राहुकाल_का_समय_और_बचाव_के_उपाय :
राहुकाल के बारे में सुना तो होगा, परन्तु आज जानें, आखिर क्या होता है राहुकाल और इसमें शुभ कार्य करने से क्यों मिलती है असफलता ! कुछ लोगों को यह कहते सुना जाता है कि हम कोई भी कार्य पूरी मेहनत और ऊर्जा के साथ करते हैं, फिर भी सफल नही हो पाते, या तो उस कार्य के विपरित परिणाम मिलते है या कोई न कोई बाधा आ जाती है ! ज्योतिष के अनुसार यह सब इसलिए होता है कि उक्त कार्य को शुभ मुहूर्त में नहीं किया गया या फिर वह काम राहुकाल में किया गया हो ! ऐसी मान्यता है कि राहुकाल में किए गए कार्यों में हमेशा असफलता ही प्राप्त होती है और किए गए कार्यों के विपरित परिणाम मिलते है !
क्यों_वर्जित_हैं_राहुकाल_में_शुभकार्य_करना :
ज्योतिष के जानकार कहते है कि राहुकाल का समय क्रूर ग्रह राहु के नाम से है जो एक पाप ग्रह माना गया है ! इसलिए राहुकाल में जो भी कार्य किये जाते है वह कार्य पाप ग्रस्त होकर असफल हो जाते है ! इसलिए भूलकर भी राहुकाल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए !
आइए जानते हैं कि राहु काल में कौन-कौन से कार्य नहीं किए जाने चाहिए —
9.* इस काल में किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए यात्रा भी नहीं करते हैं !
ज्योतिषिय गणना के अनुसार यह काल कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी शाम के समय पड़ता है ! लेकिन हमेशा सूर्योदय के बाद ही पड़ता है ! राहुकाल की अवधि दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय) के आठवें भाग के बराबर होती है ! अर्थात राहुकाल का समय कुल डेढ़ घंटा का होता है !
राहू_काल_का_समय :
सामान्यतया जब सूर्योदय छ बजे प्रातः माना जाय और सूर्यास्त छः बजे सायं, तब राहुकाल निम्न प्रकार होगा !
1- रविवार को शाम 4:30 बजे से 6 बजे तक !
2- सोमवार को सुबह 7:30 बजे से 9 बजे तक !
3- मंगलवार के दिन 3 बजे से शायं 4:30 बजे तक !
4- बुधवार के दिन 12 बजे से 1:30 बजे तक !
5- गुरुवार के दिन 1:30 बजे से 3 बजे तक का समय यानि कि दिन का छठवाँ भाग राहुकाल होता है !
6- शुक्रवार को दिन का चौथा भाग यानि सुबह 10:30 बजे से 12 बजे तक का समय राहुकाल होता है !
7- शनिवार को सुबह 9 बजे से 10:30 बजे तक का समय राहुकाल होता है !
ध्यान रहे सूर्योदय व सूर्यास्त का समय बदलने पर राहुकाल भी उसी अनुपात में दिन के आठवे भाग के अनुसार आगे पीछे घटता बढ़ता रहता है !
राहुकाल_के_दुष्प्रभाव_से_बचाव_के_उपाय :
. यदि किसी व्यक्ति को राहुकाल से कोई परेशानी हो रही हो तब वह इन उपायों को प्रयोग करें, लाभ मिलेगा !
1- राहु काल में एक चौमुखा, चार बत्ती वाली दीपक जलाकर राहु को अर्पित करें, तथा कोई भी मीठा प्रसाद बनाकर चढ़ाएं, साथ सी राहु के मंत्र “ॐ रां राहवे नमः !” का प्रतिदिन 108 बार जप करें !
2- दुर्गा चालीसा का पाठ करें, पक्षियों को प्रतिदिन बाजरा खिलाएं !
3 – सप्तधान्य का दान राहुकाल में गरीबों के मध्य करें !
4 – एक नारियल व ग्यारह साबूत बादाम एक नवीन काले वस्त्र में बांधकर बहते जल में प्रवाहित कर दें !
5 – यदि सम्भव हो तो किसी प्राचीन शिवलिंग पर जलाभिषेक करें !
6 – अपने घर के नैऋत्य कोण में पीले रंग के फूल अवश्य लगाएं !
7 – तामसिक आहार व मदिरापान बिल्कुल भी नहीं करें और राहुकाल में कार्य प्रारम्भ न करें !
कैसे बनते हैं योग / सफलता
ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से जीवन की छोटी से लेकर बड़ी सच्चाई तक जानी जा सकती है। यहां तक की अवैध संबंध जैसे विषय पर भी स्पष्टता मिलती है। चन्द्रमा मन का कारक होता है और कामवासना मन से जागती है। लग्न व्यक्ति स्वयं होता है पंचम भाव प्रेमिका और सप्तम भाव पत्नी का होता है एवं शुक्र भोग विलास का कारक है, शनि, राहू, मंगल और पंचम भाव, पंचमेश, द्वादश और द्वादशेष का आपस में संबंध होना जातक के विवाह पूर्व एवं पश्चात् अवैध संबंध स्थापित करवाते हैं। जन्म कुंडली में सप्तम भाव पर शनि की चन्द्रमा के साथ युति जहां जातक को मानसिक रूप से पीड़ित करती है, वहीं प्रेम संबंध भी करवाती है। कुछ ऐसे ज्योतिषीय योग होते हैं, जिनके जन्म कुंडली में होने से, जातक के अवैध संबंधों होने का संकेत मिलता है ।
जन्म कुंडली में शनि और शुक्र की युति, वैवाहिक जीवन में किसी अन्य का आना बताती है। पंचम भाव में शनि, शुक्र और मंगल की युति अवैध संबंध का निर्माण करती है।
मेष या वृश्चिक राशि में मंगल के साथ शुक्र के होने से पराई स्त्री से घनिष्ठता बनती है। जन्म कुंडली में चन्द्रमा से द्वितीय स्थान में शुक्र हो तो ‘सुनपफा योग’ बनता है ऐसा जातक भौतिक सुखों की प्राप्ति करता है। उसका सौन्दर्य आकर्षक होता है अन्य स्त्रियों से शारीरिक संबंध की प्रबल संभावना होती है।
द्वितीय, छठे और सप्तम भाव के किसी भी स्वामी के साथ शुक्र की युति लग्न में होने से जातक का चरित्र संदेहस्पद होता है। सूर्य और शुक्र की युति मीन लग्न में होने से जातक को अत्यंत कामुक बनाती है उसका अवैध संबंध बनता है तथा ऐसे जातक की कामवासना की तृप्ति शीघ्र नहीं होती।
बुध और शुक्र की युति यदि सप्तम भाव में हो तो जातक अवैध संबंध के लिए नए-नए तरीके अपनाता हैं। शनि, मंगल और शुक्र का काम वासना से घनिष्ठ संबंध है। यदि जन्म कुंडली में शनि और मंगल की युति सप्तम भाव पर हो तो जातक समलिंगी होता है। यही युति यदि अष्टम, नवम, द्वादश भाव पर हो तो जातक का अपने से बड़ों से अवैध संबंध होता हैं।
मंगल और राहू की युति अथवा दृष्टि शुक्र पर हो तो जातक कामुक होता है एवं अवैध संबंध बनाने के लिए उसका मन भटकता है। चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव में गुरु पर मंगल शुक्र का प्रभाव और चन्द्रमा पर राहू का प्रभाव हो तो व्यक्ति अवैध संबंध बनाने के लिए सभी सीमाओं का उल्लघंन कर देता है।
लग्न में शनि का होना जातक की कामवासना बढ़ा देता है, पंचम भाव में शनि होने से अपने से बड़ी स्त्रियों के प्रति अवैध संबंध बनाने के लिए जातक को आकर्षित करता है। शनि का सप्तम भाव में चन्द्रमा के साथ होना और मंगल की दृष्टि पडऩे से जातक वेश्यागामी होता है। इसी योग में अगर शुक्र का संबंध दृष्टि अथवा युति से बन जाए तो अवैध संबंध निश्चित हो जाता है।
सप्तम भाव में राहू और शुक्र हो अथवा राहू और चन्द्रमा की युति हो तथा गुरु द्वादश भाव में स्थित हो तो विवाह पश्चात कार्यालयों में ही अवैध-संबंध बनते हैं। लग्नेश एकादश में स्थित हो और उस पर पाप प्रभाव हो तो जातक अप्राकृतिक यौनक्रियाओं की तृप्ति के लिए अवैध संबंध बनाता है।
राहु का अष्टम भाव में होना जातक से अवैध संबंध कराता है। तुला राशि में चार ग्रह एक साथ होने से जातक के परिवार में क्लेश उत्पन्न होते हैं जिसके कारण जातक बाहर अवैध संबंध बनाता है।
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