प्रारंभ से ही जिजाऊ माँ, शिवाजी महाराज और उनके मंत्रीमंडल ने स्वराज्य में एक अनोखी व्यवस्था शुरू की — हर कर्मचारी को वेतन, चाहे वह बड़ा हो या छोटा। किसी को भी वतन या जागीर नहीं दी जाती थी। राज्य का संपूर्ण आर्थिक ढांचा वेतन पर आधारित था।
यह व्यवस्था उस काल के किसी भी अन्य साम्राज्य में नहीं थी। वहाँ बड़े पद सरंजाम, वतन या जागीरों पर आधारित होते थे, जिससे अनुशासन नहीं रह पाता था। शिवाजी महाराज ने एक सशक्त, वेतन आधारित शासन चलाया, जिससे सरंजामशाही के दोष दूर रहे और व्यवस्था सुदृढ़ बनी।
शिवाजी ने यह समझा कि पूर्ववर्ती साम्राज्य जैसे विजयनगर क्यों गिरे, और उन्होंने वैसी गलतियाँ अपने स्वराज्य में नहीं होने दीं।
इस दौरान एक निर्णायक खतरा सामने आया—अफजलखान। आदिलशाही दरबार ने उसे शिवाजी को धोखे से खत्म करने के आदेश दिए। अफजलखान की विशाल सेना शिवाजी पर चढ़ आई।
शिवाजी का सपना एक संप्रभु मराठी राष्ट्र बनाना था, जिसे आदिलशाह पूरी तरह कुचल देना चाहता था। अफजलखान की चाल थी कि वह मंदिरों को नष्ट कर राजा को उकसाए ताकि वह मैदान में आ जाए।
उस समय शिवाजी राजगढ़ में थे, और उनकी प्रिय रानी सईबाई अस्वस्थ थीं। संकट चारों ओर था। ऐसे समय में महाराज की मानसिक स्थिति कैसी रही होगी? “स्वराज्य का व्रत तो अग्निपरीक्षा ही है – कठिन नहीं, तो व्रत कैसा?”