संकेत! मैंने घड़ी देखी — रात के दो बज चुके थे।फिर भी मुझे ज़रा भी नींद नहीं आ रही थी।बिस्तर पर करवटें बदलते हुए मैंने सोचा — क्या उसे फोन करूँ?फिर खुद को समझाया — नहीं, इस वक़्त नहीं। वह सो रही होगी।लेकिन नींद जैसे कोसों दूर चली गई थी।मन में एक अजीब बेचैनी थी — कहीं कुछ घटने वाला है ऐसा लग रहा था।मेरे भीतर जैसे कोई घंटी बज रही थी — संकेत!मैंने पानी पिया, खिड़की के पास गया। बाहर सड़क पर गहरी नींद थी।सिर्फ कभी-कभी कोई कुत्ता भौंकता या हवा में किसी पेड़ की पत्तियाँ सरसरातीं।पर उस सन्नाटे के बीच भी मुझे लगता रहा कि कोई बुला रहा है।कहीं दूर से — धीरे, शांत, पर लगातार।मैंने खुद से कहा —“ऐसा क्यों लग रहा है कि वह संकट में है?”पर कोई जवाब नहीं मिला।सिर्फ दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी।मैंने तय किया — अब और नहीं।चाहे रात के दो बजे हों, मैं फोन करूँगा।अगर वह नाराज़ भी हो जाए तो क्या हुआ?मैंने फोन उठाया।नंबर डायल किया।तीन बार घंटी बजी… चौथी बार पर किसी ने रिसीवर उठाया।“हैलो?” — नींद से टूटी, भारी आवाज़ थी।“मीरा?” मैंने धीरे कहा।थोड़ी देर खामोशी रही।फिर उसने पूछा — “तुम… इस वक़्त?”“नींद नहीं आ रही थी। बस यूँ ही लगा कि तुमसे बात कर लूँ।”उसने एक लंबी साँस ली — “अच्छा किया… मैं भी जाग रही थी।”दोनों तरफ़ कुछ पल तक चुप्पी रही।फिर उसने धीरे से कहा —“आज शाम अजीब थी। माँ को अचानक बेचैनी हुई।उन्हें लगा कोई अनहोनी होने वाली है। मैं उन्हें समझा रही थी…”मैंने पूछा — “अब कैसी हैं?”“अब ठीक हैं। दवा दी है।”लेकिन उसके स्वर में भी वही हल्की कंपन थी —जैसे वह भी वही संकेत महसूस कर रही हो जो मैं कर रहा था।उस रात हमारी बातचीत लंबी चली।ज्यादा कुछ कहा नहीं गया —पर बहुत कुछ महसूस हुआ। Playlist 3 Videos Sshree Astro Vastu | Panchang Rahasyam | Review By - Abhishek Tiwari | In Hindi 2:14 Sshree Astro Vastu | Gujarati | Panchang Rahasyam Course Review | Astro - Hina Panchal 3:39 Sshree Astro Vastu | Secrets Of Panchang Remedies & Muhurtas | Review By- Astro-Suvarna Ji | Marathi 4:49 कभी-कभी शब्दों की ज़रूरत नहीं होती —बस संकेत ही काफी होते हैं।सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज काफी ऊपर चढ़ चुका था।कमरे में हल्की पीली रोशनी थी, पर मन में अजीब सन्नाटा पसरा था।रात की बात याद आई —मीरा की आवाज़… उसकी थकी हुई साँसें… और वो बेचैनी जो हम दोनों ने महसूस की थी।क्या वो सिर्फ़ संयोग था?या सच में कोई अदृश्य डोर हमें जोड़ रही थी?मैंने खुद से पूछा,“क्या ऐसा हो सकता है कि दो लोग, जो मीलों दूर हैं,एक ही वक्त पर एक-दूसरे की बेचैनी महसूस करें?”शायद हाँ…क्योंकि हमारे बीच जो रिश्ता था,वो शब्दों से नहीं, संवेदनाओं से बना था।नाश्ता करते समय माँ ने पूछा,“क्या बात है बेटा, आज बहुत चुप हो?”मैं मुस्कुराया, “कुछ नहीं माँ, बस नींद ठीक से नहीं हुई।”पर मन भीतर-ही-भीतर डूबा जा रहा था।मैंने अख़बार खोला, और जैसे ही नज़र पहले पन्ने पर पड़ी —दिल थम गया।शीर्षक था —“रात देर से शहर के पश्चिम इलाके में एक हादसा —बिजली के झटके से एक युवती बेहोश, स्थिति स्थिर।”मेरा हाथ काँप गया।कॉलम में नाम पढ़ा — मीरा देशमुख।कुछ पल मैं सुन्न रह गया।जैसे कानों में कोई गूंज बंद हो गई हो।फिर अचानक दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।रात का “संकेत”…वो बेचैनी…वो उसकी भारी आवाज़…सबका मतलब अब समझ में आ रहा था।मैं तुरंत निकला।टैक्सी ली और सीधे अस्पताल पहुँचा।वार्ड में पहुँचा तो मीरा की माँ बाहर बैठी थीं।थकी हुईं, पर शांत।मुझे देखकर बोलीं —“अरे, तुम? वो ठीक है बेटा… भगवान का शुक्र है।”मैंने कमरे के भीतर झाँका —वो बिस्तर पर थी, हल्की मुस्कान के साथ।चेहरे पर कमजोरी थी, लेकिन आँखों में वही पहचान —“तुम आओगे, मुझे पता था।”मैं कुछ कह नहीं पाया।सिर्फ उसकी हथेली अपने हाथ में ले ली।हम दोनों चुप थे।फिर उसने धीरे से कहा —“कल रात मैं भी तुम्हें फोन करने वाली थी…पर अचानक बिजली गई, और… फिर कुछ याद नहीं।”मैंने उसकी आँखों में देखा —और मुस्कुराया।“शायद… यही था वो संकेत।”उस दिन के बाद मैंने “संयोग” शब्द पर भरोसा करना छोड़ दिया।कुछ चीज़ें तर्क से नहीं, दिल से महसूस होती हैं।अगले कुछ दिन मीरा अस्पताल में रही।हर दिन मैं उससे मिलने जाता —कभी फूल लेकर, कभी बस चुपचाप बैठने के लिए।वह धीरे-धीरे ठीक हो रही थी।पर उस रात की बात हम दोनों ने बहुत देर तक अपने दिल में ही रखी।एक दिन जब सब कुछ सामान्य लग रहा था,मीरा ने खिड़की से बाहर देखते हुए मुझसे कहा —“तुम जानते हो, उस रात मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मुझे ज़ोर से खींच रहा था…जैसे कोई कह रहा हो — ‘जागो!’और उसी पल मुझे तुम्हारा खयाल आया।”मैंने कहा —“मुझे भी उसी वक्त बेचैनी हुई थी।लगता है… कहीं कुछ हमें जोड़ता है, जिसे हम देख नहीं सकते।”वह मुस्कुराई।“हाँ, शायद वही संकेत था।”कुछ देर दोनों खामोश रहे।हवा में हल्की ठंडक थी।सूरज की किरणें उसके चेहरे पर पड़ रही थीं।फिर उसने धीमे स्वर में कहा —“तुम्हें पता है, अब मुझे किसी चीज़ से डर नहीं लगता।मौत से भी नहीं।”मैं चौक गया।“ऐसा क्यों कह रही हो?”वह बोली —“क्योंकि मैंने महसूस किया है…अगर कुछ भी हुआ, तो तुम्हें पता चल जाएगा।तुम्हारे मन में कोई संकेत आएगा,और वो मुझे तुम्हारे पास वापस ले आएगा।”उसकी आँखों में ऐसी शांति थी कि मैं शब्द खो बैठा।बस उसका हाथ थामे बैठा रहा।दिन बीतते गए।मीरा ठीक हो गई।अस्पताल से छुट्टी मिली।जीवन फिर सामान्य होने लगा —पर “संकेत” की वह कड़ी अब भी बनी रही।कभी-कभी बिना वजह मेरा दिल धड़क उठता,और थोड़ी देर बाद उसका संदेश आता —“आज मेरा मूड अच्छा नहीं है।”कभी मैं अचानक बेचैन होता,तो वह कहती — “अभी-अभी मैं तुम्हारे बारे में सोच रही थी।”हम दोनों अब उस अनदेखी डोर को पहचानने लगे थे —वह जो सिर्फ दो शरीर नहीं, दो आत्माओं को जोड़ती है।और फिर…एक सुबह, ठीक पाँच बजकर तीस मिनट पर,मैं अचानक नींद से जागा।कोई सपना नहीं देखा था, पर दिल में हलचल थी।फोन की ओर देखा —कुछ भी नहीं।पर मन बार-बार कह रहा था — संकेत!मैंने तुरंत कॉल किया।फोन नहीं उठा।दूसरी बार किया — फिर भी नहीं।तीसरी बार पर उसकी माँ की आवाज़ आई —भारी, टूटी हुई।“बेटा… मीरा नहीं रही।”शब्द सुनते ही सब कुछ थम गया।मुझे कुछ याद नहीं रहा।केवल इतना महसूस हुआ —कि उस आखिरी पल में भीउसने मुझे बुलाया था।वही संकेत…वही धड़कन…वही अदृश्य रिश्ता —जो अब समय और मृत्यु से भी परे जा चुका था।अब भी, जब रात के दो बजे मैं जागता हूँ,तो हवा में वही सरसराहट सुनाई देती है —जैसे कोई धीमे से कह रहा हो —“मैं यहीं हूँ…”और मैं मुस्कुरा देता हूँ —क्योंकि जानता हूँ, संकेत कभी झूठ नहीं बोलते। आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले | Join Our Whatsapp Group