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कर्मकांड

(कठोपनिषद) 12/16 अतः स्पष्ट है कि संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो कर्मकांड के द्वारा प्राप्त न हो सके। कर्मकांड से केवल लौकिक, धनधान्य, संतति आदि वस्तुओं की ही नहीं अपितु पारलौकिक ‘मोक्ष’ आदि पदार्थों की भी प्राप्ति होती है। इस श्रेष्ठ कर्म के विधि-विधान भी अत्यंत कठिन हैं। कर्मकांड के तीन विशेष अंग है। 1. कंडी 2. पिंडी व 3. चंडी कंडी (कुष्कंडिका): हवन से पूर्व जो कर्म हैं वह कंडी हं। पिंडी: श्राद्धादि में जो पिण्डादि क्रिया होती है उसको पिंडी कहते हैं। चंडी: भगवती दुर्गा जी की उपासना के जो अनुष्ठान व अन्य क्रियायें हैं उनको चंडी कहते हैं। जो साधक कर्मकांड के इन तीन अंगों से भली भांति परिचित है, गुरु परंपरा से जिसने शिक्षा प्राप्त की है वह कर्मकांड कराने व आचार्य कहलाने का अधिकारी हो सकता है। ‘‘श्रम मात्रैक केवलं’’ वह सिर्फ श्रम मात्र है। इसलिए नियमित रूप से सन्ध्या वन्दनादि करने वाले, वेदपाठी व नित्य ही अपने अनुष्ठान में रत ब्राह्मण द्वारा संपन्न की गई कर्मकांड क्रिया ही फलीभूत होती है।

श्री दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से हवन करने से इस प्रकार से कार्यसिद्धि होती है ! किन्तु श्री दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से हवन आपके कुलपुरोहित अथवा सक्षम विद्वान् ब्राह्मण के निर्देशन व उपस्थिति में ही होना आवश्यक है ! अन्यथा हवन में कोई त्रुटि रह जाने पर दुष्परिणाम भी सम्भावित होते हैं ।

जायफल से कीर्ति और किशमिश से कार्य की सिद्धि होती है ।

 

आंवले से सुख और केले से आभूषण की प्राप्ति होती है । इस प्रकार फलों से अर्घ्य देकर यथाविधि हवन करें ।

खांड, घी, गेंहू, शहद, जौ, तिल, बिल्वपत्र, नारियल, किशमिश और कदंब से हवन करें ।

 

गेंहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

 

खीर से परिवार, वृद्धि, चम्पा के पुष्पों से धन और सुख की प्राप्ति होती है।

 

आवंले से कीर्ति और केले से पुत्र प्राप्ति होती है ।

 

कमल से राज सम्मान और किशमिश से सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है ।

 

खांड, घी, नारियल, शहद, जौं और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।

 

व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रमाण करें और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दें । इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं । नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

 

दुर्गा सप्तशती के अध्याय से कामनापूर्ति-

 

1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए ।

 

2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए

 

3- तृतीय अध्याय – शत्रु से छुटकारा पाने के लिये ।

 

4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये ।

 

5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए ।

6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये ।

 

7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये ।

 

8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये ।

 

9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये ।

 

10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये ।

 

11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये

 

12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये ।

 

13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये ।

 

दुर्गा सप्तशती के लाभ-

 

वैदिक आहुति की सामग्री-

 

प्रथम अध्याय-एक पान पर देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खड़े होकर आहुति देना ।

द्वितीय अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष

 

तृतीय अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद

 

चतुर्थ अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 1 से 11 मिश्री व खीर विशेष,चतुर्थ अध्याय- के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए । ऐसा करने से देह नाश होता है । इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है ।

पंचम अध्ययाय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।

 

षष्टम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र ।

 

सप्तम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं ।

 

अष्टम अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन ।

 

नवम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना ।

 

दशम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था ।

 

एकादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक

 

संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय

 

31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 में

 

अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक

 

संख्या 54 एवं 55 में फूल चावल और सामग्री ।

 

द्वादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 में नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल त्रयोदश अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल ।

 

साधक जानकारी के अभाव में मन मर्जी के अनुसार आरती उतारता रहता है जबकि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारने का विधान है- चार बार चरणों पर से दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से, सात बार पूरे शरीर पर से । इस प्रकार चौदह बार आरती की जाती है। जहां तक हो सके विषम संख्या अर्थात 1, 5, 7 बत्तियाँ बनाकर ही आरती की जानी चाहिये ।

 

शैलपुत्री साधना- भौतिक एवं आध्यात्मिक इच्छा पूर्ति ।

 

ब्रह्मचारिणी साधना- विजय एवं आरोग्य की प्राप्ति ।

 

चंद्रघण्टा साधना- पाप-ताप व बाधाओं से मुक्ति हेतु ।

 

कूष्माण्डा साधना- आयु, यश, बल व ऐश्वर्य की प्राप्ति ।

 

स्कंद साधना- कुंठा, कलह एवं द्वेष से मुक्ति ।

 

कात्यायनी साधना- धर्म, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति तथा भय नाशक ।

 

कालरात्रि साधना- व्यापार/रोजगार/सर्विस संबधी इच्छा पूर्ति ।

 

महागौरी साधना- मनपसंद जीवन साथी व शीघ्र विवाह के लिए

 

सिद्धिदात्री साधना- समस्त साधनाओं में सिद्ध व मनोरथ पूर्ति ।

 

विभिन्न मनोकामनाओं के लिए दुर्गा सप्तशती के अलग-अलग श्लोक मंत्र रूप में प्रयुक्त होते हैं जिनको किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से पूछकर प्रयोग किया जा सकता है।

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