लघुपाराशरी एक ऐसा ग्रन्थ है जिसके बिना फलित ज्योतिष का ज्ञान अधूरा है। पाराशरी सिद्धांतों का लघुपाराशरी में वर्णन किया गया है। संस्कृत श्लोकों में रचित लघु ग्रन्थ लघुपाराशरी में फलित ज्योतिष संबंधी सिद्धांतों का वर्णन है और ये 42 सूत्रों के माध्यम से वर्णित है। एक-एक सूत्र अपने आप में अमूल्य है, इसे ‘जातकचन्द्रिका’ “उडुदाय प्रदीप” भी कहा जाता है। यह विंशोत्तरी दशा पद्धति का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है तथा वृहद् पाराशर होराशास्त्र पर आधारित है। फलित ज्योतिष विद्या के महासागर रुपी ज्ञान को अर्जित करने के लिए पाराशर सिद्धांतों पर आधारित लघुपाराशरी एक बहुमूल्य साधन सिद्ध हो सकती है। इस पुस्तक का कोई एक लेखक नहीं है। यह पुस्तक पाराशरी सिद्धांत को मानने वाले महर्षि पाराशर, उनके अनुयायियों, प्रकांड विद्वानों द्वारा सामूहिक रूप से सम्पादित है।
फलित ज्योतिष पर आधारित इस ग्रंथ के आधार में कई बडे ग्रंथों की रचना की गई। फलित ज्योतिष पर आधारित इस ग्रन्थ को अधिकतम ज्योतिषी भविष्यवाणी करने के लिए प्रयोग में लाते हैं। इस ग्रंथ में मूलतः पाराशर सिद्धांतों के 42 सूत्रों में नौ ग्रहों की विविध भावों में उपस्थिति, ग्रहों की मित्रता, शत्रुता अथवा सम होना, ग्रहों की पूर्ण व आंशिक दृष्टियों का उल्लेख, भाव, कारकों, दशाओं, राजयोग, मृत्यु योग सहित भावानुसारी फलादेश आदि पर वर्णन किया गया है।
क्या कहता है ज्योतिष शास्त्र –
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, बारह राशियां होती है और हर राशि वाले व्यक्ति की कुंडली में बारह भाव होते हैं जो नौ ग्रहों की दशा से प्रभावित होते हैं। सात मुख्य ग्रहों सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि के साथ-साथ 2 और ग्रहों राहु और केतु का कुंडली में बहुत ख़ास स्थान होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर व्यक्ति की कुंडली में मारक और कारक दशा होती है जो ग्रहों के कारण बनती है। ऐसी ही एक दशा मारकेश है जो ग्रहों के कारण बनती है। मारकेश सिद्धांतों को संक्षिप्त में पराशर सिद्धांत्तों का आधार बताया जाता है।
लघुपाराशरी में 42 सूत्र या श्लोक हैं जो पाँच अध्यायों में विभक्त हैं।
पाराशरी संहिता में निहित मूलभूत सिद्धांतों का वर्णन और शुभ फलों की प्राप्ति के कारक :
इन स्थितियों में होती है शुभ फलों की प्राप्ति असंभव –
महर्षि पाराशर मूलभूत सिद्धांतों के आधार पर शुभ फलों की प्राप्ति के कारको में कुछ ऐसी बाधाओं का भी वर्णन है जिसके रहते शुभ फलों की प्राप्ति असंभव हो जाती है। उन बाधाओं का वर्णन नीचे दिया गया है।
पाराशर सिद्धांतों के 42 सूत्रों का वर्णन:
42. नवम स्थान का स्वामी दशम में और दशम स्थान का स्वामी नवम में हो तो ऐसा योग राजयोग होता है। इस योग पर विख्यात और विजयी पुरुष होता है।