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स्वतंत्रता संग्राम के वीर मराठी योद्धा "राजगुरु जयंती" पर नमन!

पंजाब के लोगों की जागरूकता के कारण हमें भगत सिंह के बारे में संक्षेप में ही सही, लेकिन कुछ न कुछ जानकारी होती है।
परंतु “राजगुरु” (शिवराम हरी राजगुरु) मराठी होने के बावजूद, हम उनके बारे में चार वाक्यों से अधिक नहीं बता सकते।
यह कैसी उपेक्षा है, कहना ही पड़ेगा…!

इस महान योद्धा को तो फिल्मों में भी एक हास्य पात्र बनाकर ही दिखाया गया।
मूल रूप से खेड (राजगुरुनगर) के रहने वाले इस युवा ने अपनी मेहनत से काशी में संस्कृत का पंडित बनने का गौरव प्राप्त किया था।
वह इतने प्रखर थे कि संस्कृत में सहजता से बातचीत कर सकते थे।

कुश्ती में उनका कोई मुकाबला नहीं था।
निशानेबाजी में वे इतने निपुण थे कि केवल शब्दों से लक्ष्य को भेद सकते थे। इतना ही नहीं, वे उल्टे लेटकर, पीठ के पीछे रखे लक्ष्य को भी तीर से भेद सकते थे (कभी खुद कोशिश करके देखिए, यह काम कितना कठिन है, समझ आ जाएगा!)।

स्वयं को मजबूत बनाने के लिए वे रातभर दौड़ते हुए 15-20 मील दूर स्थित श्मशान जाते, वहां कुएं में तैरते और फिर दौड़ते हुए वापस आकर सो जाते। उनकी सहनशक्ति (स्टैमिना) इतनी जबरदस्त थी।
वे घंटों तक चींटियों के बिल पर बैठे रहते, चाहे चींटियां उन्हें काटती रहें, लेकिन उनके चेहरे की शिकन भी नहीं बदलती थी।

एक बार तो उन्होंने जलती हुई चिमनी को एक हाथ से दबाकर तोड़ दिया, लोहे के फ्रेम को भी चकनाचूर कर दिया। हाथ जल गया, कांच चुभकर खून बहने लगा, लेकिन उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा!
और इससे भी बड़ी बात सुनिए—

भगत सिंह को संदेह था कि सांडर्स उनकी पहुंच से बाहर है और उसे गोली मार पाना असंभव है।
लेकिन राजगुरु ने भगत सिंह के मना करने के बावजूद, उतनी ही दूरी से चलाई गई गोली को सांडर्स की दोनों भौहों के बीच, सीधा माथे के आर-पार पहुंचा दिया।
उन्हें दोबारा लक्ष्य की ओर देखने की भी जरूरत नहीं पड़ी!

अविश्वास में पड़े भगत सिंह ने बाद में उस शव पर पास से आठ गोलियां चलाईं! ऐसे थे राजगुरु!

(आज शहीद राजगुरु की अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जयंती है। इस अवसर पर पहले लिखे गए एक लेख का संपादित अंश प्रस्तुत है।)

स्वतंत्रता संग्राम के वीर मराठी योद्धा “राजगुरु जयंती” पर नमन! 🙏

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