Sshree Astro Vastu

चमत्कारिक होता है रमल ज्योतिष

बिना कुंडली के जानें भविष्य, भगवान शिव ने भी इस विद्या से की थी अधूरी इच्छा पूरी

==============================

ज्योतिष की अनेक शाखाओं-प्रशाखाओं में से रमल ज्योतिष भी एक है। महासती के वियोग से व्याकुल भगवान शिव के समक्ष महाभैरव ने चार बिन्दु बना दिए और उनसे उसी में अपनी इच्छित प्रिया सती को खोजने के लिए कहा। विशेष विधान से उन्होंने इसे सिद्ध करके सातवें लोक में अपनी प्रियतमा को देखा। तभी से इस रेखा और बिन्दु शास्त्र का प्रादुर्भाव हुआ।

 एक बार एक व्यक्ति अरब के रेगिस्तान में चल रहा था, अंतत: चलते-चलते थक गया। चारों ओर बालू ही बालू दिखाई देती थी। वह गंतव्य का मार्ग भूल गया और बड़ा चिंतित हुआ। तब साक्षात शक्ति ने आकर उसके सामने चार रेखा और चार बिन्दु बना दिए। उसे एक ऐसी विधि बताई कि वह गंतव्य स्थान का मार्ग जान गया। वहीं से इस शास्त्र की उत्पत्ति हुई।

इसका जन्म भारत में ही हुआ। बहुत काल तक भारत में विकसित हुई यह विद्या दूर-दूर तक फैल गई और काल प्रभाव से यहां इसका महत्व कम हो गया।

जब देश में मुसलमानों का शासन हुआ तो इसे राज्याश्रय प्राप्त हो गया। कारण, भारतीयों की तरह मुसलमान ज्योतिष विद्या के अन्य सूक्ष्म तत्वों को जानते नहीं थे। अत: उनके समय में इसका प्रचार अधिक हुआ।

भारतवर्ष में भविष्य कथन जानने और समाधान के वास्ते अनेक विद्याओं का विद्वान समय-समय पर सहारा लिया करते हैं और ज्योतिष विज्ञान की अनेक शाखाएं भी वर्तमान में मौजूद हैं। इनमें रमल  ज्योतिष यानी कि इल्म-ए-रमल एक सबसे महत्वपूर्ण, ज्योतिष जगत की जीती-जागती अनूठी, अतिशीघ्र समस्याओं का समाधान करने वाली पद्धति है जिसमें प्राणी मात्र प्रकृति (स्थावर और जंगम) का पूर्ण लेखा-जोखा किसी घटना विशेष से पूर्व, समय रहते हुए शोध कर खोजा जा सकता है।

 

जन्मकुंडली जरूरी नहीं

 

रमल ज्योतिष शास्त्र में प्रश्रककर्ता अर्थात याचक की जन्मकुंडली की कदापि आवश्यकता नहीं होती। यहां तक कि प्रश्रकर्ता का नाम, माता-पिता का नाम, घड़ी, दिन, वार, समय और तो और पंचांग की भी आवश्यकता नहीं होती है। प्रश्रकर्ता मात्र रमलाचार्य के पास अपने अभीष्ट प्रश्र के शुभ-अशुभ, लाभ-हानि, अमुक कार्य कब तक, किसके माध्यम से किस प्रकार होगा एवं अन्य तात्कालिक प्रश्र इत्यादि को मन-वचन और आंतरिक भावना से लेकर जाए क्योंकि किसी भी ज्योतिष शास्त्र में श्रद्धा और विश्वास का भाव प्रश्रकर्ता के मन में होना अति आवश्यक है।

 

रमल  ज्योतिष शास्त्र में जीवन के प्रत्येक कठिन समस्या के मार्गदर्शन और समाधान अरबी पासा डालकर किए जाते हैं। पासे को अरबी भाषा में ‘कुरा’ कहते हैं। ये प्रश्रकर्ता के हाथ पर रख कर किसी विशेष स्थान पर डलवाए जाते हैं और उनसे प्राप्त हुई शक्ल (आकृति) का रमल ज्योतिषीय गणित के  प्रस्तार अर्थात ‘जायचा’ बनाया जाता है। उस प्रस्तार के माध्यम से प्रश्रकर्ता के समस्त प्रश्नों का मार्गदर्शन समाधान गणित के द्वारा तत्काल ही प्राप्त होता रहता है।

 

यह सारी प्रक्रिया प्रश्रकर्ता के रमलाचार्य के सम्मुख होने पर होती है। यदि प्रश्रकर्ता  रमलाचार्य के सम्मुख न हो तो प्रश्रकर्ता के समस्त प्रश्रों का जवाब मय समाधान सहित ‘प्रश्र फार्म’ द्वारा किया जा सकता है जो वर्तमान काल में एक नवीन शोध द्वारा तैयार किया गया है। प्रश्र करने की दोनों पद्धतियों द्वारा प्राप्त परिणाम एक ही आता है। इनसे प्राप्त फलादेश में भिन्नता किसी प्रकार से कभी नहीं होती मगर गणितीय स्थिति पूर्णत: भिन्न अवश्य ही होती है।

सटीक फलादेश

============

आजकल भारतीय ज्योतिष द्वारा भविष्यकाल के जानने के वास्ते जन्मकुंडली कुछ लोगों के पास नहीं हैं या पूर्ण नहीं हैं तथा जिनके पास हैं भी तो पूर्ण रूप से सही नहीं हैं जिससे उनका फलादेश पूर्ण तथा सही घटित नहीं होता। इस कारण प्रश्रकर्ता पूर्ण मानसिक रूप से संतुष्ट नहीं होता और न ही उसे इच्छित लाभ प्राप्त होता है मगर रमल  ज्योतिष शास्त्र में जन्मकुंडली आदि की आवश्यकता नहीं होती है। रमल  ज्योतिष शास्त्र का फलादेश इनके मुकाबले काफी सटीक प्राप्त होता है।

 

प्रस्तार की रचना

=============

रमल शास्त्र में पासा डालने के उपरांत प्रस्तार अर्थात ‘जायचा’ बनाया जाता है। प्रस्तार में 16 घर होते हैं। 13, 14, 15 और 16 पर गवाहन अर्थात साक्षी घर होते हैं। प्रस्तार के 1, 5, 7, 13 अग्रि तत्व के होते हैं। 2,6,10,14, 13, 7, 11, 15 घर जल तत्व के होते हैं।   

 

Ssav
मो. 7900037153
 
नोट- अगर आप अपना भविष्य जानना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल करके या व्हाट्स एप पर मैसेज भेजकर पहले शर्तें जान लेवें, इसी के बाद अपनी बर्थ डिटेल और हैंडप्रिंट्स भेजें।
Share This Article
error: Content is protected !!
×