शरद पूर्णिमा की रात जब चांद की चांदनी अमृत बरसाती है ये चांदनी किसानों के लिए साल भर की फसलों के चयन मै मदद भी करती है ये कुदरत का कमाल ही है की किसान साथी शरद पूर्णिमा की रात रात मै चांद निकलने के बाद जो भी फसल बोना चाहते है उनके बीज को वजन करके चांद की चांदनी मै रख दे रात भर चांद की चांदनी बीजों पर पड़े ऐसी जगह रखे सुबह 4 बजे आवश्यक रूप से उसे वहा से उठाकर पुनः वजन करे सभी बीजों का वजन निश्चित रूप से बड़ जायेगा ,सुबह 4 बजे बीजो को उठाकर वजन करना इसलिए आवश्यक है सुबह 4 बजे बाद ओस की बूदो की नमी की वजह से वजन बड़ने के कारण सही परिणाम नही आयेगा वजन केवल चांदनी के असर से ही बड़ा हुआ वजन से ही सही परिणाम आप निकाल पाएंगे
मान लीजिए आपने 100 ग्राम गेहूं,100 ग्राम चना,100 ग्राम मक्का,100 ग्राम सोयाबीन,100 ग्राम सरसो या को भी आप उगाना चाहते हो साल भर सभी के बिज एक ही मात्रा मे वजन करके चांद की रोशनी मे रख दे सुबह 4 बजे पुनः वजन करे सभी बीजों का वजन बड़ चुका होगा किसी का 110 ग्राम किसी का 105 ग्राम किसी का 112 ग्राम किसी का 115 ग्राम जिन बीजों का वजन सबसे अधिक बड़ेगा वो फसल इस साल सबसे अच्छी होगी जिन बीजों का वजन सबसे कम बड़ेगा इस वर्ष मौसम उनके अनुकूल नही रहेगा सबसे ज्यादा वजन बड़ने वाली फसलों का चयन करके किसान साथी अच्छा मुनाफा कमा सकते है
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा ही वो दिन है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। आमतौर पर हम सुनते हैं कि चंद्रमा में सोलह कलाएं होती हैं। भगवान श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं का स्वामी कहा गया है तो राम को बारह कलाओं का। दोनों ही पूर्णावतार हैं। इसकी अलग-अलग व्याख्या मिलती हैं। कुछ की राय में भगवान राम सूर्यवंशी थे तो उनमें बारह कलाएं थीं। श्रीकृष्ण चंद्रवंशी थे तो उनमें सोलह कलाएं थीं। वर्षभर में शरद पूर्णिमा के ही दिन चांद सोलह कलाओं का होता है। इस रात चांद की छटा अलग ही होती है जो पूरे वर्ष कभी दिखाई नहीं देती। चांद को लेकर जितनी भी उपमाएं दी जाती हैं, वह सभी शरद पूर्णिमा पर केंद्रित हैं।
अमृत,
मनदा ( विचार),
पुष्प ( सौंदर्य),
पुष्टि ( स्वस्थता), तुष्टि( इच्छापूर्ति),
ध्रुति ( विद्या),
शाशनी ( तेज),
चंद्रिका ( शांति),
कांति (कीर्ति),
ज्योत्सना ( प्रकाश),
श्री (धन),
प्रीति ( प्रेम),
अंगदा (स्थायित्व),
पूर्ण ( पूर्णता अर्थात कर्मशीलता) और पूर्णामृत (सुख)।
चंद्रमा के प्रकाश की 16 अवस्थाएं हैं। मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है। मन ही चंद्रमा है। चंद्रमा जैसे घटता-बढ़ता रहता है। मन की स्थिति भी यही होती है।
सामान्य रूप से मनुष्य में सिर्फ पांच से आठ कलाएं होती हैं। पाक-कला,
कला,
साहित्य,
संगीत, ,
शिल्प,
सौंदर्य,
शस्त्र और
शास्त्र होते हैं।
इनके विभिन्न रूप होते हैं। पांच कलाओं से कम पर पशु योनि बनती हैं। ईश्वरीय अवतार बारह से सोलह कलाओं के स्वामी होते हैं।
हमारी सृष्टि और समष्टि सूर्य और चंद्रमा पर केंद्रित होती है। सूर्य हमारी ऊर्जा की शक्ति है तो चंद्रमा हमारे सौंदर्यबोध, हमारे विचार और मन का स्वामी है। चंद्रमा चूंकि पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है। इसलिए, उसका प्रभाव हमारे जीवन और मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है। सोलह कलाओं का स्वामी होने से शरद पूर्णिमा परम सौभाग्यशाली मानी जाती है।