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ज्योतिष में राजयोग

पद्मसिंहासन योग

 

निष्पत्ति : दशमभवननाथे केन्द्रकोणे धनस्थे ।

अवनिपतिरधीशः पद्मसिंहासनेषुपरिणाम।।

 

स भवति नरनाथो विश्वविख्यात कीर्तिः, ।

मदगलित कपोलैः सद्गजैः सेव्यमान ।।

                      -मानसागरी ४/३ पृ. २४२

दशम भाव का स्वामी यदि केन्द्र-त्रिकोण (१, ४, ७, १०, ५, ९) स्थानों में हो तो यह योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक राजसिंहासन पर बैठता है या राजातुल्य वैभव व पराक्रम को भोगता है। शास्त्रकार कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति मनुष्यों में श्रेष्ठ कीर्ति को पाने वाला होता है तथा उसकी यश पताका समग्र विश्व में फहरा जाती है।

ऐसे व्यक्ति के द्वार पर हाथी-घोड़े बँधे रहते हैं अर्थात् उसके घर के

बाहर उत्तम वाहन खड़े मिलेंगे। कुछ विद्वान् उसे राजनीति में सफलता दिलाने वाला श्रेष्ठतर योग मानते हैं।

 

अनन्तकीर्ति योग

 

लाभेश और नवमेश तथा धनेश इनमें से कोई भी ग्रह यदि केन्द्र स्थित हो, देवगुरु वृहस्पति भी धनेश, पंचमेश या एकादशेश होकर केन्द्र में स्थित हो, लग्नेश बलवान हो तो यह योग बनता है।

 

परिणाम : इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्थाई धन-सम्पत्ति का स्वामी होता है। वह राजा तुल्य ऐश्वर्य वैभव, नौकर-चाकर, वाहन-स्त्री व धनसुख को भोगता हुआ जगत में खूब कीर्ति अर्जित करता है। ऐसा व्यक्ति परोपकारी एवं धार्मिक होता है तथा ऐसा कोई कार्य कर जाता है जिससे उसकी यश पताका अक्षुण्ण रूप से कायम करती है।

 

खड्ग योग

 

यदि भाग्येश धन भवन में हो और धनेश भाग्य भवन में हो और साथ ही लग्नेश केन्द्र अथवा कोण में स्थित हो तो “खड्ग” योग बनता है।

 

परिणाम : इस योग में उत्पन्न होने वाला समस्त वेद शास्त्रों के अर्थों से अनभिज्ञ, बुद्धिमान, प्रतापवान्. निरभिमानी, कुशल, कृतज्ञ मनुष्य होता है।

 

काहल योग

 

निष्पत्ति: नवम भाव का स्वामी और चतुर्थ भाव का स्वामी परस्पर केन्द्र में हो और लग्नेश बलवान हो तो काहल योग बनता है।

 

परिणाम : काहल योग में उत्पन्न जातक बलिष्ठ शरीर वाला, वीर एवं दृढ़ चरित्र वाला होता है। इन्हें साहसिक कार्यों में रुचि होती है तथा जीवन में सभी प्रकार के सुख इन्हें सहज में ही उपलब्ध हो जाते हैं। ऐसा जातक भाग्यशाली होता है तथा इन्हें जीवन में खूब यश-कीर्ति व लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

 

 

शंख योग

 

पाँचवें भाव का स्वामी और छठें भाव का स्वामी परस्पर केन्द्र में स्थित हों तथा लग्नेश बलवान हो तो शंख योग होता है। लग्नेश और दशमेश चर राशि में हो एवं भाग्येश बली हो तो शंख योग होता है।

 

परिणाम: शंख योग में उत्पन्न जातक आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने वाला होता है, दूसरों के प्रति उसका व्यवहार मधुर और सौम्य होता है तथा पारिवारिक दृष्टि से वह सफल व्यक्ति होता है। ऐसा जातक विज्ञान, धर्म, शास्त्रादि में पूर्ण रुचि रखता है तथा पूर्ण आयु प्राप्त करता है।

 

विक्रमी योग

 

धनस्थाने यदा शुक्रो, दशमे च वृहस्पतिः ।

षष्ठे च सिंहिका पुत्रो, राजा भवति विक्रमी ।।

 

द्वितीय स्थान में शुक्र, दसवें में गुरू और छठे राहु हो तो यह योग बनता है।

 

परिणाम : इस योग में जन्मा अपने स्वयं के पराक्रम व पुरुषार्थ से राजपद, धन व ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। विक्रम योग में उत्पन्न व्यक्ति को वाहन सुख पूर्ण होता है। साथ ही वह बलवान एवं प्रबल साहसी होता है तथा कठिन से कठिन परिस्थिति में भी विचलित नहीं होता। ऐसे जातक का विक्रम अक्षुण्ण होता है।

 

चामर योग

 

लग्न का स्वामी अपनी उच्च राशि का होकर केन्द्र में स्थित हो तथा

गुरु देखता हो तो चामर योग की सृष्टि होती है।

परिणाम : इस योग में उत्पन्न मनुष्य उच्च प्रतिष्ठा युक्त, राज्यमान्य व्यक्तियों द्वारा पूजा जाता है, सम्मान पाता है। ऐसा व्यक्ति चारों वेदों-षट्शास्त्रों का ज्ञाता व ज्ञानी होता है। पूर्ण आयु भोगता हुआ अपनी हिम्मत एवं पराक्रम से खूब प्रसिद्धि को प्राप्त करता है।

 

महाभाग्यशाली योग

 

पुरुष का दिन में जन्म हो और जन्म लग्न, सूर्य लग्न, एवं चन्द्र लग्न

अयुग्म (विषम) राशियों १/३/५/७/९/११ में स्थित हो तो

महाभाग्यशाली योग बनता है। अथवा किसी स्त्री का जन्म रात्रि का हो, और जन्मलग्न, सूर्यलग्न, तथा चन्द्र लग्न तीनों युग्म (सम) राशियों २/४/६/८/१०/१२ में हो तो महाभाग्यशाली योग बनता है।

 

परिणाम : इस योग में जन्म नाम के अनुरूप ही व्यक्ति महान् भाग्यशाली होता है, धन व यश की प्राप्ति हेतु यह योग बेजोड़ है, अनुपम है। दूसरा कोई प्रशस्ति या बलशाली योग कुण्डली में न हो तो यह एक अकेला योग सब प्रकार के अरिष्ठों का नाश करके व्यक्ति को पद-प्रतिष्ठा के उच्चतम शिखर तक पहुंचा देता है।

 

विश्व पालक योग

 

जीवो वृषे सुधारश्मिः मिथुने मकरे कुजः ।

सिंहे भवति सौरिश्च, कन्यायां बुधभास्करौ ।।

तुलायामसुराचार्यो राजयोगो भवेदयम् ।

अत्र योगे समुत्पन्नो महाराजो भवेन्नरः ॥

अष्टमे द्वादशे वर्षे यदि जीवति मानवः ।

सार्वभौमस्तदा राजा जायते. विश्वपालकः ।।

                      -मानसागरी ४/३० पृ. २४८

 

वृष में गुरु, मिथुन में चन्द्रमा, मकर में मंगल, सिंह में शनि, कन्या में

बुध सूर्य, तुला में शुक्र हो तो यह योग बनता है।

 

परिणाम : इस योग में जन्मा मनुष्य प्रबल पराक्रमी एवं महाराजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगने वाला होता है। शास्त्रकार कहते हैं कि इस योग में जन्म लेने वाले का जीना कठिन है। यदि यह मनुष्य आठ और बारहवें दोनों वर्ष से बच जाय, मृत्यु न हो तो ऐसा पुरुष श्रेष्ठ संसार को पालने वाला सार्वभौम जगत्प्रिय व्यक्ति होता है।

 

छत्र योग

यस्योत्पत्तौ छत्रयोगोपलब्धिः लब्धिः स्याच्चेच्छत्रसच्चामराद्यैः ।

 

सप्तम भाव से लेकर सात स्थानों में क्रमश: (राहु केतु को छोड़ कर) सभी ग्रह हों तो छत्र योग बनता है।

 

परिणाम : इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति पण्डित, राजकार्याधिकारी दयावान आदि और अन्त सब विषय में सभी सुखों को भोगने वाला, चामर छत्र आदि राज चिन्ह से युक्त नगर का प्रसिद्ध व्यक्ति होता है।

 

 

चतुः सागर योग

 

चतुःषु कन्द्रसंज्ञेषु सौम्यपाप ग्रहाः स्थिताः ।

चतुःसागरयोगोऽयं राज्यदो धनदो भवेत् ।।

 

परिणाम : यदि केन्द्र स्थान २/४/७/१० ग्रहों से भरे हुये हों तो चतुःसागर योग बनता है। मानसागरी के एक अन्य मतानुसार यदि मेष, कर्क, तुला और मकर राशि में सब ग्रह हों तो चतुः सागर योग बनता है पर ऐसा बहुत कम सम्भव होता है। शास्त्रकारों ने चारों केन्द्र स्थानों को विष्णुपद माना गया है। विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं अत: चारों केन्द्र चार समुद्र के समान हैं। इनमें ग्रह होने से चारों सागर भर जाते हैं। सौम्य पाप ग्रहों की कोई शर्त नहीं है।

 

यह योग समस्त अशुभों को नाश करने वाला धन, राज्य और कीर्ति को देने वाला योग कहा गया है। शास्त्रकारों ने कहा है-

 

चतुःसिन्धी नरो जातो बहुरत्नसमन्वितः ।

गजवाजिधनैः पूर्णो धरणीशो भवेन्नरः ||

 

अर्थात् इस योग में जन्म लेने वाला जातक विविध प्रकार के रत्न-आभूषणों से युत, हाथी-घोड़ा (उत्तम वाहन) से युत, धन से परिपूर्ण राजातुल्य वैभव से परिपूर्ण पुरुष होता है तथा उस व्यक्ति की कीर्ति-पताका समुद्र पार देशों में भी फहराती है।

 

लक्ष्मी योग

१. धनेशे केन्द्रराशिस्थे, लाभेशे तत्त्रिकोणगे। ।

    गुरुशुक्रयुते दृष्टे, लक्ष्मीवन्तमुदीरयेत् ।।

                              -बृहत्पाराशर होराशास्त्र अ. १३/५

 

परिणाम : धनेश केन्द्र में हो, उससे त्रिकोण (५,९) में लाभेश हो अथवा धनेश गुरु, शुक्र से युत किंवा दृष्ट हो, तो जातक पूर्ण लक्ष्मीवान होता है। इस योग के कारण मनुष्य धन-धान्य, रत्न-भूषण से परिपूर्ण एवं सुखी जातक होता है। यद्यपि धन के लिये इन्हें निरन्तर परिश्रम करना पड़ता है। तथापि समाज में इनकी भारी प्रतिष्ठा होती है।

 

२. यदि भाग्येश अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि का होकर केन्द्र में हो तो लक्ष्मी योग बनता है।

 

परिणाम : ऐसे व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं। इनको अल्प प्रयत्न से ही धन की प्राप्ति हो जाती है। लक्ष्मी इन पर प्रसन्न रहती हैं। इस योग के कारण आप धनवान सुखी एवं सम्पन्न व्यक्तियों की श्रेणी में माने जायेंगे।

 

३. लाभाच्च लाभगे जीवे, बुधचन्द्रसमन्विते ।

धन-धान्याधिपः श्रीमान् रत्नाद्याभरणैर्युतः ।।

                                       -बृ.पा. होराशास्त्र अ.२२/७

 

परिणाम : लाभ भाव से ग्यारहवें स्थान अर्थात् नवम भाव में बुध, चन्द्र गुरु हो तो व्यक्ति धन-धान्य, रत्नं आभूषण से युत लक्ष्मीवान होता है।

नवम भाव ज्योतिष में लक्ष्मी का स्थान माना गया है। नवम भाव में इन तीन ग्रहों के होने से लक्ष्मी उस जातक पर सदैव प्रसन्न रहती है। इस योग के कारण आप धनवान, सुखी एव सम्पन्न व्यक्तियों की श्रेणी में गिने जायेंगे।

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