Sshree Astro Vastu

"मुझसे ठीक से बात करना"

सुबह के आठ-आठ साढ़े आठ का समय। सड़क पर ठीक-ठाक भीड़भाड़ थी, फुटपाथ पर लोग आ-जा रहे थे। कोई जॉगिंग से लौट रहा था, कोई काम पर जा रहा था, और कोई बेंच पर आराम से बैठा था। ऐसे ही, एक गोल सा चेहरा, थोड़ा चपटा नाक, मोटे गाल, बड़ी-बड़ी आंखें, गोल-मटोल, बालों में करीने से मांग निकाली गई, स्कूल की यूनिफॉर्म पहना हुआ, नन्हे से कंधे पर बैग टांगे एक तीन-चार साल का छोटा बच्चा अपनी मम्मी के साथ चल रहा था। मां-बेटे दुनिया को भूलकर बातचीत में खोए हुए थे।

“मम्मी।”

“हां।”

“स्कूल से घर आने के बाद आम दोगी ना।”

“हां।”

“तुमने वादा किया है।”

“हां।”

“इसलिए स्कूल जा रहा हूं।”

“हां।”

“देखो, वादा तोड़ना नहीं है।”

“हां।”

“दो आम चाहिए।”

“हां।”

“रस वाला भी खाना है।”

“हां।”

मम्मी से मिल रहे एक शब्द के जवाब सुनकर छोटा बच्चा एकदम रुक गया, कमर पर हाथ रखकर गुस्से से देखने लगा। मम्मी अपनी हंसी नहीं रोक पाई, तो छोटा और भी चिढ़ गया।

“घर चलो। मुझे स्कूल नहीं जाना।”

“अरे आम तो दूंगी ना।”

“तो फिर ऐसा क्यों किया?”

“मैंने क्या किया?”
क्या गलती की, ये खुद उसे भी नहीं समझ आया, इसलिए उसने वहीं फुटपाथ पर बैठने की ठान ली। मम्मी ने पूरी तरह हार मानकर अपने कान पकड़ते हुए कहा, “सॉरी!! मजाक किया था।”
पर छोटे ने मुंह फेर लिया। मम्मी समझा रही थी, मगर साहब सुनने को तैयार ही नहीं।

“बबडू, चल ना, देर हो रही है।”

“मैं नहीं।”

“चल ना रे, ऐसा क्यों कर रहा है, सॉरी ना।”

“मुझे नहीं जाना।”

“तुझे आम तो दूंगी ना।”

“मालूम है, नहीं दोगी।”

“स्कूल से आते ही दूंगी। वादा।” मम्मी ने गले पर हाथ रखकर कहा।

“सच्चssी में?” छोटा।

“हां।” मम्मी ने कहा तो छोटा दिल से मुस्कुरा कर चलने लगा।

“आम पक्का दोगी ना?” फिर से पूछ कर छोटे ने तसल्ली की।

“हां।”

“और गेम खेलने को मोबाइल भी चाहिए।”

“हां।” मम्मी ने कहा ही था कि छोटे ने आंखें तरेर लीं और फिर से रुक गया।

“अब क्या?” मम्मी ने पूछा।

“ऐसा क्यों बोलती हो?”

“अरे अच्छा ही तो बोल रही हूं।”

“देखो, मुझसे ऐसे बात नहीं करनी है।”

“मतलब?”

“मैं छोटा नहीं हूं। सब समझता हूं।”

“ओह्हो! मेरा बच्चा तो बहुत बड़ा हो गया।” मम्मी ने उसके गाल छुए, मगर छोटे ने झटक दिया।

“तुमने कहा कि मैं स्कूल जाऊं इसलिए आम दोगी, है ना।”

“अरे सच में दूंगी।”

“तो फिर ये बार-बार ‘हां-हां’ क्यों करती हो?”

“तो और क्या कहूं?”

“ये ट्रिक मुझे पता है। मैंने देखा है, जब तुम कुछ बोलती हो तो पापा भी ऐसे ही ‘हां-हां’ करते हैं और फिर कुछ नहीं करते। तुम भी वैसी ही हो।”

“तो फिर?”

“तुम दोनों में फिर लड़ाई होती है।”

छोटे का ये यॉर्कर सुनकर मम्मी क्लीन बोल्ड!!

“अरे होशियार!! बहुत ध्यान देता है तू।”

“बड़ा हो गया हूं।”

“अब तेरी शादी करवा दें।”

“देखो मम्मी!! इतना भी बड़ा नहीं हुआ हूं। ऐसा मत बोलो।”
नाराज़ छोटा बहुत ही प्यारा लग रहा था। मम्मी से रहा नहीं गया और उन्होंने उसे गोद में उठा लिया।

“जो हुक्म।”

“और आम?”

“हां।”

“मोबाइल भी।”

“हां।”

जैसे ही मम्मी ने फिर से “हां” कहा, छोटा फिर चिढ़ गया। उंगली हिलाते हुए बोला,
“कहा ना, मुझसे ठीक से बात करना।”

आज की कहानी, उस मासूमियत को समर्पित है जो ज़िंदगी की तेज़ रफ्तार में धीरे-धीरे खोती जा रही है।

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×