“आज हम साले की हड़डी-पसली तोड़कर रख देंगे। फूँकों इसकी झोंपड़ी।निकल साले बाहर।”
रामबोला घबराकर बाहर निकल आया। उसने स्वर से पहचान लिया था कि दूसरा आदमी उस लड़के का पिता पुत्तन महाराज ही है। झोंपड़ी से बाहर निकलते ही लड़के के पिता ने उसे ऐसा करारा झापड़ मारा कि आखों के आगे तारे चमकने लगे। रामबोला धरती पर गिर पड़ा। उस पर लातें पड़ने लगीं। बेचारा बच्चा ‘राम रे’ करके चीख उठा।
“साले, भिखारी की औलाद, भले घर के लड़कों पर हाथ उठाता है।अरे हम तुम्हारा हाथ तोड़ डालेंगे”
रामबोला की बाहँ पकडकर उस व्यक्ति ने उसे फिर उठाया और उसकी बाँह मरोड़ते हुए धम्म से पटक दिया। बच्चे में रोने की शक्ति भी बाकी न रही। उस व्यक्ति ने बच्चे की उस टूटी शरणस्थली झोंपड़ी को भी तहस-नहस कर दिया और कहा- “यह साला हमें गाँव में अब जो कहीं दिखाई पड़ा तो हम इसकी हड्डी-पसली तोड़ के फेंक देंगे।”
गिरे हुए छप्पर ने चूल्हे की आग पकड़ ली। सूखी फूँस मिनटों में लपटें उठाने लगी।उस आग से अपनी झोंपड़ियाँ बचाने के लिए आसपास के भिखारी भिखारिन निकल आए।जलते छप्पर के दूसरे सिरे का बाँस निकालकर एक भिखारिन आग को अपनी झोपड़ी की ओर से बचाने के लिए जलते हुए छप्पर को आगे ढकेलने लगी। फूँस ने पूरे छप्पर के फूँस -पत्तों में भी लपटें उठा दीं। तनिक सी झोंपड़ी कुछ पलों में ही जल भुनकर अपना अस्तित्व खो बैठी। झोंपड़ी के अन्दर गठरी-मोठरी जो कुछ था, जलकर स्वाहा हो गया। रामबोला धरती से चिपका मुर्दे की तरह पड़ा रहा। पुत्तन महाराज चलते समय उसे एक करारी ठोकर और लगा गए।बस्ती की अन्य भिखारिनें और भिखारी जो तमाशा देखने के लिए और अपने घरों को बचाने के लिए आ गए थे, चे-चें-मे- में करने लगे। दो एक स्त्रियों ने सहानुभूति भी प्रकट की। अधिकतर लोग रामबोला को ही दोष दे रहे थे कि भिखारी के बच्चों की भले घर के बच्चों के साथ खेलने की आखिर जरूरत ही क्या थी। एक लड़के ने कहा भी कि हम अपने मन से उन लोगों के साथ नहीं खेलते पर जब वह लोग हमें खेलने के लिए कहते हैं तो हम क्या करें? लेकिन जबरे का न्याय दीनों और दुर्बलों का पक्ष पाती नहीं होता।
मार से पीड़ित रामबोला धरती से चिपका पड़ा रहा। उसमें उठनें की ताब भी न थी। भैसियाँ ने कहा- “अब इसको बस्ती में नहीं रहने देंगे, इसके कारण किसी दिन हम पंचों पर भी विपदा आ सकती है।
एक भिखारिन ने दया दिखाते हुये कहा- “तो ये कहाँ जाएगा बिचारा? अभी नन्हा सा तो है।”
“भिखमंगो के बच्चों की कौन चिंता, कहीं भी जाके मर जाएगा।”
भीड़ अपनें-अपनें घरों में चली गई। बच्चा वहीं पड़ा रहा।
जब सन्नाटा हो गया तो रामबोला आकाश की ओर देखकर बोला- “बजरंग स्वामी, राम जी क्या अपने दरबार में कुण्डी चढ़ा के बैठे हैं? हमारी तरफ से बोलने वाला क्या कोई भी नही है? तुम भी नहीं बोलोगे? अब हम कहाँ रहें बजरंगी?”
बदली से चाँद निकल आया। दूर पर गाँव के पेड़ राक्षसों की तरह से दिखाई दे रहे हैं। अपनी झोंपड़ी राख में सनी बिखरी पड़ी है। कुत्ते कहीं पास ही में जूझते हुए शोर मचा रहे हैं। बच्चा उठता है। अपनी जली पड़ी हुई झोंपड़ी को कुरेद कर सामान निकालना चाहता है। पर उसमें बचा ही क्या है।हताश बच्चे के मुँह से गर्म गर्म साँस निकलती है, जी चाहता है कि उससे ऐसी गति आ जाए कि वह भी उसी तरह इन गाँव वालों के घरों में आग लगा दे जैसे कि बजरंगबली ने लंका फूँकी थीं। वह नन्हा-सा है, नहीं फूँक सकता तो हनुमान स्वामी ही आ के उसका बदला तो लें।आओ, आओ इन दुष्टों से हमारा बदला लो…. आओ भगवान …. ।पार्वती अम्मा ने हनुमान के द्वारा लंका फूँके जाने की कहानी कभी बच्चे को सुनाई थी, लेकिन इस समय बार बार, गिड़गिड़ा -गिड़गिड़ा कर गुहारने के बावजूद हनुमान जी ने इस गाँव की लंका न फूँकी। वह उत्तर की ओर गाँव से लपटे उठने की बाट देखता ही रह गया पर कुछ न हुआ। हताश होकर रामबोला उठा और गाँव की सीमा की ओर चल पड़ा।
गोस्वामी तुलसीदास जी के चेहरे पर भूतकाल मानों वर्तमान बनकर अपनी छाया छोड़ रहा था। वे कह रहे थे-“पार्वती अम्मा सच ही कहती थी कि जिससे राम जी तपस्या कराते हैं उसे ही दुरूह दुर्भाग्य के अथाह समुद्र में भयंकर क्रूर तिमि-तिमिंलगों के बीच में छोड देते हैं। उनसे अपनी रक्षा करना ही अभागे की तपस्या कहलाती है। अब सोचता हूँ कि राम जी ने मुझ पर अत्यन्त कृपा करके ही यह सारे दु:ख डाले थे। इन्हीं दु:खों की रस्सी का फंदा डालकर राम नाम की ऊँची अटारी पर आज तक चढ़ता चला आया हूँ। दु:ख का भी एक अपना सुख होता है।”
वेनीमाधव जी बोले- “इसी घटना के बाद आप सूकर खेत पहुँचे थे।”
“हाँ, किन्तु इधर-उधर भटकते, भीख माँगते, बिलखाते-बिलखाते हुए ही उस पावन भूमि तक पहुँच पाया था।घाघरा और सरयू के पावन स्थल पर महावीर जी का जो मन्दिर है न, मैं अन्त में वहीं का बन्दर वन गया। भक्त लोग बन्दरों के आगे चने और गुड़धानी फेंका करते थे। जाति-कुजाति, सजाति के घरों से माँगें हुए टुकड़े खाते और अपमान सहते मैं उस जीवन से इतना चिढ़ उठा था कि अन्त में किसी से भी भिक्षा न माँगने का निश्चय किया।”
रामबोला हनुमान जी के आगे नमित होकर बार बार कह रहा है- “अब हम तुम्हीं से माँगेंगे हनुमान स्वामी, अब किसी के पास नही जाएँगें। तुम हमारा पेट भर दिया करो। हम तुम्हारा स्थान खूब साफ कर दिया करेंगे।”
बच्चा वहीं रहने लगता हैँ। रोज सबेरे उठकर हनुमान जी का चबूतरा बुहारता है फिर नहाने जाता है। लौटकर चबूतरे पर ही बैठ जाता है और भजन गाता है। बन्दरों के लिए फेंके जानवाले चनों को बीनता है।उन दानों के लिए उसे बन्दरों से संघर्ष भी करना पड़ता है। दोनों हाथों में संटियाँ लेकर वह बन्दरों से जूझता है। “आय जावो जरा। आओ तो सही।
क्रमशः