भारत की संत परंपरा अत्यंत समृद्ध और गौरवशाली रही है। विभिन्न संतों ने समाज में भक्ति, सद्भावना और आध्यात्मिक चेतना का संचार किया। ऐसे ही महान संतों में से एक थे संत नरहरि सोनार, जिनकी जयंती प्रतिवर्ष श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाई जाती है।
संत नरहरि सोनार का जीवन परिचय
संत नरहरि सोनार का जन्म महाराष्ट्र के पंढरपुर में हुआ था। वे एक सुवर्णकार (सोने के आभूषण बनाने वाले) परिवार से संबंध रखते थे। उनका प्रारंभिक जीवन पारंपरिक व्यवसाय में व्यतीत हुआ, लेकिन वे अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।
नरहरि सोनार भगवान विठोबा (विठ्ठल) के अनन्य भक्त थे। हालांकि, प्रारंभ में वे केवल शिव भक्ति में लीन थे और भगवान विठ्ठल को मान्यता नहीं देते थे। किंतु उनके जीवन में ऐसा आध्यात्मिक परिवर्तन आया, जिसने उन्हें एक महान संत बना दिया।
भगवान विठोबा के प्रति समर्पण
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, नरहरि सोनार की शिव भक्ति इतनी प्रबल थी कि वे किसी अन्य देवता की पूजा करना उचित नहीं समझते थे। एक बार, एक भक्त ने उनसे भगवान विठोबा की मूर्ति के लिए आभूषण बनाने का अनुरोध किया। वे इसके लिए तैयार तो हो गए, लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि वे मूर्ति को स्पर्श नहीं करेंगे, क्योंकि वे केवल शिव की पूजा करते थे।
जब आभूषण बनाने की प्रक्रिया के दौरान उन्हें मूर्ति के नाप की आवश्यकता हुई, तो उन्हें मजबूरन विठोबा की मूर्ति को छूना पड़ा। जैसे ही उन्होंने मूर्ति को छुआ, उन्हें दिव्य अनुभूति हुई और उन्होंने भगवान विठोबा को शिव का ही स्वरूप समझ लिया। यह घटना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ बनी और उन्होंने पूरी तरह से विठोबा की भक्ति को स्वीकार कर लिया।
संत नरहरि सोनार का योगदान
संत नरहरि सोनार ने समाज में प्रेम, भक्ति और मानवता के संदेश का प्रचार किया। वे संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव और संत तुकाराम की तरह महाराष्ट्र की वारकरी परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए। उन्होंने भक्ति मार्ग को अपनाकर लोक कल्याण के लिए कार्य किया। उनके अभंग (भक्ति गीत) आज भी भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
उनकी शिक्षाओं का मूल आधार था:
संत नरहरि सोनार जयंती का महत्व
संत नरहरि सोनार जयंती प्रत्येक वर्ष उनके भक्तों द्वारा बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाई जाती है। यह दिन उनके जीवन, उपदेशों और भक्ति भावना को स्मरण करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
कैसे मनाई जाती है जयंती?
संत नरहरि सोनार की शिक्षाएँ और आधुनिक समाज
संत नरहरि सोनार की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने जो संदेश दिए, वे समाज में प्रेम, सद्भाव और एकता को बढ़ावा देने में सहायक हैं। वर्तमान समय में जब समाज में भेदभाव, ईर्ष्या और हिंसा बढ़ रही है, तब संत नरहरि जैसे महापुरुषों के विचार और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
उनके जीवन से हमें यह सीखने को मिलता है कि सच्ची भक्ति में कोई भी संकीर्णता नहीं होनी चाहिए। उनका संदेश हमें प्रेम, करुणा और परस्पर सम्मान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष
संत नरहरि सोनार जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक प्रेरणा दिवस है। यह दिन हमें उनकी भक्ति, सेवा और समर्पण को याद दिलाता है। उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज में एकता, सद्भाव और आध्यात्मिक उत्थान का संदेश देती हैं।
उनकी जयंती पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम भी उनके बताए मार्ग पर चलकर समाज में प्रेम, भक्ति और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देंगे।
।। जय संत नरहरि सोनार ।।