धूमो रात्रिस्थता कृष्ण: षषमासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्त निवर्तते।
श्री मद भगवत गीता अध्याय -८ श्लोक २५
धूम, रात्रि, कृष्ण पक्ष, दक्षिणायन के छः माह, पितृयान के द्वार है, इनमें गति करने वाला योगी, चंद्र ज्योति को प्राप्त कर पुनः संसार मार्ग में लौट आता है।
अब आगे बढ़ते हैं, ओर बात करते हैं, चंद्र ग्रह का चंद्राष्टकवर्ग कैसे बनाया जाता है इसके बारे में।
चंद्राष्टकवर्ग कोष्टक
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ग्रह से ग्रह शुभ बिंदु प्राप्त करानेवाले स्थान कुल
————– ————————————-शुभबिंदु
सूर्य से चंद्र — ३,६,७,८,१०,११ =६
चंद्र से चंद्र — १,३,६,७,१०,११ = ६
मंगल से चंद्र —२,३,५,६,९,१०,११। =७
बुध से चंद्र —१,३,४,५,७,८,१०,११ =८
गुरु से चंद्र —-१,२,४,७,८,१०, ११। =७
शुक्र से चंद्र — ३,४,५,७,९,१०,११। = ७
शनि से चंद्र —-३,५,६,११। =४
लग्न से चंद्र ——३,६,१०,११। =४
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कुल योग total ४९
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इस प्रकार चंद्र अष्टक वर्ग में कुल ४९ शुभ बिंदु संपन्न होते है । जिसमे सूर्य से ६, चंद्र से ६, मंगल से ७, गुरु से ७, बुध से ८, शुक्र से ७, शनि से ४, ओर लग्न से ४ शुभ बींदु समाविष्ट है।
चंद्रमा के अष्टक वर्ग के विशिष्ट संकेत
यहां उदाहरण कुंडली भीतर दर्शाइ गई है ओर इसके आधार पर चंद्राष्टकवर्ग बनाया गया है। उदाहरण कुंडली के आधार पर किस राशि में -किस भाव में सात ग्रहों ओर लग्न, यह आठ/अषटको से कितने शुभ बिंदु प्राप्त है/ देते है, यह चंद्राष्टकवर्ग कोष्ठक में दर्शाए गए हैं।
आठ से लेकर शून्य बिंदुओं से युक्त होने पर चंद्रमा निम्नांकित फल देता है।
८ बिंदु: अत्यधिक सौभाग्य, महान वैभव ओर लावण्य, उच्च नैतिक साहस, प्रसिद्धि।
७ बिंदु: उत्सव, सुचारू भोजन,उत्तम वस्त्र,मंत्र- शास्त्र में प्रविणता।
६बिंदु: गुणी, सज्जनों से संपर्क, उच्च आदर्श, एकाग्रचित्तता।
५ बिंदु: संतोष और खुशहाली, नैतिक साहस।
४ बिंदु: न सुखी,न दुखी।
३ बिंदु: दोस्तों ओर रिश्तेदारों से मनमुटाव।
२ बिंदु: दोस्तों ओर रिश्तेदारों से अलगाव , पत्नी अथवा संपत्ति के कारण झगड़ें, मां को पीड़ा।
१ बिंदु: रेंगने वाले जंतुओं से खतरा, अपरिहार्य कष्ट।
० बिंदु: कष्ट, चिंता, मृत्यु अथवा मृत्यु तुल्य कष्ट।
(१) विवाह एवं मुंडन संस्कार जैसे अनुष्ठान तब करने चाहिए,जब चंद्रमा उस राशि से गुजर रहा हों,जहा उसके अपने अष्टक वर्ग में अधिकतम बिंदु हो। किसी शुभ कार्य का मूर्हत निश्चित करने में यह नियम सहायक होता है।
(२) उन राशियों को नोट करें जिनमें चंद्रमा के अधिकतम बिंदु हो, जैसे ६,७ या ८, जिन लोगों का जन्म लग्न अथवा चंद्र लग्न इन राशियों में हो, वे लोग जातक के लिए सहायक सिद्ध होंगे, चाहे वे मित्र हो या उच्च पदाधिकारी, आधीनस्थ कर्मचारी, अध्यापक, छात्र, राजा अथवा पत्नी हो।
” यह नियम उन लोगो के लिए अधिक सार्थक ओर काम का हो सकता है , जो ” लिन्डा गुडमैन” सरीखी लेखिकाओं की पुस्तकों में सूर्य राशि ( सायन) के आधार पर या ‘ कीरो’ की अंक विद्या के आधार पर जीवनसाथी की तलाश करते हैं।
(३) प्रथम दर्शन: नियम २ के अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों का प्रभात काल में प्रथम दर्शन जातक के लिए शुभ होगा। एसे व्यक्ति को जातक वस्त्रों का उपहार दे — यह जातक के लिए समृद्धिकारक होगा।
(४) नियम १, २, ३, के विपरीत सिध्दांत आसानी से बनाये जा सकते हैं।
( क) जब चंद्रमा बिंदुओं से च्युत राशियों में हो तो शुभ कार्य नहीं करने चाहिए।
( ख) उन लोगों से संबंध ना जोड़े जिनकी चंद्र राशि, आप की कुंडली में न्यूनतम बिंदु रखती हो अर्थात आप की कुंडली में जो राशि कमजोर हो उस राशि में जन्मे व्यक्ति से दूर रहें।
(५) चंद्रमा जिस भाव में स्थित है, यदि वहां बिंदु कम हो (०, १ या २), तो उस भाव का नाश समझना चाहिये।
नोट: एसा अवश्यम्मभावी होगा यदि साथ में:
( क) चंद्रमा केन्द्र, त्रिकोण अथवा ११ वे भाव में न हो।
( ख) चंद्रमा पक्षबल से रहित हो।
( ग) चंद्रमा दूषित हो अर्थात चंद्रमा यदि क्रूर ग्रह की राशि में हो या उससे द्रष्टिगत हो।
(६) वह भाव जहां चंद्रमा ४ या अधिक बिंदुओं से युक्त हो, उस भाव की उन्नति होगी, यदि:
( क) चंद्रमा शुकल पक्ष में हो,
( ख) चंद्रमा केन्द्र या त्रिकोण में हो,
( ग) चंद्रमा उच्च, स्वक्षेत्री अथवा मित्र राशि में हो।
(७) चंद्रमा जोडे मिलाने में सहायक होता है।वर की कुंडली में जिस राशी में चंद्रमा का अष्टक वर्ग अधिकतम बिंदु रखता हो, उस राशि में जन्मे लेने वाली वधू विवाह के पश्चात जातक के लिए समृद्धिकारक सिद्ध होती है।
उदाहरण: यदि वर की कुंडली में चन्द्रमा के भिन्नाष्टक में कुंभ राशि में ७, सिंह में ५, ओर वृश्चिक में ६ बिंदु हो ओर शेष राशियों में ४ या कम, तो इस वर के लिए,वह कन्या सर्वश्रेष्ठ होगी जिसकी जन्मराशि कुंभ हो, वृश्चिक राशि की कन्या को दूसरे स्थान पर ओर सिंह की कन्या का चयन तीसरे स्थान पर समझना चाहिये।
(८) जो लोग प्रस्तावित वर ओर वधू, दोनो की कुंडलियों का सूक्ष्म परीक्षण करना चाहें, उन्हें ओर आगे जाकर कक्ष्याओं की स्थिति देखनी चाहिए।
(९) चूंकि चंद्रमा माता का कारक है, मां के भाइ बहनों की संख्या, जातक की कुंडली में चंद्रमा से चौथे स्थान पर स्थित बिंदुओं से ज्ञात की जा सकती है। पुरुष ग्रहों द्वारा प्रदत्त बिंदुओं से माता के भाइयों की, शेष से बहनों की संख्या का संकेत मिलता है।
(१०) यदि पानी की टांकियां,कुंए या स्नान गृह आदि उस राशि की दिशा में हो, जिस में चंद्रमा के अष्टक वर्ग में अधिकतम बिंदु हो तो बहुत शुभकारी होता है। यह नियम स्वास्थ्य लाभ करने वाले रोगियों के लिए बहुत उपयोगी है। वास्तु में दिलचस्पी रखने वाले भी अष्टक वर्ग द्वारा निर्देशित इस नियम को कृपया नोट करें।
(११) दुर्गा की प्रतिमा उस दिशा में स्थापित की जानी चाहिए, जिसका संकेत वह राशि दे, जिसमें चंद्रमा के अष्टक वर्ग में अधिकतम बिंदु हो।
(१२) चंद्रमा छठे अथवा ग्यारहवें स्थान में ६ से अधिक बिंदुओं से युक्त हो ओर बृहस्पति उस चंद्रमा को द्रष्टि दे रहा हो तो जातक धनवान एवं दानवान बनता है। इस का कारण संभवत: यह है कि छठा धर अर्थ त्रिकोण का एक अंग है ओर ग्यारहवां धर तो लाभ का धर है ही।
(१३) यह देखे कि चंद्रमा से आठवें धर का स्वामी किस नक्षत्र में है। जब जब चंद्रमा उस नक्षत्र ( या उसके त्रिकोण स्थान) से गुजरेगा, जातक बिना कुछ पाये इधर – उधर भाग-दौड़ करेगा ओर रोग – ग्रस्त भी हो सकता है।