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भगवान राम से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

👉 भगवान राम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में हुआ।

👉 भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र तथा मीन लग्न में हुआ।

👉 लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न का जन्म आश्लेषा नक्षत्र तथा कर्क लग्न में हुआ।

👉 महाराज दशरथ ने 11 दिन बीतने के बाद बालकों के नामकरण संस्कार ब्रह्मर्षि वशिष्ठ से कराए।

👉 भगवान राम ने बचपन में ही हाथी के कन्धे और घोड़े की पीठ पर बैठने तथा रथ हॉंकने की कला में भी सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त किया था।

👉 रामचन्द्रजी बचपन से ही भोजन लक्ष्मणजी को दिए बिना नहीं खाते थे।

👉 जब भगवान राम का अवतरण हुआ, उस दिन वशिष्ठजी रामचन्द्रजी को देखकर इतने मन्त्रमुग्ध हो गए कि वह वेद मन्त्र तक भूल गए थे और एक टक राम के मुख को ही देखते रहे।

👉 राम नवमी के दिन भगवान राम चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए थे।

👉 माता कौशल्या ने चतुर्भुज रूपधारी भगवान की स्तुति की। उस समय भगवान ने माता कौशल्या को उनके पूर्व जन्म की अनेक सुन्दर कथाऍं सुनाई और माता को समझाया, ताकि उन्हें पुत्र का (वात्सल) प्रेम प्राप्त हो।

👉 माता के आग्रह पर भगवान चतुर्भुज रूप छोड़कर शिशु बन गए और रोना शुरू किया। तब महाराज दशरथ को पता चला कि महारानी कौशल्या को पुत्र उत्पन्न हुआ है.

 

भगवान राम की इस मन्त्र का उच्चारण करने के बाद आरती करना चाहिए –

मङ्गलार्थं महीपाल नीराजनमिदं हरे।

संगृहाण जगन्नाथ रामचन्द्र नमोऽस्तु ते।।

ॐ परिकरसहिताय श्रीसीतारामचन्द्राय कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि।

अर्थात् – हे पृथिवी पालक भगवान श्रीरामचन्द्र! आपके सर्वविध मङ्गल के लिए यह आरती है। हे जगन्नाथ! इसे आप स्वीकार करें। आपको प्रणाम है।

अयोध्या के राजा दशरथ अपनी कोई सन्तान न होने के कारण चिन्तित हैं। उन्हें अपने राज्य को उत्तराधिकारी चाहिये। समस्या निवारण के लिये राजा अपनी रानियों के साथ महर्षि वशिष्ठ के पास जाते हैं। वशिष्ठ उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्ठि यज्ञ करने का उपाय सुझाते हैं। रानी कौशल्या महर्षि वशिष्ठ से यज्ञ करने का निवेदन करती हैं किन्तु वशिष्ठ उन्हें बताते हैं कि इस यज्ञ को अथर्व वेद के ज्ञाता श्रृंग मुनि ही सम्पन्न करा सकते हैं। छोटी रानी कैकेयी श्रृंग मुनि को आमन्त्रित करने की बात कहती है, किन्तु महर्षि वशिष्ठ उन्हें टोकते हैं कि दशरथ को राजा बनकर नहीं, एक याची के रूप में स्वयं उनके पास जाना होगा। राजा दशरथ नंगे पांव श्रृंग मुनि के आश्रम जाते हैं और अपने ऑसुओं से उनकी चरण वन्दना करते हैं। श्रृंग ऋषि अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और उनका मनोरथ पूर्ण करने के लिये यज्ञ करते हैं। यज्ञकुण्ड से अग्निदेव प्रकट होते हैं और राजा दशरथ को खीर के एक पात्र के साथ इच्छापूर्ति का वरदान देते हैं। दशरथ वो खीर कौशल्या व कैकेयी को खाने के लिये दे देते हैं। दोनो रानियां स्नेहवश अपनी खीर का आधा आधा अंश छोटी रानी सुमित्रा को दे देती हैं।

बड़ी रानी कौशल्या और मंझली रानी कैकेयी को एक एक पुत्र और खीर के दो अंश मिलने के कारण छोटी रानी सुमित्रा को जुड़वां पुत्र होते हैं। इसके साथ ही देवी -देवताओ और पृथ्वीवासियों की प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त होती है। महर्षि वशिष्ठ द्वारा चारो बच्चों का नामकरण किया जाता है। वशिष्ठ कहते हैं कि धर्म और सत्य की रक्षा करने के लिए और अखिल विश्व को आनंद देने आये ज्येष्ठ पुत्र का दो अक्षर का नाम “राम“ होगा, रानी कैकेयी के पुत्र का नाम “भरत“ और रानी सुमित्रा के जुड़वाँ पुत्रों के नाम “लक्ष्मण और शत्रुघ्न“ होंगे। महर्षि वशिष्ठ चारों भ्राताओं में परस्पर अटूट प्रेम रहने की भविष्यवाणी भी करते हैं।

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