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दुष्ट की संगति से दुष्परिणाम

बहुत समय पहले की बात है। एक पाकुड़ के पेड़ पर एक हंस और एक कौआ रहते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। कौआ जलनशील स्वभाव का था। जबकि हंस दयालु स्वभाव का था। गर्मी के मौसम में एक थका हारा यात्री वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया। थोड़ी देर में उसे नींद आने लगी। उसने अपना धनुष बाण बगल में रख कर सो गया। वृक्ष की छाया थोड़ी देर में उसके मुख से ढल गई। सूर्य की तेज़ किरणे उसके मुख पर पड़ने लगी।

यात्री को विचलित देख कर हंस को दया आने लगी। वृक्ष पर बैठे हुए हंस ने विचार कर अपने पंखों को पसार फिर उसके मुख पर छाया कर दी। गहरी नींद के कारण उसने अपना मुख खोल दिया। कौआ को यात्री का सुख सहन नहीं हो रहा था। कौआ उसके मुँह में बीट करके उड़ गया। इससे पहले की हंस कुछ समझ पाता कौआ उड़ गया। अब पेड़ पर सिर्फ हंस बचा था। यात्री ने जैसे ही ऊपर देखा , उसे सिर्फ हंस दिखाई दिया।

हंस द्वारा किये गए उपकार से यात्री अनजान था। उसने सोचा, ‘‘जरुर ही इसी ने मेरे चेहरे को गन्दा किया है।” यात्री ने गुस्से में सोचा इस दुष्ट को दुष्टता की सजा अवश्य दूंगा। ऐसा सोच कर यात्री ने हंस पर बाण चला दिया। हंस तो जानता भी नहीं था कि बाण क्या होता है ? बाण हंस के हृदय में आकर लगा। हंस जमीन पर आकर गिरा और उसके प्राण निकल गए। दयालु और परोपकारी हंस को दूसरे के अपराध की सजा मिली। हंस के जीवन की भूल बस यही थी कौआ उसका मित्र था।

 

मित्रों” दुष्ट और कुटिल से मित्रता हमेशा घातक होती है..!!

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