कुंभार (कुम्हार) से कहा, “एक मटका देना।”
वह तुरंत मेरी ओर देखकर बोला, “इस खास अवसर पर तो कम से कम इसे मटका मत कहो।”
असल में मुझे भी नहीं पता था कि इसे ठीक से क्या कहते हैं। जिज्ञासावश मैंने उससे पूछा, “तो इसे क्या कहते हैं?”
उसने बताया, “स्वर्गीय माता के रूप में लाल रंग के बर्तन को ‘केळी’ और स्वर्गीय पिता के रूप में काले रंग के बर्तन को ‘करा’ कहते हैं।”
मेरे अभिजीत भाषा शब्दकोश में दो नए शब्द जुड़ गए।
यह जानकर अच्छा लगा कि मराठी में मिट्टी के बर्तन को उसकी उपयोगिता और अवसर के अनुसार अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है।
वास्तव में, हमारी मराठी भाषा बहुत ही समृद्ध और विविधताओं से भरपूर है।
मुझे इतना पता था कि शुभ अवसरों पर हाथ में जो बर्तन पकड़ा जाता है उसे ‘करा’ कहते हैं,
लेकिन यह जानकारी नहीं थी कि अक्षय तृतीया पर उसे ‘केळी’ और ‘करा’ कहा जाता है।
क्या आपको पता था?
मुझे जो जानकारी पहले नहीं थी, वही मैं आप सभी के सामने रख रहा हूँ।