भारतीय भाषा में इस संख्या का एक अलग महत्व है। मान लीजिए किसी और मेरी लड़ाई हो जाती है तो वह या मैं कहते हैं, ‘अबे जाबे…तुम्हारी तरह छप्पन पहिले।’ ‘मेरे मन में भी ये सवाल था कि ‘छप्पन ही क्यों?’ पचपन या सत्तावन क्यों नहीं?’
शंका निवारण के लिए मेरी मुलाकात मराठी भाषा के एक प्रसिद्ध, वरिष्ठ लेखक से हुई। उन्होंने मुझसे कहा, “क्या तुमने ज्ञानेश्वरी के संबंध में संत नामदेव द्वारा लिखे गए श्लोक पढ़े हैं?”
“हाँ। क्या किसी को ओवी महसूस नहीं होना चाहिए?” मैंने उत्तर दिया।”सही है। इसमें एक पंक्ति है। ‘छप्पन भाषांच गौरव की महिमा’। इसका मतलब है कि ज्ञानेश्वरी में मराठी भाषा की छप्पन भाषाओं के शब्द हैं। उनके समय में मराठी की छप्पन बोलियाँ थीं। वरहदी, ज़ादी, मालवणी , कोंकणी, अहिरानी, मंदेशी, आदि बोलियाँ थीं। अब एक बात पर ध्यान दें। छप्पन प्रकार के समाज छप्पन बोलियाँ बोलते हैं। सबका अलग ढंग, अलग दृष्टिकोण, अलग व्यवहार है! छप्पन प्रकार के लोग थे ऐसे रवैये के साथ। तो यह कहने का एक तरीका था ‘छप्पन पहले आपके जैसा।’उन्होंने आगे कहा, “छियासठ प्रकार के समाज का अर्थ है खाना पकाने के छियासठ प्रकार। इसलिए ‘छियासठ प्रकार के भोग’। छियासठ प्रकार के प्रसाद। यदि समाज में कोई महिला बहुत झगड़ालू, चुगलखोर और विद्रोही है।” उसे ‘छियासठ प्रकार की आवा’ कहा जाता है। अर्थात
सभी छप्पन प्रकार की प्रसादी।” समाज में जाकर तुम्हारे नाम का पत्थर गिरा है।”उपरोक्त प्रश्न के उत्तर में मुझे जो याद आया, वह पुरूषोत्तम पाठक ने मुझे भेजा।
क्या नाना पाटेकर की फिल्म अब तक छपन्न के नाम के पीछे ये वजह हो सकती है?