Sshree Astro Vastu

Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

श्री सफला एकादशी व्रत

“श्री सफला एकादशी व्रत” पौष माह के कृष्ण पक्ष {गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष} की एकादशी के दिन किया जाता है जो इस बार आज 7 जनवरी 2024, रविवार के दिन है

 

 “सफला”  जैसे अपने नाम सफला है वैसे उसके गुण के अनुसार व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता प्रदान करने वाली एकादशी है “श्री सफला एकादशी”

 

 कल शनिवार मध्य रात्रि 12: 43 से लेकर आज 7 जनवरी 2024, रविवार मध्य रात्रि 12:47 तक  एकादशी है।

 

 पारण : कल 8 जनवरी 2024, सोमवार 7:15 से 9:57 के मध्य

 {मांसाहारी एवं शराबी व्यक्ति कृपया एकादशी व्रत से दूर रहे एकादशी व्रत और मांसाहार या शराब दोनों साथ नहीं हो सकता
 कृपया दोनों में से एक का चयन करें या एकादशी व्रत करें या फिर मांसाहार और शराब

 

 श्री पद्मपुराण के अनुसार

 

 एकादशी के दिन यदि एक ही आँवला मिल जाये तो उसके सामने गंगा, गया, काशी और पुष्कर आदि तीर्थ कोई विशेष महत्व नहीं रखते एकादशी के दिन आंवले के रस से स्नान जरूर करें {नहाने की पानी की बाल्टी में कुछ बुंदे आंवले के रस की मिला दे } एवं प्रभु श्री हरि विष्णु को आंवला अर्पित करें।   

{ आंवले के रस की बोतल पतंजलि आयुर्वेदिक स्टोर पर या अन्य आयुर्वेदिक स्टोर पर आपको मिल जाएगी }              

 

विशेष
मेरा निवेदन रहेगा कि सभी सनातन प्रेमी हमारी स्वदेशी धार्मिक चैनलों का उपयोग अवश्य करें और भावभक्ति में लीन हो जाए और बाकी लोगों को भी ज्यादा से ज्यादा जोड़ें

 

 

एकादशी मंत्र

 

| राम रामेति रामेति |

| रमे रामे मनोरमे |

| सहस्त्रनाम ततुल्यं |

| राम नाम वरानने |

 

 एकादशी के दिन इस मंत्र का जप करने से श्री विष्णु सहस्त्रनाम जप के समान पुण्य फल प्राप्त होता है

 

नामसंकीर्तन यस्य सर्वपापप्रणाशनम्।

 प्रणामो दुःखशमनस्तं नमामि हरिं परम्

 

मंत्र :- एकादशी के दिन इनमें से किसी भी मंत्र का 108 बार जाप अवश्‍य करना चाहिए।

 

1} ॐ विष्णवे नम:

 

2} ॐ नमो भगवते वासुदेवा

 

3} श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी। हे नाथ नारायण वासुदेवाय

 

4} ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्

 

5} ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि

 

 

 

 एकादशी माहात्म्य

 

 युधिष्ठिर ने पूछा : स्वामिन् ! पौष मास के कृष्णपक्ष (गुजरात-महाराष्ट्र के लिए मार्गशीर्ष) में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है❓ उसकी क्या विधि है❓ तथा उसमें किस देवता की पूजा की जाती है ❓ यह बताइये ।

 

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजेन्द्र ! बड़ी बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है । पौष मास के कृष्णपक्ष में ‘सफला’ नाम की एकादशी होती है । उस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए । जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है ।

 

 राजन् ! ‘सफला एकादशी’ को नाम मंत्रों का उच्चारण करके नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा तथा जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों और धूप दीप से श्रीहरि का पूजन करे । ‘सफला एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता ।

 

सफला एकादशी व्रत कथा

 

नृपश्रेष्ठ ! अब ‘सफला एकादशी’ की शुभकारिणी कथा सुनो । चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी । राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे । उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था । परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था । उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया । वह सदा दुराचारपरायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था । अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया । लुम्भक गहन वन में चला गया । वहीं रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया । किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया । फिर वह वन में लौट आया  वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा । उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष बहुत वर्षों पुराना था । उस वन में वह वृक्ष एक महान देवता माना जाता था । पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था ।

 

 एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया । पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा । उस समय न तो उसे नींद आयी और न आराम ही मिला । वह निष्प्राण सा हो रहा था । सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया । ‘सफला एकादशी’ के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई । फिर इधर उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया । वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था । राजन् ! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये । तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।’ यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली । इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया । उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: ‘राजकुमार ! तुम ‘सफला एकादशी’ के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे ।’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसने वह वरदान स्वीकार किया । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता ।

 

 राजन् ! इस प्रकार जो ‘सफला एकादशी’ का उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है । संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो ‘सफला एकादशी’ के व्रत में लगे रहते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है । महाराज! इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है ।

 

 विशेष: 

 

प्रभु श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या पर निर्मित एवं प्राण प्रतिष्ठित होने वाले प्रभु श्री राम मंदिर के प्रतिष्ठा के अब 15 दिन शेष बचे हैं जन जन के आराध्य एवं सृष्टि के प्राण प्रभु श्री रामकी जन्मभूमि के प्राण प्रतिष्ठा के दिन यानी की 22 जनवरी 2024 के दिन श्री पौष पुत्रदा अगली एकादशी व्रत का महा द्वादशी के दिन पारण होगा
प्रभु श्री हरि विष्णु के अंश प्रभु श्रीराम /प्रभु श्री कृष्ण सात्विकता के देव है इसीलिए सभी भक्तगण सात्विकता जरूर बनाए रखें
 
ओम नमो नारायणाय
Share This Article
error: Content is protected !!
×