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श्री रामचरितमानस चिंतन

अद्भुत प्रसंग

एक जिज्ञासा है कि जब श्री राम जी वनमें गये थे तो उनके पास चरण पादुका नहीं थी फिर उन्होंने भरत जी को जो खड़ाऊं दी वह उन्हें कहाँ से मिली?

 

समाधान

वह पादुका भरत जी अपने साथ लेकर गये थे-बाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड 112 सर्ग 21 श्लोक

 

अधिरोहार्य पादाभ्यां पादुके हेमभूषिते ।

   एते हि सर्वलोकस्य योगक्षेमं विधास्यतः ।।

भरत जी कहते है आर्य ये दो सुवर्ण भूषित पादुकाएँ आपके चरणो मे अर्पित है आप इन पर अपना चरण रखे। ये ही सम्पूर्ण जगत के योगक्षेम का निर्वाह करेगी ।

 

संकेत नामक यक्ष के कोई सन्तान नही थी । संतान की इच्छा से उसने ब्रह्मा जी की तपस्या की । ब्रह्मा जी ने एक कन्या प्रदान की जो एक हजार हाथीयो का बल रखती थी। सुकेत यक्ष ने बडी होने पर इस कन्या का विवाह जम्भ के पुत्र सुन्द के साथ किया । सुन्द अगस्त्य ऋषि के श्राप से मारा गया । उस समय आवेश मे भरकर ऋषि अगस्त्य को अपने पुत्र मारीच के साथ खाने दौडी तब ऋषि अगस्त ने श्राप दिया तू राक्षसी हो जा । इस प्रकार ब्रह्मा जी द्वारा प्रदत्त कन्या ताडका राक्षसी हो गई ।

 

इस प्रकार ब्रह्मा जी द्वारा प्रदत्त कन्या ताडका राक्षसी हो गई ।👉 दूसरा दृश्य -यही ताडका जब एक सुन्दर यक्षिणी थी विवाह पूर्व वह वन मे भ्रमण कर रही थी। उस काल मे महाराज दशरथ जो कि मृगया के लिए आए थे। मृग का पीछा करते हुए वह उसी वन मे भटकते हुए पंहुचे जंहा वह सुन्दरी थी । महाराज प्यास से व्याकुल होकर वन मे गिर गये । उसी सुन्दरी ताडका ने महाराज की प्यास बुझाई । चेतना आने पर महाराज ने कुछ इच्छानुसार मांगने को कहा । तब उस सुन्दरी ने अयोध्या का चौदह वर्ष के लिए सिंहासन मांगा था । यह राजा का दिया वचन था ।

 

जब ताडका राक्षसी हो गई। दंडकारण्य मे ऋषियो को प्रताड़ित करती थी । राम जी द्वारा मारी गई। वह खडाऊं उसी ताडका की हड्डियो की बनी थी। जो बोलती थी उनको वरदान वश चौदह वर्ष सिंहासन पर बैठना था।भरत जी राजकीय समस्या का समाधान उन्ही खडाऊ से पूछते थे । यह गुह द्वारा राम जी को प्रदान की गई थी। राम जी वन मे नंगे पैर ही थे ।

 

जब राम ने विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए ताड़का नामक राक्षसी को मारा तो वह मुक्त हो गई। मरते समय राम के कहने पर ताड़का ने राम से 14 वर्ष के लिए अयोध्या का राज्य मांगा राम को चुकि भविष्य में होने वाले सभी घटनाओं की जानकारी थी। अतः उन्होंने ताड़का को मार कर उसके खोपड़ी की हड्डी से खड़ाउँ (जो रत्नजड़ित थी)

बनवाई। राम के वनवास के बाद राम की यही खड़ाऊँ जो ताड़का की खोपड़ी की हड्डी से निर्मित थी और राम द्वारा ताड़का का वध होने से पावन भी थी भरत अयोध्या ले गए और इसी खड़ाऊँ ने 14 वर्ष तक अयोध्या के राज्य सिंहासन का उपभोग किया परोक्ष रूप से राम के वरदान के प्रभाव से ताड़का ने 14 वर्ष परोक्ष रूप से राम के वरदान के प्रभाव से ताड़का ने 14 वर्ष तक अयोध्या का राज किया।इसी की सम्मति से भरत 14 वर्षों तक राज्य का संचालन करते थे यह कथा पूज्य पितामह को किसी संत श्री मुख से प्रसाद के रूप में प्राप्त हुई थी यद्यपि इस कथा का प्रमाण मुझे अभी तक प्राप्त नहीं हो पाया है संभव है नाना पुराण निगम में कहिए कथा उल्लिखित हो और भी यहां प्रसंग हरि अनंत हरि कथा अनंता को दृष्टिगत रखते हुए आप की जानकारी मात्र के लिए इसे उल्लेखित किया गया है।

      ( श्रोत मानस भ्रम भंजनी)

 

एक बार महाराज रघु का जन्मदिन था। रघु सर्वभौम सम्राट होते हुए भी महल में नहीं रहते थे। अयोध्या के चौक में, चौराहे पर घासफूस की कुटिया डालकर अयोध्या का सम्राट निवास करता था। प्रति वर्ष उनका जन्मदिन मनाया जाता तो देवता लोग सौगात लेकर आते, स्वयं इंद्र आता था। ऋषि मुनि साधना छोड़कर आते, आचार्य चरण आते, छोटे बड़े सब आते महाराज को दीर्घायु होने की कामना देने। उस समय की वंचित आदिवासी प्रजा, उनको हुआ हमारे राजा का जन्मदिन है।हमारे अन्नदाता हैं, इन लोगों ने मिलकर 1 अच्छे काष्ट लकडी से पादुका बनायी थी।

 

उसको पत्तों में लपेटकर, जंगली फूलों से सजाकर ले आये। गरीब दीनहीन वंचित पादुका लेकर रघु की कुटिया के पास आये। राजाधिराज सम्राट का जन्मदिन है।इतना ही समादर जितना वशिष्ठ जी को मिले ।देवराज इंद्र को मिले इतना ही राजा रघु ने इन गरीबो का सम्मान किया। और सजल नयन इन गरीब जनता ने पादुका रखी। प्रभु हम सोने का मुकुट तो नहीं दे सकते हीरे जडित मोजडी कहाँ से लायें?

 

बहुत भाव से हमारे मन में जो आकार उठता था, आपके चरणों के नाप की पादुका बनायी है। ये नाचीज़ भेंट कुबूल करें। रघु ने आदिवासियों के हाथ से लेकर जडित मोजडी कहाँ से लायें? बहुत भाव से हमारे मन में जो आकार उठता था, आपके चरणों के नाप की पादुका बनायी है। ये नाचीज़ भेंट कुबूल करें। रघु ने आदिवासियों के हाथ से लेकर पादुका अपने सिर पर धारण किया। पूरा साम्राज्य स्तंभित रह गया और कथा कहती है साहब ये पादुका तबसे राज्य में केंद्र स्थान पर रही। तब सब ने पादुका पूजी। जो भी राजा बने वो रोज़ पादुका पूजन करें।

 

राम का वनवास हुआ और राजा दशरथ से जब आज्ञा माँग रहे हैं राम, महाराज बेहोशी की स्थिती में थे। हाथ कांप रहे थे और उसी समय सोचा – राघव तू तो कहता है मेरे पिता ने मुझे वन का राज्य दिया है, तू वन का राजा बन चुका है और हमारी परम्परा कहती है इस आदिवासी दत्त पादुका की पूजा हो। इसलिये राजा होने के नाते ये पादुका लेकर तुम वन जाओ। चित्रकूट में जब निर्णय हुआ कि भरत 14 साल अयोध्या का राज्य का संचालन जो करे उसको पादुका की पुजा करनी पडती है तब ये पादुका भरत को दी गयी थी।

 

  ( स्रोत रघुवंश महाकाव्य)

 

  || जय सियाराम जी ||

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