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शीतला सप्तमी: एक पावन पर्व का महत्व एवं विधि

भूमिका

शीतला सप्तमी हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक प्रमुख व्रत और पर्व है। यह व्रत माता शीतला देवी को समर्पित होता है, जिन्हें रोगों से बचाने वाली और शुद्धता प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। विशेष रूप से यह पर्व चेचक और त्वचा संबंधी रोगों से रक्षा के लिए मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखने और माता शीतला की पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

शीतला सप्तमी का महत्व

शीतला सप्तमी का धार्मिक, सामाजिक और स्वास्थ्य से जुड़ा गहरा महत्व है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा अपने परिवार की सुख-शांति और स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है। शीतला माता की कृपा से संक्रामक बीमारियों से रक्षा होती है और जीवन में शुद्धता बनी रहती है।

शीतला सप्तमी कब मनाई जाती है?

शीतला सप्तमी का पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर इसे अष्टमी को भी मनाया जाता है, जिसे शीतला अष्टमी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और शीतला माता की पूजा करती हैं।

शीतला माता का स्वरूप

शीतला माता को एक दिव्य शक्ति के रूप में देखा जाता है, जो रोगों से मुक्ति दिलाने वाली हैं। माता का वाहन गधा है और वे अपने हाथों में झाड़ू, कलश और नीम की पत्तियाँ धारण करती हैं। इन्हें ठंडा एवं शीतलता प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।

शीतला सप्तमी व्रत विधि

इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और ठंडे भोजन का सेवन किया जाता है। व्रत करने की विधि इस प्रकार है:

  1. पूर्व संध्या की तैयारी
    • शीतला सप्तमी के एक दिन पहले भोजन बनाकर रख लिया जाता है।
    • इस भोजन में बासी रोटी, पूड़ी, मीठे चावल, बाजरे की रोटी, दही और गुड़ शामिल होते हैं।
  2. स्नान एवं शुद्धिकरण
    • ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए।
    • स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद पूजा की तैयारी करनी चाहिए।
  3. शीतला माता की पूजा
    • माता की मूर्ति या चित्र को एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
    • जल, रोली, अक्षत, हल्दी, फूल और धूप-दीप से पूजा करें।
    • नीम की पत्तियों से माता को अभिषेक करें।
    • बासी भोजन का भोग लगाकर माता को अर्पित करें।
  4. कथा का पाठ
    • शीतला माता की कथा का पाठ करना चाहिए।
    • कथा सुनने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  5. दान-पुण्य और आशीर्वाद
    • इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान देने का विशेष महत्व है।
    • दान में अन्न, वस्त्र और दक्षिणा देना शुभ माना जाता है।

शीतला माता की कथा

पुराणों के अनुसार, एक बार एक नगर में एक महिला थी जो शीतला माता की पूजा नहीं करती थी। उसने एक बार माता के दिए हुए नियमों का उल्लंघन किया और ताजा भोजन बनाया। परिणामस्वरूप, उसके परिवार के सभी सदस्य चेचक से ग्रसित हो गए। जब उसने अपनी गलती का अहसास किया और माता की सच्चे मन से आराधना की, तब माता ने उसे क्षमा कर दिया और उसके परिवार को स्वस्थ कर दिया।

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि माता शीतला की पूजा करने से संक्रामक रोगों से बचाव होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

विभिन्न राज्यों में शीतला सप्तमी का उत्सव

भारत के विभिन्न भागों में यह पर्व अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।

  • उत्तर भारत: उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और हरियाणा में शीतला माता की विशेष पूजा होती है। महिलाएं इस दिन जल चढ़ाती हैं और बासी भोजन ग्रहण करती हैं।
  • राजस्थान: यहाँ शीतला माता का विशेष मंदिर है, जहां भक्तजन बड़ी संख्या में दर्शन करने आते हैं।
  • गुजरात एवं महाराष्ट्र: इन राज्यों में भी इस व्रत का विशेष महत्व है।
  • बंगाल: यहाँ इसे बसंती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है।

शीतला सप्तमी पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण

शीतला सप्तमी का एक वैज्ञानिक आधार भी है। गर्मी के मौसम में बासी भोजन खाने से शरीर ठंडा रहता है और पेट से जुड़ी बीमारियों से बचाव होता है। नीम का प्रयोग करने से त्वचा और संक्रामक रोगों से रक्षा होती है। यह त्योहार स्वच्छता और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।

निष्कर्ष

शीतला सप्तमी का पर्व धार्मिक आस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य और स्वच्छता का भी प्रतीक है। यह व्रत हमें सिखाता है कि हम अपने शरीर और घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। माता शीतला की पूजा करने से हमें रोगों से बचाव मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। अतः, श्रद्धा और विश्वास के साथ इस पर्व को मनाना चाहिए और अपने परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा करनी चाहिए।

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