम भाव में – बंधन , मन की चंचलता , पेट रोग ,पुत्र से मतभेद , व्यापार हानि , भाग्य में अवरोध , राज्य से हानि होती है .
(x) दशम भाव में – इस में सफलता मिलती है . हर काम आसानी से होता है . धन , सम्मान , उच्चाधिकारियों से लाभ मिलता है . घर का सुख मिलता है .पद लाभ मिलता है . आज्ञा देने का सामर्थ्य आ जाता है .
(xi) एकादश भाव में – इस भाव में धन लाभ , धन संग्रह , मित्र समागम , प्रसन्नता , व्यापार लाभ , पुत्र से लाभ , स्त्री सुख , तरल पदार्थ और स्त्री से लाभ मिलता है .
(xii) द्वादस भाव में – इस भाव में धन हानि ,अपघात , शारीरिक हानियां होती है .
[3] मंगल का गोचर :- 57 दिन
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मंगल का राशि स्वामी – मेष और वृश्चिक
कारक- ऊर्जा, साहस और बल
गोचर का शुभ फल- कुंडली में लग्न राशि से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में
गोचर का अशुभ फल- बाकी बचे भावों में अशुभ फल
(i) मंगल ग्रह का गोचर प्रथम भाव में जब मंगल आता है .तो रोग्दायक हो कर बवासीर ,रक्त विकार ,ज्वर , घाव , अग्नि से डर , ज़हर और अस्त्र से हानि देता है.
(ii) द्वतीय भाव में –यहाँ पर मंगल से पित ,अग्नि ,चोर से खतरा ,राज्य से हानि , कठोर वाणी के कारण हानि , कलह और शत्रु से परेशानियाँ आती है .
(iii) तृतीय भाव – इस भाव में मंगल के आ जाने से चोरो और किशोरों के माध्यम से धन की प्राप्ति होती है शत्रु डर जाते हैं . तर्क शक्ति प्रबल होती है. धन , वस्त्र , धातु की प्राप्ति होती है . प्रमुख पद मिलता है .
(iv) चतुर्थ भाव में – यहं पर पेट के रोग ,ज्वर , रक्त विकार , शत्रु पनपते हैं .धन व् वस्तु की कमी होने लगती है .गलत संगती से हानि होने लगती है . भूमि विवाद , माँ को कष्ट , मन में भय , हिंसा के कारण हानि होने लगती है .
(v) पंचम भाव – यहाँ पर मंगल के कारण शत्रु भय , रोग , क्रोध , पुत्र शोक , शत्रु शोक , पाप कर्म होने लगते हैं . पल पल स्वास्थ्य गिरता रहता है .
(vi) छठा भाव – यहाँ पर मंगल शुभ होता है . शत्रु हार जाते हैं . डर भाग जाता हैं . शांति मिलती है. धन – धातु के लाभ से लोग जलते रह जाते हैं .
(vii) सप्तम भाव – इस भाव में स्त्री से कलह , रोग ,पेट के रोग , नेत्र विकार होने लगते हैं .
(vii) अष्टम भाव में – यहाँ पर धन व् सम्मान में कमी और रक्तश्राव की संभावना होती है .
(ix) नवम भाव – यहाँ पर धन व् धातु हानि , पीड़ा , दुर्बलता , धातु क्षय , धीमी क्रियाशीलता हो जाती हैं.
(x) दशम भाव – यहाँ पर मिलाजुला फल मिलता हैं,
(xi) एकादश भाव – यहाँ मंगल शुभ होकर धन प्राप्ति ,प्रमुख पद दिलाता हैं.
द्वादश भाव – इस भाव में धन हानि , स्त्री से कलह नेत्र वेदना होती है .
[4] बुध का गोचर :- एक महीना
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राशि स्वामी – मिथुन और कन्या राशि का स्वामी
कारक- बुद्धि, तर्कशास्त्र, संवाद का कारक
गोचर का शुभ फल- कुंडली में लग्न राशि से दूसरे, चौथे, छठे, आठवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में
गोचर का अशुभ फल- शेष भावों में परिणाम अच्छे नहीं
(i) बुध का गोचर प्रथम भाव में – इस भाव में चुगलखोरी अपशब्द , कठोर वाणी की आदत के कारण हानि होती है .कलह बेकार की यात्रायें . और अहितकारी वचन से हानियाँ होती हैं .
(ii) द्वीतीय भाव में – यहाँ पर बुध अपमान दिलाने के बावजूद धन भी दिलाता है .
(iii) तृतीय भाव – यहाँ पर शत्रु और राज्य भय दिलाता है . ये दुह्कर्म की ओर ले जाता है .यहाँ मित्र की प्राप्ति भी करवाता है .
(iv) चतुर्थ भाव – यहाँ पर बुध शुभ होकर धन दिलवाता है .अपने स्वजनों की वृद्धि होती है .
(v) पंचम भाव – इस भाव में मन बैचैन रहता है . पुत्र व् स्त्री से कलह होती है .
(vi) छठा भाव – यहाँ पर बुध अच्छा फल देता हैं. सौभाग्य का उदय होता है . शत्रु पराजित होते हैं . जातक उन्नतशील होने लगता है . हर काम में जीत होने लगते हैं (vii) सप्तम भाव – यहं पर स्त्री से कलह होने लगती हैं .
(viii) अष्टम भाव – यहाँ पर बुध पुत्र व् धन लाभ देता है .प्रसन्नता भी देता है .
(ix) नवम – यहाँ पर बुध हर काम में बाधा डालता हैं .
(x) दशम भाव – यहाँ पर बुध लाभ प्रद हैं. शत्रुनाशक ,धन दायक ,स्त्री व् शयन सुख देता है .
(xi) एकादश भाव में – यहाँ भी बुध लाभ देता हैं . धन , पुत्र , सुख , मित्र ,वाहन , मृदु वाणी प्रदान करता है .
(xii) द्वादश भाव- यहाँ पर रोग ,पराजय और अपमान देता है I
[5] गुरु का गोचर :- एक वर्ष
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राशि स्वामी- धनु और मीन राशि का स्वामी
कारक- ज्ञान, संतान एवं परिवार का कारक
गोचर का शुभ फल- दूसरे, पाँचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल
गोचर का अशुभ फल- बाकी भाव में अशुभ फल
(i) गुरु का गोचर प्रथम भाव में इस भाव में धन नाश ,पदावनति , वृद्धि का नाश , विवाद ,स्थान परिवर्तन दिलाता हैं .
(ii) द्वितीय भाव में – यहाँ पर धन व् विलासता भरा जीवन दिलाता है .
(iii) तृतीय भाव में – यहाँ पर काम में बाधा और स्थान परिवर्तन करता है .
(iv) चतुर्थ भाव में – यहाँ पर कलह , चिंता पीड़ा दिलाता है .
(v) पंचम भाव – यहाँ पर गुरु शुभ होता है .पुत्र , वहां ,पशु सुख , घर ,स्त्री , सुंदर वस्त्र आभूषण , की प्राप्ति करवाता हैं .
(vi) छठा भाव – यहाँ पर दुःख और पत्नी से अनबन होती है.
(vii) सप्तम भाव – सैय्या , रति सुख , धन , सुरुचि भोजन , उपहार , वहां .,वाणी , उत्तम वृद्धि करता हैं .
(viii)अष्टम भाव – यहाँ बंधन ,व्याधि , पीड़ा , ताप ,शोक , यात्रा कष्ट , मृत्युतुल्य परशानियाँ देता है .
(ix) नवम भाव में – कुशलता ,प्रमुख पद , पुत्र की सफलता , धन व् भूमि लाभ , स्त्री की प्राप्ति होती हंत .
(x) दशम भाव में- स्थान परिवर्तन में हानि , रोग ,धन हानि
(xi) एकादश भाव – यहाँ सुभ होता हैं . धन ,आरोग्य और अच्छा स्थान दिलवाता है .
(xii) द्वादश भाव में – यहाँ पर मार्ग भ्रम पैदा करता है .
[6] शुक्र का गोचर :- एक महीना
राशि स्वामी- वृषभ और तुला राशि का स्वामी
कारक- प्रेम, रोमांस, सुंदरता और कला
गोचर का शुभ फल- पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें, आठवें, नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव में शुभ फल
गोचर का अशुभ फल- बाकी भाव में अशुभ फल
(i) गोचर शुक्र का प्रथम भाव में प्रभाव – जब शुक्र यहाँ पर अथोता है तब सुख, आनंद, वस्त्र, फूलो से प्यार, विलासी जीवन ,सुंदर स्थानों का भ्रमण, सुगन्धित पदार्थ पसंद आते है .विवाहिक जीवन के लाभ प्राप्त होते हैं I
(ii) द्वीतीय भाव में – यहाँ पर शुक्र संतान , धन , धान्य , राज्य से लाभ , स्त्री के प्रति आकर्षण और परिवार के प्रति हितकारी काम करवाता हैं I
(iii) तृतीय भाव – इस जगह प्रभुता ,धन ,समागम ,सम्मान ,समृधि ,शास्त्र , वस्त्र का लाभ दिलवाता हैं .यहाँ पर नए स्थान की प्राप्ति और शत्रु का नास करवाता हैं I (iv) चतुर्थ भाव –इस भाव में मित्र लाभ और शक्ति की प्राप्ति करवाता हैं I
(v) पंचम भाव – इस भाव में गुरु से लाभ ,संतुष्ट जीवन , मित्र –पुत्र –धन की प्राप्ति करवाता है . इस भाव में शुक्र होने से भाई का लाभ भी मिलता है I
(vi) छठा भाव –इस भाव में शुक्र रोग , ज्वर ,और असम्मान दिलवाता है I
(vii) सप्तम भाव – इसमें सम्बन्धियों को नास्ता करवाता हैं I
(viii) अष्टम भाव – इस भाव में शुक्र भवन , परिवार सुख , स्त्री की प्राप्ति करवाता है I
(ix) नवम भाव- इसमें धर्म ,स्त्री ,धन की प्राप्ति होती हैं .आभूषण व् वस्त्र की प्राप्ति भी होती है I
(x) दशम भाव – इसमें अपमान और कलह मिलती है I
(xi) एकादश भाव – इसमें मित्र ,धन ,अन्न ,प्रशाधन सामग्री मिलती है I
(xii) द्वादश भाव – इसमें धन के मार्ग बनते हिया परन्तु वस्त्र लाभ स्थायी नहीं होता हैं I
[7] शनि का गोचर :- ढ़ाई वर्ष
राशि स्वामी- मकर और कुंभ राशि का स्वामी
कारक- कर्म का कारक
गोचर का शुभ फल- तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में शुभ फल
गोचर का अशुभ फल- बाकी भाव में अशुभ फल
(i) शनि की गोचर दशा प्रथम भाव – इस भाव में अग्नि और विष का डर होता है. बंधुओ से विवाद , वियोग, परदेश गमन, उदासी, शरीर को हानि, धन हानि, पुत्र को हानि, फालतू घोमना आदि परेशानी आती है I
(ii) द्वितीय भाव – इस भाव में धन का नाश और रूप का सुख नाश की ओर जाता हैं I
(iii) तृतीय भाव – इस भाव में शनि शुभ होता है .धन ,परवर ,नौकर, वहां ,पशु, भवन ,सुख ,ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, सभी शत्रु हार मान जाते हैं I
(iv) चतुर्थ भाव –इस भाव में मित्र ,धन ,पुत्र ,स्त्री से वियोग करवाता हैं .मन में गलत विचार बनने लगते हैं .जो हानि देते हैं I
(v) पंचम भाव – इस भाव में शनि कलह करवाता है जिसके कारण स्त्री और पुत्र से हानि होती हैं I
(vi) छठा भाव – ये शनि का लाभकारी स्थान हैं, शत्रु व् रोग पराजित होते हैं, सांसारिक सुख मिलता है I
(vii) सप्तम भाव – कई यात्रायें करनी होती हैं I स्त्री – पुत्र से विमुक्त होना पड़ता हैं I
(viii) अष्टम भाव – इसमें कलह व् दूरियां पनपती हैं I
(ix) नवम भाव – यहाँ पर शनि बैर, बंधन ,हानि और हृदय रोग देता हैं I
(x) दशम भाव – इस भाव में कार्य की प्राप्ति, रोज़गार, अर्थ हानि, विद्या व् यश में कमी आती हैं I
(xi) एकादश भाव – इसमें परस्त्री व् परधन की प्राप्ति होई हैं I
(xii) द्वादश भाव – इसमें शोक व् शारीरिक परेशानी आती हैं I
( शनि की २,१,१२ भावो के गोचर को साढ़ेसाती और
४ ,८ भावो के गोचर को ढ़ैया कहते हैं I)
[8] राहु का गोचर :- डेढ़ वर्ष
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राशि स्वामी- कोई नहीं ( छाया ग्रह)
कारक- चतुरता, तकनीकी और राजनीति
गोचर का शुभ फल- तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है।
गोचर का अशुभ फल- बाकी भाव में अशुभ फल।
राहु जन्मराशि में, द्वितीय में, चतुर्थ में, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम तथा द्वादश भाव में होने पर कार्य की हानि, धन का नाश, रोग एवं विपत्तियों का कारक होता है एवं इन भावों के अतिरिक्त अन्य भावों में होने पर शुभफल प्रदान करते है।
[9] केतु का गोचर :- डेढ़ वर्ष
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राशि स्वामी- कोई नहीं ( छाया ग्रह)
कारक- वैराग्य,आध्यात्म और मोक्ष
गोचर का शुभ फल- लग्न राशि से पहले, दूसरे,तीसरे, चौथे, पाँचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल
गोचर का अशुभ फल- बाकी भाव में अशुभ फल।
केतु जन्मराशि से तृतीय, छठे, दशम एवं एकादश में होने पर धन, मान-सन्मान अनेक सुखों की प्राप्ति तथा इन भावों के अतिरिक्त अन्य भावों में होने पर अशुभफल प्रदान करता है।
(हर तरह की कुण्डली बनवाने या सटीक कुण्डली विश्लेषण हेतू सम्पर्क करें)….