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"शिवशंकर"

चांदोबा चांदोबा भाग गया क्या?
यह गाना बचपन में भी मुझे ज्यादा पसंद नहीं था।
“भाग गया क्या?”
अरे, ये क्या है?
यह मराठी जैसा लगता ही नहीं था।
“चांदोबा चांदोबा आया क्या?”
यह गाना जरूर पसंद था।

मैं तीसरी-चौथी कक्षा में रहा होऊंगा।
हमारे नगर में शनिचौक पर ‘संपदा एजेंसिज’ नामक एक दुकान थी।
शायद यह नगर की अकेली दुकान थी जहाँ सभी पत्रिकाएँ मिलती थीं।
हर महीने की पहली तारीख के आसपास मैं पिताजी के साथ वहाँ जाता था।
मुझे देखते ही वहाँ के सुडके काका मुस्कुराकर कहते—
“चांदोबा चांदोबा आया क्या?”

मैं काउंटर पर खड़ा होकर फिर से वही सवाल पूछता—
“आया क्या?”
फिर सुडके काका हँसते हुए जवाब देते—
“आया, आया!”
उनके हाथ से चांदोबा पत्रिका लेकर,
मैं पिताजी के पीछे स्कूटर पर बैठ जाता।
घर पहुँचने तक मैं उत्सुकता से पन्ने पलटता रहता,
चित्रों को देखता, एक अलग ही दुनिया में खो जाता।

चांदोबा की दुनिया ही अलग थी।
जैसे-जैसे पन्ने पलटते, वैसे-वैसे उसमें डूबता जाता।
चांदोबा की चित्रकारी मेरे दिल के बहुत करीब थी।
उसमें जो गाँव होते—
अक्सर उनका नाम ‘रामपुर’ होता।
कौलारू घर, चौड़े खुले दरवाजे,
दो फुट ऊँची पत्थरों की बाउंड्री,
घर का पारंपरिक फर्नीचर,
नक्काशीदार टेबल और उस पर रखा तांबे का लोटा।
लंबे हत्थों वाली आराम कुर्सियाँ।
ऐसी ही कुर्सी मैंने हाल ही में एक डब्बू अन्ना मूवी में देखी है।
बुढ़ापे में मुझे भी ऐसी ही आराम कुर्सी पर झूलते हुए सोना है।
यही तय किया है मैंने।

घर के अंदर झूले, दीवारों पर कीलें,
आँगन में पेड़—
नारियल के सीधे ऊँचे या आम के फैले हुए।
गाँव के मंदिर, उनकी रंगीन दीवारें,
बंद बेलनाकार बैलगाड़ियाँ या बग्गियाँ।
धूमकेतु, विचित्रवर्मा जैसे कथानायक।
विक्रम-बेताल, रामायण, महाभारत, वीर हनुमान, गणपति जैसी सीरीज़।
देवताओं के लाजवाब पौराणिक चित्र।

हमें दलालों की कलाकृतियाँ देखने का सौभाग्य नहीं मिला,
लेकिन चांदोबा के देव ही हमारे असली देवता थे।
हैंडसम, रंगीन,
हमारे सच्चे दोस्त,
हमारी रोजमर्रा की दुनिया का हिस्सा।
मंदिरों के असली देवताओं से ज्यादा प्रिय थे ये चित्रों वाले देव।
यह सब दृश्य-शिल्प अद्भुत था।
मेरा पूरा बचपन चांदोबा के चित्रों में बसा है।

तो मैं क्या कह रहा था?
सर्वोदय कॉलोनी में हमारे घर के आँगन में एक चंपा का पेड़ था।
करीब चार फुट ऊँचाई पर उसकी एक मजबूत शाखा थी।
चांदोबा हाथ में लेकर मैं घर पहुँचता,
माँ से कटोरी में गुड़-चना लेता,
फिर उस शाखा से टेक लगाकर बैठ जाता।
हाथ में चांदोबा और मुँह में गुड़-चना।
आहा!
ध्यानमग्न अवस्था।
दो-तीन घंटे निश्चिंत होकर चांदोबा पढ़ता रहता।
अगर जीवन में सुकून चाहिए, तो आराम से बैठकर चांदोबा पढ़ो।
सारी चिंताएँ दूर हो जाती हैं।

जैसे-जैसे बड़ा हुआ,
वैसे-वैसे चांदोबा के चित्रों के नीचे लिखे नाम भी पढ़ने लगा।
ज्यादातर चित्र दो ही लोगों ने बनाए होते थे—
एक थे शंकर, दूसरे चित्रा

आज महाशिवरात्रि पर चित्रकार शंकर की बहुत याद आ रही है।
के. सी. शिवशंकरन— यह महान चित्रकार का नाम था।
यह व्यक्ति साठ सालों तक चंदामामा पत्रिका से जुड़ा रहा।
हजारों चित्र बनाए।
विक्रम-बेताल की पहली छवि इन्हीं की बनाई हुई थी।
नव्वे की उम्र तक यह व्यक्ति चित्र बनाता रहा।
पौराणिक चित्रकला में इनका कोई सानी नहीं था।
ऐसा लगता था, जैसे वे स्वयं उस युग में मौजूद रहे हों।

मुझे तो लगता था,
स्वर्ग में शिवशंकरन जी का खुद का स्टूडियो होगा।
सभी देवगण बारी-बारी से वहाँ जाते,
मेकअप करवाते,
और अपने चित्र खिंचवाते।
फिर उन चित्रों को पृथ्वी पर चांदोबा में प्रकाशित किया जाता।

इनकी चित्रकला कालजयी थी।
उनके बनाए हुए शंकर महादेव, गणपति, हनुमान, राम, लक्ष्मी, सरस्वती…
सचमुच उनके हाथ में ईश्वर थे।

शायद देवता भी उनकी बनाई तस्वीरें देखकर कहते—
ये हाथ मुझे दे दे, शंकर ठाकुर!”

तमिलनाडु के इरोड के पास एक छोटे से गाँव में उनका जन्म हुआ था।
1946 में उन्होंने शासकीय कला महाविद्यालय में प्रवेश लिया
और 1951 में चंदामामा परिवार से जुड़ गए।
तब से लेकर जीवन के अंतिम दिनों तक वहीं कार्यरत रहे।
लगभग साठ वर्षों तक

सच कहूँ?
साल दर साल बीतते जाएँ,
सब कुछ बदल जाए,
कोई दिक्कत नहीं।
बस एक चीज़ वैसी ही रहनी चाहिए थी—
चांदोबा

चांदोबा और उसके चित्र।
जब चांदोबा बंद हुआ,
तो ऐसा लगा जैसे दिल पर कोई गहरी चोट लगी हो।
पर अब कुछ नहीं किया जा सकता।
नई पीढ़ी के बच्चों को यह पसंद नहीं आया होगा।
मुझे पसंद था।
तुम्हें पसंद था।
तो बस, इतना ही काफ़ी है।

अब बस एक ही अफ़सोस है—
कभी चेन्नई जाकर वडपलानी जाना था।
चंदामामा बिल्डिंग में चुपचाप दाखिल होकर,
टेबल पर चित्र बनाते हुए
शिवशंकरन को जी भरकर देखना था।
हमारे लिए देवताओं के दर्शन करवाने वाले यही हमारे असली देवता थे।
पर वो नहीं हो सका।

खैर…
उनकी बनाई हुई चित्रकृतियाँ अमर हैं।
आज भी उन्हें देखकर आँखें तृप्त हो जाती हैं।
आज महाशिवरात्रि पर शिवशंकरन जी को नमन।

जय जय शिवशंकर!

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