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शिवचरित्रमाला (भाग 23) शक्ति, युक्ति एकवटकर कार्य सिद्ध करना

9 मई 1660 को शाहिस्तेखान पुणे आया। उसी समय (5 मार्च से 12 जुलाई 1660 तक) शिवाजी महाराज पन्हाळगढ़ के घेराव में फंसे हुए थे। यह घेरा बहुत ही जबरदस्त था। घेरा डालने वाले सिद्दी जौहर की योग्यता सेना प्रमुख और योद्धा दोनों रूपों में निर्विवाद रूप से बहुत ऊँची थी।

सिद्दी जौहर और शाहिस्तेखान दोनों बड़े सेनापति थे, लेकिन दोनों में बहुत फर्क था। शाहिस्तेखान के पास कोई अभ्यास नहीं था, जबकि जौहर हर बात की गहराई से सोच करता था, विशेष रूप से मराठों की छापामार युद्धनीति को वह भलीभांति जानता था।

इसीलिए पन्हाळगढ़ के घेराव में वह बहुत सावधानी से उतरा था। उसके दैनिक नेतृत्व में किसी भी प्रकार की लापरवाही, योजना में गड़बड़ी, शाही सेना में प्रचलित ऐशोआराम, युद्धक्षेत्र की अनभिज्ञता, अनुशासन की कमी—इनमें से कोई भी चीज़ वह सहन नहीं करता था। उसकी सेना में अनुशासन बहुत अच्छा था और हर कार्य पर उसकी कड़ी निगरानी थी।

उसके साथ अफजलखान का पुत्र फाजल महम्मद बराबरी के दर्जे में था, लेकिन संपूर्ण सैन्य संचालन सिद्दी जौहर स्वयं ही देख रहा था। उसके अधीन काशी तिमाजी देशपांडे नामक एक कारकून (प्रशासक) था।

इसके विपरीत, युद्धनेता के रूप में शाहिस्तेखान की छवि एकदम विपरीत थी।

एक ही समय में पुणे में शाहिस्तेखान और पन्हाळगढ़ के नीचे सिद्दी जौहर, दोनों विशाल सेनाओं के साथ स्वराज्य से टकरा रहे थे। यहाँ एक महत्वपूर्ण दृश्य दिखता है—शाहिस्तेखान के सामने राजगढ़ से नेतृत्व कर रही थीं जिजाबाई

शाहिस्तेखान के स्वराज्य में आने से लेकर शिवाजी महाराज के सिद्दी जौहर के घेराव से निकल जाने तक, लगभग छह महीने जिजाबाई ने राजगढ़ से शाहिस्तेखान के मोर्चे को बहुत ही समर्थ नेतृत्व प्रदान किया।

शाहिस्तेखान ने सुपे, शिरवळ, पुरंदर, सासवड और गराडखिंड जैसे स्थानों पर (मार्च से मई 1660) स्वराज्य की उत्तर दिशा में विजय प्राप्त करने हेतु 30,000 सेना के साथ बहुत उत्पात मचाया, परंतु उसे कोई सफलता नहीं मिली। इसका श्रेय पूर्ण रूप से नेतृत्व की दृष्टि से जिजाऊ साहेब को जाता है।

क्या यह श्रेय नेताजी पालकर को नहीं है, जो उसी समय मोगलों के खिलाफ छापामारी युद्ध कर रहे थे? है, बिल्कुल है। नेताजी ने भी बहुत अच्छी भूमिका निभाई।

उन्होंने लगातार छापामारी युद्ध किए, और खेड-मंञर के पास घायल भी हुए, फिर भी संघर्ष करते रहे। परंतु स्थायी स्थानों जैसे सुपे, शिरवळ, पुरंदर, सासवड आदि पर मराठों ने थोड़े से बल के साथ दुश्मन की विशाल सेना को जिस प्रकार रोका, उस कार्य में नेतृत्व जिजाऊ साहेब का ही था।

इसी काल में मावलों के देशमुखों को एक पत्र भेजा गया था। यद्यपि वह पत्र शिवाजी महाराज के नाम से था, फिर भी यह स्पष्ट है कि वह राजगढ़ से, अर्थात् जिजाबाई के आदेश से ही गया था।

उस पत्र में कहा गया था:
आपके प्रांत में मोगलों की घुसपैठ शुरू हो गई है, इसलिए आप दृढ़तापूर्वक प्रजा की रक्षा करें।”

मोगलों की शक्ति बहुत अधिक थी, इसलिए लूटपाट, आगजनी, बेगारी, अत्याचार, मंदिरों का अपमान आदि घटनाएं चलती रहीं। इन मोगली आक्रमणों का उल्लेख शिवाजी महाराज ने बाद में सुरत के सूबेदार को लिखे गए पत्र में भी किया है।

इससे पता चलता है कि स्वराज्य उस समय किस अत्यंत कठिन परिस्थिति से गुजर रहा था।

इस समय में कुछ मावले सरदारों ने स्वराज्य से विश्वासघात कर शत्रु से हाथ मिलाया—ऐसे दो उदाहरण मिलते हैं:

  1. बाबाजी राम होनप देशपांडे
  2. संभाजी कावजी

गन्ने की चरखी में फंसी गन्ने की तरह मराठों के घर-गृहस्थी पूरी तरह निचोड़े जा रहे थे। ऐसे में एक-दो लोगों का भटक जाना दुःखद तो है, पर स्वाभाविक भी।

बाकी समस्त स्वराज्य, सह्याद्रि की चट्टानों की तरह हर घाव को सहन करता हुआ अभेद्य रहा।

अंततः यही हुआ कि शाहिस्तेखान भी हारा और सिद्दी जौहर भी

क्योंकि महाराज और जिजाऊ साहेब की आज्ञा की प्रतीक्षा में तत्पर खड़ी थी स्वराज्य की वह विशाल सेना—शिवा काशीद, बाजी घोलप, बाजी प्रभु देशपांडे, वाघोजी तुपे, और फिरंगोजी नरसाळा जैसे योद्धा।

जौहर और शाहिस्ता के दोहरे आक्रमण में मराठा सेना और आम जनों की जिद, महत्वाकांक्षा, निष्ठा, शिवप्रेम और छिपकली जैसे चिपक जाने वाला जज़्बा साफ़ दिखा।

लगातार 300 वर्षों की गुलामी के बाद यह राष्ट्रीय चरित्र, गंगासागर की तरह फूट पड़ा।

यह शिवगंगा, एक बुद्धिमान, प्रतिभावान, कल्पनाशील परंतु अहंकाररहित और भोगविहीन युवा शिवाजी महाराज के मस्तिष्क से प्रवाहित हो रही थी।

इसीलिए मराठों के बच्चे भी पालने में रहते हुए पराक्रम की मुठ्ठियाँ बाँधना सीखते थे।

जैसे द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश जनता और प्रधानमंत्री चर्चिल ने जर्मनी व जापान जैसे शत्रुओं को हराया—उसी प्रकार प्रचंड आक्रमणों के बीच हिंदवी स्वराज्य को चंद्रमा की कलाओं की तरह बढ़ाते रहने वाले हमारे मावलों को हम कभी नहीं भूल सकते।

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