यह हमारी दादी के मुंह में एक ग्रामीण गाली जैसा शब्द है…” टवळी”…कई दिनों तक सुना और जिज्ञासा हुई.. टवळी क्या है? जानकारी खोजी। नाम थे।(मराठी भाषा बहुत है) गहरा।)पुराने समय में घर में रोशनी देने वाली वस्तुएँ संभवतः स्त्रीलिंग होती थीं,
उदाहरण के लिए पनाती, चिमनी, मशाल, समाई, चूड़, आरती और कुछ पुल्लिंग भी होती थीं जैसे तेम्बा, पलिता, भूटिया, कंदील, बोला, काकड़ा, जावला.. .पहले प्रयोग किये जाने वाले दीपक और तवड़ी भी एक प्रकार का दीपक है। यह ईश्वर के घर का दीपक है और पड़ोसी के घर या घर की मोमबत्ती है। लैंप को एक ही स्थान पर स्थापित किया जाता है, जबकि वांछित रोशनी के लिए लैंप को घुमाया जा सकता है।कभी-कभी उसे घर, दरवाजे, गौशाला, पड़वी में ले जाया जा सकता है, अर्थात जो महिला या लड़की गांव में घूमती है, उसे तावली कहा जाता है। जो पुरुष पुरुष-समूह में काम नहीं करता.. जो कुल का सूली या कभी-कभी कुल का दीपक भी हो, वह देवता कहलाता है।
टवळी की तरह तवड़ा भी होता है। गांव में रोशनी के लिए वेटोला लैंप का उपयोग किया जाता है। एक कहावत है जिसकी बाती बहुत बड़ी होती है, वह जल्दी नहीं जलती, उसे सुलगाने में बहुत समय लगता है…जब कोई व्यक्ति देर से घर आता है तो घर के लोग कहते हैं “*अला तवल्या वात वात” (अर्थात् तुम बहुत देर से आये।)
तो आशय यह है कि टवळी और टवळी अपशब्द नहीं हैं बल्कि एक प्रकार का दीपक है जो रोशनी के लिए इस्तेमाल किया जाता है और जगह-जगह घुमाया जाता है।