Sshree Astro Vastu

नीच राशी में ग्रह

ज्योतिष के बहुत से ऐसे अनसुलझे रहस्य हैं जिसके बारे में लोगों के मन में भ्रम की स्थिति है । बहुत से लोग जिन्हें अनुभव नहीं है या जिन्होंने इसके ऊपर विस्तार से शोध नहीं किया सही प्रकार से लोगों को परामर्श नहीं दे पाते इसलिए ज्योतिष के ग्रंथ , अपने गुरुदेव जी के पुस्तकों का अध्ययन एवं अपने अनुभव के माध्यम से यह लेख लिख रहा हूँ ।

हमारे लेख को मानने के लिए कोई भी बाध्य नहीं है ।

वास्तव में यह लेख उन लोगों के लिए लिख रहा हूं जो मुझसे जन्म कुंडली का संपूर्ण विश्लेषण करवाते हैं । लोगों की तरह तरह की बातें सुनकर वह भ्रमित हो जाते हैं और सही उपाय बताने पर भी ठीक से नहीं कर पाते हैं इसलिए उन सभी गलतफहमी को दूर करने के लिए यह लेख लिख रहा हूँ ।

नीच राशि में विराजमान ग्रह कोई भी ग्रह किसी विशेष राशि में किसी विशेष अंश तक ही नीच माने जाते हैं ।

सूर्य – तुला राशि में 10 अंश तक ।

चंद्र – वृश्चिक राशि में 3 अंश तक ।

मंगल – कर्क राशि में 28 अंश तक ।

बुध – मीन राशि में 15 अंश तक ।

गुरु – मकर राशि में 5 अंश तक ।

शुक्र – कन्या राशि में 27 अंश तक ।

शनि – मेष राशि में 20 अंश तक ।

ऊपर जो अंश दिया है उस अंश से ऊपर उस राशि में विराजमान होने के बाद ग्रह नीच राशि में नहीं माना जाता है ।

 

वास्तव में किसी भी ग्रह के नीच राशि में विराजमान होने का अर्थ खराब या गंदा नहीं है । मात्र उसके बल में कमी होना है । आम भाषा में हम किसी व्यक्ति को नीच बोलते हैं इसका मतलब होता है वह खराब है परंतु ज्योतिष में नीच शब्द का प्रयोग का मतलब वह बहुत ही कमजोर है वह जिस राशि में विराजमान है वहां पूर्ण रूप से कार्य नहीं कर पा रहा है । जैसे सूर्य एक तारा है चंद्रमा एक उपग्रह है परंतु ज्योतिष के भाषा में उन्हें भी ग्रह कहा जाता है उसी प्रकार किसी ग्रह को उच्च का मतलब उसके बल में वृद्धि है नीच का मतलब उसके बल में बहुत ज्यादा कमी है । अब यदि किसी जन्म कुंडली में उसको लाभ देने वाला ग्रह नीच राशि में विराजमान है तब इसका अर्थ यह होगा कि उस भाव से संबंधित पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होगा तो हमें यहां उसे और ज्यादा बल देने की आवश्यकता है ताकि वह नीच से बाहर निकले । ऊपर आपने देखा कि ग्रह एक निश्चित डिग्री के ऊपर जाने के बाद नीच राशि में नहीं माना जाता है । इसका यह अर्थ हुआ कि यदि ग्रह नीच राशि में विराजमान है और यदि हम उसे बली करते हैं और वह उस अंश से ऊपर चला जाएगा तो नीचे नहीं माना जाएगा । कई लोगों को मैं देखा हूँ नीच राशि में विराजमान ग्रह का दान करवाने लगते हैं मूर्खता की भी हद है वह पहले से ही नीच में विराजमान होने के कारण फल नहीं दे रहा है उसका दान और उपाय करवा दोगे तो क्या होगा ?

असल में नीच राशि मैं विराजमान ग्रह को प्रबल किया जाता है । कुंडली विश्लेषण करके देखना पड़ता है यदि मंत्र जप के माध्यम से कार्य हो जाता है तो ठीक है आवश्यकता पड़ने पर नीच राशि का रत्न अवश्य धारण करना चाहिए इसके सिवाय कोई भी रास्ता नहीं है । नीच राशि में विराजमान ग्रह का रत्न धारण करने पर लाभ होता है कोई नुकसान नहीं होता है ।

ज्योतिष में एक यह भी सूत्र है यदि कोई ग्रह नीच राशि में विराजमान है एवं वक्री है तो वह अच्छा फल देता है । ऐसा क्यों होता है क्योंकि कोई भी ग्रह वक्री होने के बाद उसके बल में वृद्धि हो जाती है जैसे मान ले गुरु 4 अंश का है तब यह नीच माना जाएगा और यदि यहां गुरु वक्री हो जाता है तो 4 – 5 अंश की उसमें वृद्धि हो जाएगी और वह 5 अंश से ऊपर चला जाएगा और उसके नीच का दोष समाप्त हो जाएगा । इसका अर्थ यही है कि यदि कोई भी ग्रह नीच राशि में विराजमान है और उसे बली करते हैं तो वह नीच राशि से बाहर आ जाएगा और अच्छा फल देगा । यह मेरा अनुभव है और मैं स्वयं नीच राशि का रत्न धारण किया हूँ  और बहुत से लोगों को धारण करवाया हूँ जिनको धारण करने के बाद सभी को लाभ प्राप्त हुआ है । ( परंतु आप स्वयं बिना कुंडली के विश्लेषण करवाएं नीच राशि का रत्न धारण नहीं कर सकते हैं एक योग्य ज्योतिषी ही परामर्श देगा कि आपको कहां धारण करना है या मंत्र जाप करना है ।

2

 ज्योतिष शास्त्र  कर्ज  का योग !

 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह को कर्ज का कारक ग्रह माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मंगलवार को कर्ज लेना निषेध माना गया है। वहीं  बुधवार को कर्ज देना अशुभ है क्योंकि बुधवार को दिया गया कर्ज कभी नही मिलता। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवनभर कर्ज नहीं चुका पाता तथा उस व्यक्ति की संतान भी इस वजह परेशानियां उठाती हैं।जन्म कुंडली के छठे भाव से रोग, ऋण, शत्रु, ननिहाल पक्ष, दुर्घटना का अध्ययन किया जाता है| ऋणग्रस्तता के लिए इस भाव के आलावा दूसरा भाव जो धन का है, दशम-भाव जो कर्म व रोजगार का है, एकादश भाव जो आय का है एवं द्वादश भाव जो व्यय भाव है, का भी अध्ययन किया जाता है। इसके आलावा ऋण के लिए कुंडली में मौजूद कुछ योग जैसे सर्प दोष व वास्तु दोष भी इसके कारण बनते हैं| इस भाव के कारक ग्रह शनि व मंगल हैं।

दूसरे भाव का स्वामी बुध यदि गुरु के साथ अष्टम भाव में हो तो यह योग बनता है। जातक पिता के कमाए धन से आधा जीवन काटता है या फिर ऋण लेकर अपना जीवन यापन करता है| सूर्य लग्न में शनि के साथ हो तो जातक मुकदमों में उलझा रहता है और कर्ज लेकर जीवनयापन व मुकदमेबाजी करता रहता है। 12 वें भाव का सूर्य व्ययों में वृद्धि कर व्यक्ति को ऋणी रखता है। अष्टम भाव का राहू दशम भाव के माध्यम से दूसरे भाव पर विष-वमन कर धन का नाश करता है और इंसान को ऋणी होने के लिए मजबूर कर देता है| इनके आलावा कुछ और योग हैं जो व्यक्ति को ऋणग्रस्त बनाते हैं।

 

— उपर बताएं पाप ग्रह अगर मंगल को देख रहे हों तो भी कर्जा होता है।

— कुंडली में खराब फल देने वाले घरों (छठे, आठवें या बारहवें) घर में कर्क राशि के साथ हो तो व्यक्ति का कर्ज लंबे समय तक बना रहता है।

— षष्ठेश पाप ग्रह हो व 8 वें या 12 वें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति ऋणग्रस्त रहता है।

— छठे भाव का स्वामी हीन-बली होकर पापकर्तरी में हो या पाप ग्रहों से देखा जा रहा हो।

— अगर कुंडली में मंगल कमजोर हो यानि कम अंश का हो तो ऋण लेने की स्थिति बनती है।

— अगर मंगल कुंडली में शनि, सूर्य या बुध आदि पापग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति को जीवन में एक बार ऋण तो लेना ही पड़ता है।

— दूसरा व दशम भाव कमजोर हो, एकादश भाव में पाप ग्रह हो या दशम भाव में सिंह राशि हो, ऐसे लोग कर्म के     प्रति अनिच्छुक होते हैं।

— यदि व्यक्ति का 12 वां भाव प्रबल हो व दूसरा तथा दशम कमजोर तो जातक उच्च स्तरीय व्यय वाला होता है और 5. निरंतर ऋण लेकर अपनी जरूरतों की पूर्ति करता है।

— आवास में वास्तु-दोष-पूर्वोत्तर कोण में निर्माण हो या उत्तर दिशा का निर्माण भारी व दक्षिण दिशा का निर्माण हल्का हो तो व्यक्ति के व्यय अधिक होते हैं और ऋण लेना ही पड़ता है।

 

कर्ज और वार का संबंध —

 

– सोमवार- सोमवार की अधिष्ठाता देवी पार्वती हैं। यह चर संज्ञक और शुभ वार है। इस वार को किसी भी प्रकार का कर्ज लेने-देने में हानि नहीं होती है।

– मंगलवार- मंगलवार के देवता कार्तिकेय हैं। यह उग्र एवं क्रूर वार है। इस वार को कर्ज लेना शास्त्रों में निषेध बताया गया है। इस दिन कर्ज लेने के बजाए पुराना कर्ज हो तो चुका देना चाहिए।

– बुधवार- बुधवार के देवता विष्णुहैं। यह मिश्र संज्ञक शुभ वार है, मगर ज्योतिष की भाषा में इसे नपुंसक वार माना गया है। यह गणेशजी का वार है। इस दिन कर्ज देने से बचना चाहिए।

– गुरुवार- गुरुवार के देवता ब्रह्माहैं। यह लघु संज्ञक शुभ वार है। गुरुवार को किसी को भी कर्ज नहीं देना चाहिए, लेकिन इस दिन कर्ज लेने से कर्ज जल्दी उतरता है।

– शुक्रवार- शुक्रवार के देवता इन्द्र हैं। यह मृदु संज्ञक और सौम्य वार है। कर्ज लेने-देने दोनों दृष्टि से अच्छा वार है।

– शनिवार- शनिवार के देवता काल हैं। यह दारुण संज्ञक क्रूर वार है। स्थिर कार्य करने के लिए ठीक है, परंतु कर्ज लेन-देने के लिए ठीक नहीं है। कर्ज विलंब से चुकता है।

– रविवार- रविवार के देवता शिव हैं। यह स्थिर संज्ञक और क्रूर वार है। रविवार को न तो कर्ज दें और न ही कर्ज लें।

 

कर्ज के पिंड से छुटकारा नहीं हो रहा हो तो प्रत्येक बुधवार को गणेशजी के सम्मुख तीन बार ‘ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र’ का पाठ करें और यथाशक्ति पूजन करें।

 

धनहीनता के ज्योतिष योग—

 

ज्योतिष में फलित करते समय योगों का विशेष योगदान होता है। योग एक से अधिक ग्रह जब युति, दृष्टि, स्थिति वश संबंध बनाते हैं तो योग बनता है। योग कारक ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा व प्रत्यन्तर दशादि में योगों का फल मिलता है। योग को समझे बिना फलित व्यर्थ है। योग में योगकारक ग्रह का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। योगकाकर ग्रह के बलाबल से योग का फल प्रभावित होता है। अब यहां ज्योतिष योगों कि चर्चा करेंगे जो इस प्रकार हैं।धनहानि किसी को भी अच्छी नहीं लगती है। आज उन ज्योतिष योगों की चर्चा करेंगे जो धनहानि या धनहीनता कराते हैं।

 

कुछ योग इस प्रकार हैं-

 

-धनेश  छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो या भाग्येश बारहवें भाव में हो तो जातक करोड़ों कमाकर भी निर्धन रहता है। ऐसे जातक को धन के लिए अत्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। उसके पास धन एकत्रा नहीं होता है अर्थात्‌ दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि धन रुकता नहीं है।

– जातक की कुंडली में धनेश अस्त या नीच राशि में स्थित हो तथा द्वितीय व आठवें भाव में पापग्रह हो तो जातक सदैव कर्जदार रहता है।

– जातक की कुंडली में धन भाव में पापग्रह स्थित हों। लग्नेश द्वादश भाव में स्थित हो एवं लग्नेश नवमेश एवं लाभेश(एकादश का स्वामी) से युत हो या दृष्ट हो तो जातक के ऊपर कोई न कोई कर्ज अवश्य रहता है।

-किसी की कुंडली में लाभेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तो जातक निर्धन होता है। ऐसा जातक कर्जदार, संकीर्ण मन वाला एवं कंजूस होता है। यदि लग्नेश भी निर्बल हो तो जातक अत्यन्त निर्धन होता है।

-षष्ठेश एवं लाभेश का संबंध दूसरे भाव से हो तो जातक सदैव ऋणी रहता है। उसका पहला ऋण उतरता नहीं कि दूसरा चढ़ जाता है। यह योग वृष, वृश्चिक, मीन लग्न में पूर्णतः सत्य सिद्ध होते देखा गया है।

-धन भाव में पाप ग्रह हों तथा धनेश भी पापग्रह हो तो ऐसा जातक दूसरों से ऋण लेता है। अब चाहे वह किसी करोड़पति के घर ही क्यों न जन्मा हो।

-किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा किसी ग्रह से युत न हो तथा शुभग्रह भी चन्द्र को न देखते हों व चन्द्र से द्वितीय एवं बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र होता है। यदि चन्द्र निर्बल है तो जातक स्वयं धन का नाश करता है। व्यर्थ में देशाटन करता है और पुत्रा एवं स्त्राी संबंधी पीड़ा जातक को होती है।

– यदि कुंडली में गुरु से चन्द्र छठे, आठवें या बारहवें हो एवं चन्द्र केन्द्र में न हो तो जातक दुर्भाग्यशाली होता है और उसके पास धन का अभाव होता है। ऐसे जातक के अपने ही उसे धोखा देते हैं। संकट के समय उसकी सहायता नहीं करते हैं। अनेक उतार-चढ़ाव जातक के जीवन में आते हैं।

-यदि लाभेश नीच, अस्त य पापग्रह से पीड़ित होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तथा धनेश व लग्नेश निर्बल हो तो ऐसा जातक महा दरिद्र होता है। उसके पास सदैव धन की कमी रहती है। सिंह एवं कुम्भ लग्न में यह योग घटित होते देखा गया है।

-यदि किसी जातक की कुण्डली में दशमेश, तृतीयेश एवं भाग्येश निर्बल, नीच या अस्त हो तो ऐसा जातक भिक्षुक, दूसरों से धन पाने की याचना करने वाला होता है।

– किसी कुण्डली में मेष में चन्द्र, कुम्भ में शनि, मकर में शुक्र एवं धनु में सूर्य हो तो ऐसे जातक के पिता एवं दादा द्वारा अर्जित धन की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा जातक निज भुजबल से ही धन अर्जित करता है और उन्नति करता है।

– यदि कुण्डली का लग्नेश निर्बल हो, धनेश सूर्य से युत होकर द्वादश भाव में हो तथा द्वादश भाव में नीच या पापग्रह से दृष्ट सूर्य हो तो ऐसा जातक राज्य से दण्ड स्वरूप धन का नाश करता है। ऐसा जातक मुकदमें धन हारता है। यदि सरकारी नौकरी में है तो अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित या नौकरी से निकाले जाने का भय रहता है। वृश्चिक लग्न में यह योग अत्यन्त सत्य सिद्ध होता देखा गया है।

-यदि धनेश एवं लाभेश छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो एवं एकादश में मंगल एवं दूसरे राहु हो तो ऐसा जातक राजदण्ड के कारण धनहानि उठाता है। वह मुकदमे, कोर्ट व कचहरी में मुकदमा हारता है। अधिकारी उससे नाराज रहते हैं। उसे इनकम टैक्स से छापा लगने का भय भी रहता है।

 

मूलतः धनेश, लाभेश, दशमेश, लग्नेश एवं भाग्येश निर्बल हो तो धनहीनता का योग बनता है।

 

उक्त धनहीनता के योग योगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा में फल देते हैं। फल कहते समय दशा एवं गोचर का विचार भी कर लेना चाहिए।

Share This Article
error: Content is protected !!
×